Struggles of ASHA Workers Unpaid Wages and Overwhelming Responsibilities परेशानी के बोझ से दबी स्वास्थ्य विभाग की रीढ़, भुगतान बकाया से आशा में निराशा, Muzaffarpur Hindi News - Hindustan
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परेशानी के बोझ से दबी स्वास्थ्य विभाग की रीढ़, भुगतान बकाया से आशा में निराशा

मुजफ्फरपुर में आशा कार्यकर्ताओं की परेशानियों का कोई समाधान नहीं है। 4300 आशा कार्यकर्ता गर्भवतियों की सहायता और स्वास्थ्य जागरूकता के लिए काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें लंबे समय से भुगतान नहीं मिला है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरSat, 19 April 2025 07:02 PM
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परेशानी के बोझ से दबी स्वास्थ्य विभाग की रीढ़, भुगतान बकाया से आशा में निराशा

मुजफ्फरपुर। स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ मानी जाने वाली आशा कार्यकर्ता परेशानियों के बोझ से दबती जा रही हैं। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक गर्भवतियों को अस्पताल पहुंचाने से लेकर उनकी जांच कराने के अलावा एईएस के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं। लेकिन, उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। जिले में 4300 आशा कार्यकर्ता कार्यरत हैं। इनका कहना है कि हमलोगों से जितना काम लिया जाता है, उसका मेहनताना नहीं मिलता है। कई भुगतान ऐसे हैं, जो 13 वर्षों से लंबित हैं। विभाग के पास जाने पर खाली हाथ लौटा दिया जाता है। कई बार धरना-प्रदर्शन भी किया, लेकिन विभाग में कोई सुनवाई नहीं हुई। हमारी समस्याओं का समाधान करना पड़ेगा। एईएस से लेकर मौसमी बुखार तक स्वास्थ्य विभाग के सारे कार्यक्रमों के शत-प्रतिशत क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन आशा कार्यकर्ताओं पर है, उनकी हालत बेहद खराब है। जिले की आशा कार्यकर्ताओं का दर्द है कि हमलोग जेठ की दुपहरी से लेकर पूस की ठंड में लोगों की सेहत का ख्याल रखते हैं, लेकिन हमारी समस्याओं को सुनने वाला नहीं है। जब भी किसी बीमारी का आउटब्रेक होता है तो हमें ही उसके बारे में सर्वे करने के लिए लगाया जाता है, लेकिन हमारा भुगतान कई सालों से बकाया है।

आशा कार्यकर्ता संघ की जिला सचिव अनीता शर्मा का कहना है कि हमलोगों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। काम का बोझ और विभाग का दबाव के अलावा भुगतान नहीं होने से आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने से लेकर उनकी सभी जांच कराने, बच्चों का टीकाकरण जैसे अहम काम करती हैं। स्वास्थ्य विभाग के आधे से अधिक कामों की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है, लेकिन विभाग हमारी सुविधाओं पर ध्यान नहीं देता। हमलोगों को बढ़ा हुआ मानदेय भी विभाग की तरफ से नहीं मिला है।

गार्ड से लेकर अस्पताल कर्मी तक करते हैं दुर्व्यवहार

आशा कार्यकर्ता पुनीता पांडेय का कहना है कि अस्पतालों में सुरक्षा गार्ड से लेकर अस्पताल के कर्माचारी तक उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। सबसे ज्याद बुरा हाल सदर अस्पताल में होता है। यहां सुरक्षा गार्ड और अस्पताल कर्मचारी हमें अंदर तक नहीं जाने देते हैं, जबकि मरीज को लेकर हम ही आते हैं। कई बार हमें कहा जाता है कि आप फर्जी हैं, जबकि गड़बड़ी अस्पताल के अंदर हो रही है। आशा कार्यकर्ताओं को बेवजह बदनाम किया जा रहा है। आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को जब हम अस्पताल लेकर आते हैं तो कई जांच लिखी जाती है। पैथोलॉजी सेंटर पर लंबी भीड़ के कारण अगर एक-दो मिनट की देरी हो गई तो जांच से मना कर दिया जाता है। ऐसे में आशा कार्यकर्ता के साथ आई मरीज भी परेशान होती है। अगर मरीज गंभीर हो तब भी कई डॉक्टर ऑपरेशन नहीं करती हैं। आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमलोग कई बार जल्दबाजी में ड्रेस पहनना भूल जाते हैं, क्योंकि मरीज की जान का सवाल होता है। ऐसे में अस्पताल के बाहर हमें परेशान किया जाता है।

