पॉलिटेक्निक कॉलेज के छात्रों ने बनायी ऑटोमैटिक सैंड सेपरेटर मशीन
पॉलिटेक्निक कॉलेज के छात्रों ने बनायी ऑटोमैटिक सैंड सेपरेटर मशीन पॉलिटेक्निक कॉलेज के छात्रों ने बनायी ऑटोमैटिक सैंड सेपरेटर मशीन

हिन्दुस्तान एक्सक्लूसिव : पॉलिटेक्निक कॉलेज के छात्रों ने बनायी ऑटोमैटिक सैंड सेपरेटर मशीन महज दो हजार की लगात से बनी मशीन निर्माण कार्यों में लाएगी क्रांतिकारी बदलाव मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छठे सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने दिखायी प्रतिभा मशीन से निर्माण कार्य में रेत की छंटाई में समय और श्रम दोनों की होगी बचत फोटो : अस्थावां कॉलेज : अस्थावां पॉलिटेक्निक कॉलेज में बुधवार को ऑटोमेटिक सैंड सेपरेटर मशीन दिखाते विद्यार्थी। अस्थावां, निज संवाददाता। अस्थावां के राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमा कोर्स के छठे सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने ऑटोमेटिक सैंड सेपरेटर मशीन बनायी है। महज दो हजार की लागत से मशीन बनायी गयी है।
भवन निर्माण कार्य में यह मशीन क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। प्राचार्य डॉ. आनंद कृष्ण ने बताया कि कॉलेज के विद्यार्थियों की टीम नित्य नये-नये तकनीकी समाग्रियां बनाने का प्रयास कर रहे है। ऑटोमेटिक सैंड सेपरेटर मशीन के माध्यम से निर्माण कार्यों में रेत को कुशलतापूर्वक और तेज गति से छांट कर अलग करने में काफी सहूलियत मिलेगी। मिट्टी व बालू को अलग करने में यह मशीन काफी उपयोगी साबित होगी। मशीन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। यह मजबूत और किफायती है। निर्माण स्थलों पर इसका उपयोग श्रमिकों के लिए न केवल सुविधाजनक होगा। बल्कि, इससे रेत की छंटाई में समय और श्रम दोनों की बचत होगी। शिक्षक की देखेरख में परीक्षण : छात्र जितेन्द्र कुमार, विद्यानंद कुमार, राजु कुमार, विवेकानंद कुमार, नीरज कुमार और गुलशन कुमार ने बताया इस मशीन को बनाने में चार माह को समय लगा है। प्राचार्य ने बताया कि छात्रों की कड़ी मेहनत, तकनीकी समझ और टीम भावना के बल पर मशीन को बनाने में सफलता मिली है। प्रो. रितेश कुमार ने बताया कि छात्रों ने मशीन का डिजाइन, निर्माण और परीक्षण तक का कार्य स्वयं किया। सीमित संसाधनों के बावजूद एक प्रभावी मॉडल प्रस्तूत किया। छात्रों ने यह सिद्ध कर दिया है कि नवाचार केवल बड़े बजट और बड़े शहरों तक सीमित नहीं है। सीमित संसाधनों में भी उत्कृष्ट तकनीकी समाधान विकसित किए जा सकते हैं।
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