बुआई का सीजन बीतने के बाद मिलता सरकारी बीज, खाद को भटकते किसान
जिले के किसान सरकारी योजनाओं से असंतुष्ट हैं। बुआई के समय पर बीज नहीं मिलता और नकली खाद-बीज की समस्या भी है। लागत बढ़ने से छोटे किसान परेशान हैं। प्राकृतिक आपदाओं का सही मुआवजा नहीं मिलता। सरकार से...
जिले के किसानों में मायूसी का आलम है। इनका कहना है कि सरकार कृषि योजनाओं पर हजारों करोड़ खर्च करती है, पर उसका लाभ किसानों को नहीं मिलता। किसान बताते हैं कि बुआई का समय बीतने के बाद सरकारी बीज मिलता है, जबकि खाद-कीटनाशक के लिए निजी दुकानों में भटकते हैं। किसानों ने नकली खाद-बीज मिलने की भी शिकायत की। बताया कि नकली खाद में कंकड़-पत्थर मिला रहता है। इसका पता किसानों को तब लगता है जब खाद छिड़काव के बाद अगली सुबह खेत देखते हैं। खाद की ऊपरी परत गलने के बाद कंकड़-पत्थर बिखरे मिलते हैं। किसान बताते हैं कि प्रमाणिक लिखे बैग में नकली बीज रहता है।
इसकी जानकारी बुआई के बाद पौधा निकलने पर होती है। एक पौधा बड़ा व दूसरे के छोटा होने से गेहूं, धान, मक्का आदि का उत्पादन प्रभावित होता है। किसान बिजली के अभाव में डीजल पंप से पटवन करने पर अधिक खर्च होने का दर्द सुनाते हैं और इस स्थिति का जिम्मेवार सिस्टम को करार देते हैं। कृष्णा नंद झा, रामविनय कमती, अर्जुन झा, मणिकांत झा, कारी कमती, चंद्रमोहन झा, रमेश झा, मो. मुस्तफा व किसान सभा के राज्य संयुक्त सचिव सह पैक्स अध्यक्ष श्याम भारती बताते हैं कि आधुनिक दौर में किसानी का रूप बदला है, पर जिले के 80 फीसदी किसान परंपरागत अंदाज में खेती करते हैं। इससे किसानों की परेशानी व लागत दोनों बढ़ जाती है। ऊपर से सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी लाभकारी नहीं होता है। उन्होंने बताया कि जुताई, खाद, बीज, पटवन बिल, लेबर पेमेंट आदि में वृद्धि दोगुनी रफ्तार से हुई है। लागत राशि का बंदोबस्त करने में छोटे-मंझोले किसानों का पसीना छूट जाता है। इसके बावजूद लागत के अनुरूप समर्थन मूल्य का निर्धारण सरकार नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि जिले के किसानों को प्राकृतिक आपदाओं का भी सही से लाभ नहीं मिलता है। इस वर्ष भी बेमौसम की बरसात से गेहूं की फसल बर्बाद हुई, पर लाभ नहीं मिला। उन्होंने बताया कि किसानों को मुआवजा चाहिए भी नहीं। सरकार सिर्फ बाढ़ में फसल नहीं डूबने व सुखाड़ में पटवन का इंतजाम कर दे, किसान खुशहाल हो जाएंगे। आमस-दरभंगा एक्सप्रेसवे भूमि अधिग्रहण का मिले कमर्शियल मुआवजा: जिले में तकरीबन सभी फसलों का उत्पादन होता है, पर दरभंगा धान व मखाना उत्पादन के लिए प्रख्यात है। बहादुरपुर के किसान अजय कुमार झा, पवन कुमार झा, सुशील झा, दिनेश झा, रमेश झा आदि बताते हैं कि किसानों को आधुनिक ढंग से प्रशिक्षण दिया जाता है, पर इसके बिचौलिए चुनाव करते हैं। इस कारण अधिकतर किसान आधुनिक खेती प्रशिक्षण के लाभ से वंचित हैं। उन्होंने बताया कि रामनगर आईटी के बगल से गुजरने वाले आमस-दरभंगा एक्सप्रेसवे के लिए सरकार ने दर्जनों किसानों की भूमि अधिग्रहित की है, पर उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। इससे किसानों में रोष व्याप्त है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में भूमि का कॉमर्शियल रेट 25-30 लाख रुपए कट्ठा है। इसके बावजूद सरकारी रेट करीब डेढ़ लाख कट्ठा देने की हो रही है। इसका किसान विरोध कर रहे हैं।
-बोले जिम्मेदार-
सरकार से जैसे ही खाद और बीज का आवंटन प्राप्त होता है, बिना किसी देरी के किसानों के बीच इसका वितरण कर दिया जाता है। साथ ही समय-समय पर किसानों को नई तकनीकी के बारे में पंचायतों में किसान चौपाल लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है और मुख्यालय में भी प्रशिक्षण मिलता है। - डॉ. सिद्धार्थ, जिला कृषि पदाधिकारी
जिले में किसानों को सही तरीके से लाभ मिले इस व्यवस्था का अभाव है। किसानों के प्रशिक्षण आदि में धांधली की समस्या है। किसानों की इन समस्याओं के समाधान के लिए अधिकारियों से मिलेंगे। जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करेंगे।
-श्याम भारती, किसान सभा के स्टेट ज्वाइंट सेक्रेटरी सह पैक्स अध्यक्ष
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