काम पूरा, मगर भुगतान अधूरा

आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमलोगों का भुगतान अश्विन पोर्टल पर काम अपलोड करने के आधार पर होता है। हमलोग लक्ष्य से अधिक काम करते हैं, लेकिन भुगतान 11 हजार ही होता है। 11 हजार से अधिक बिल बनने पर उसका भुगतान नहीं किया जाता है। यह हमलोगों के साथ अन्याय है। जब हम पूरा काम करके विभाग को दे रहे हैं तो भुगतान अधूरा क्यों है। आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि मार्च में टीबी के मरीजों के सर्वे में हमें लगाया गया था। उस समय बताया गया कि 1600 रुपये दिये जायेंगे, लेकिन बाद में जब कुछ क्षेत्रों में टीबी के मरीज नहीं मिले तो राशि देने से इनकार कर दिया गया। इलाके में टीबी के मरीज नहीं मिले तो इसमें आशा कार्यकर्ताओं की क्या गलती है। इसपर विभाग को विचार करना चाहिए।

मोबाइल खरीद लिया, मगर पैसा नहीं मिला

शहरी क्षेत्र की आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि जिला स्वास्थ्य विभाग की तरफ से उन्हें स्मार्टफोन खरीदने को कहा गया था। जब पैसे मांगे गये तो बताया गया कि अभी खुद से खरीद लें, बाद में विभाग से भुगतान हो जायेगा। छह महीने से अधिक हो गये, मगर हमें मोबाइल की राशि नहीं मिली। हमलोग मोबाइल का पैसा किस्त के तौर पर हर महीने भर रहे हैं। जब भी राशि मांगने जाते हैं तो हमें वापस कर दिया जाता है। आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि हर महीने में 1500 से 2000 रुपये किस्त के तौर पर भरने पड़ते हैं। हमारी जितनी आमदनी नहीं है, उतना खर्च हो रहा है। वर्ष 2021 में भी आशा कार्यकर्ताओं को एक स्मार्टफोन दिया गया था, लेकिन वह फोन किसी काम का नहीं निकला। आशा कार्यकर्ताओं को विभाग की तरफ से दिये फोन से ऑनलाइन सर्वे करना था, लेकिन फोन काम नहीं करने से उसे लौटाना पड़ा।

एप पर काम करने का नहीं बताया तरीका

आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमलोगों को एम आशा एप पर काम करना है। इस एप पर सभी कार्यक्रमों के सर्वे की रिपोर्ट अपलोड करनी है, लेकिन इस एप को कैसे चलाएं, यह आशा कार्यकर्ताओं को नहीं बताया गया है। एम आशा एप लांच करते समय मोबाइल पर ही एक बार ऑनलाइन इसके बारे में जानकारी दी गई, लेकिन कई आशा जो ग्रामीण क्षेत्र की हैं, उन्हें सभी बातों की जानकारी नहीं हो सकी। एम आशा एप में सर्वे रिपोर्ट अपलोड करने में कई बार काफी परेशानी आती है। आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि एम आशा एप पर काम नहीं करने पर नौकरी जाने की बात कही जाती है। अब आशा कार्यकर्ता करें तो क्या करें। विभाग हमारी तरफ से उदासीन है। अगर आशा कार्यकर्ताओं को ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन ट्रेनिंग दी जाती तो इतनी परेशानी नहीं आती।

स्वास्थ्य विभाग के स्तर पर की जाएगी पहल

आशा कार्यकर्ताओं की क्या समस्याएं हैं, इस पर सिविल सर्जन से बात की जायेगी। विभाग के स्तर पर पहल करते हुए उनकी सभी समस्याओं का समाधान किया जायेगा। आशा कार्यकर्ता हमारे विभाग की महत्वपूर्ण इकाई हैं। विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी अहम भूमिका है। उन्हें किसी तरह की समस्याओं का सामना नहीं करने दिया जाएगा।

-डॉ. सरिता शंकर, क्षेत्रीय अपर निदेशक स्वास्थ्य

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