तिरहुत में मछली उत्पादन बढ़ा, बीज उत्पादन घटा
मुजफ्फरपुर में ताल तलैयों के सूखने से मछली बीज उत्पादन में भारी कमी आई है। पिछले चार वर्षों में मछली उत्पादन में 17% की वृद्धि हुई, जबकि मछली बीज उत्पादन में 33.17% की गिरावट दर्ज की गई। विशेषज्ञों का...

मुजफ्फरपुर, वरीय संवाददाता। ताल तलैयों के सूखने का असर भले ही मछली उत्पादन पर नहीं पड़ रहा है, लेकिन मछली बीज उत्पादन पर इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि तिरहुत के सभी जिलों में मछली उत्पादन बढ़ने के बावजूद मछली बीज उत्पादन में तेजी से कमी आई है। पिछले चार सालों में मछली उत्पादन जहां 17 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, वहीं मछली बीज उत्पादन में लगभग दोगुनी दर यानि की 33.17 प्रतिशत की दर से गिरावट आई है। इसके पीछे जल संसाधन और मछली उत्पादन से जुड़े लोग और विशेषज्ञ कम बारिश के कारण सूखते जा रहे ताल तलैयों को मान रहे हैं।
इसके अलावा मछली बीज उत्पादन के क्षेत्र में कम मुनाफा भी निवेशकों को इससे दूर कर रहा है। तीसरा महत्वपूर्ण कारण जल प्रदूषण को भी बताया जा रहा है। संयुक्त कृषि निदेशक के कार्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार तिरहुत के सभी छह जिलों में 2021-22 में कुल 1.84 लाख टन मछली उत्पादन हुआ था। इस क्रम में मुजफ्फरपुर जिले में लगभग 36 हजार टन मछली का उत्पादन हुआ। यह आंकड़ा 2024-25 में तिरहुत प्रमंडल में बढ़कर 2.16 लाख टन पर पहुंच गया। इस तरह देखा जाए तो इसमें 17.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान जिले में 16.67 प्रतिशत की दर से उत्पादन बढ़कर 42 हजार टन पर जा पहुंचा। जबकि, 2021-22 में पूरे प्रमंडल में 12081 लाख मछली बीज उत्पादित हुआ। लेकिन, वित्तीय वर्ष 2024-25 में 33.17 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। और महज 8073 लाख मछली के बीज का उत्पादन करने में मछली किसान सफल हो पाए। मुजफ्फरपुर जिले की बात करें तो इस अवधि में क्रमश: 9250 लाख मछली बीज की जगह महज 5990 लाख जीरा का ही उत्पादन हो पाया। इस तरह इसमें करीब 35 प्रतिशत की गिरावट आई। गौरतलब है कि उत्तर बिहार में दरभंगा और मधुबनी के बाद मुजफ्फरपुर में ही सर्वाधिक मछली और मछली बीज का उत्पादन होता रहा है। तिरहुत में जिला इस मामले में पहले स्थान पर है, वहीं शिवहर जिला सूची में अंतिम पायदान छठे स्थान पर है। मछली बीज उत्पादन में कमी आने का प्रमुख कारण कृषि विशेषज्ञ पिछले कई सालों से मानसून में औसत से भी कम बारिश होना बताते हैं। जिला मत्स्य पालक सहकारी संघ के जिलाध्यक्ष नरेश सहनी का मानना है कि कम बारिश के कारण जल स्तर नीचे चला गया है। इस कारण कई तालाब सूख गए हैं। उनके पेंदी में केवल गाद भरा हुआ है। पहले जिन तालाबों में मछली बीज उत्पादन होता था, उनमें अब मछली उत्पादन होने लगा है, क्योंकि मछली उत्पादन में मछली किसानों को अधिक मुनाफा होता है। इसके अलावा अधिकांश तालाबों में नालों का गंदा पानी गिराने के कारण उनमें प्रदूषण की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। तालाब जलकुंभियों से भरे हुए हैं। इससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से मछली बीज मर जाते हैं। घाटा के कारण भी उत्पादक अब इससे मुंह मोड़ रहे हैं। संयुक्त कृषि निदेशक सुधीर कुमार भी इससे सहमति जताते हैं। वे कहते हैं कि हाल के दिनों में कई मछली उत्पादकों ने इसकी शिकायत की है। उनकी शिकायतों का संज्ञान लेते हुए कई स्तर पर मदद करने की कोशिश की जा रही है।
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