विकट परिस्थिति, कठिन रास्ते, भाषा ज्ञान की कमी के बाद भी लड़ी जंग
प्रवीण कुमार तिवारीक संवाददाता। पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में भाषा आधार पर 1948 से 1952 तक आन्दोलन हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से को बांग्लादेश के रूप में 16 दिसंबर 1971 नए देश की मान्यता...

प्रवीण कुमार तिवारी गुठनी, एक संवाददाता। पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में भाषा आधार पर 1948 से 1952 तक आन्दोलन हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से को बांग्लादेश के रूप में 16 दिसंबर 1971 नए देश की मान्यता मिली। इसके लिए भारत ने मुक्ति वाहिनी सेना भेज कर बांग्लादेश को आजाद कराया। इस जंग में इसमें प्रखंड के बलुआ गांव निवासी रिटायर्ड ऑनरेरी कैप्टन मार्कण्डेय त्रिपाठी ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने बताया कि 1971 में मुक्ति वाहिनी में वे आर्टिलरी डिपार्टमेंट में तैनात थे। जैसे ही सेना को मार्च करने का हुक्म मिला। उनकी पूरी बटालियन बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए निकल पड़ी।
उन्होंने उस समय की कठिनाइयां, युद्ध क्षेत्र की विभीषिका, जवानों का संघर्ष, भूखे प्यासे जीवन और आमने-सामने की लड़ाई का जिक्र किया। और कहां की कई दिनों तक लगातार पैदल ही चलना पड़ा और लगातार भूखे प्यासे भी रहना पड़ा। इस दौरान आमने-सामने की लड़ाई में कई पाकिस्तानी सैनिक मारे भी गए। बाद में उनके द्वारा आत्मसमर्पण भी कर दिया गया। उन्होंने 1971 की लड़ाई को याद करते हुए कहा कि वह युद्ध के समय बिल्कुल युवा थे। देश सेवा की भावना इतनी प्रबल थी कि उसके आगे कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रिटायर्ड ऑनरेरी कैप्टन मार्कण्डेय त्रिपाठी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वक्तव्य को भी याद किया और कहा कि उनके आदेश के बाद सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। उन्होंने केंद्र सरकार से पाकिस्तान के विरुद्ध रणनीतिक और वैश्विक आधार पर कार्रवाई करने का आग्रह किया। कहा कि पाकिस्तान को पूरी तरह कुचलकर ही आतंकवाद की समस्याओं को खत्म किया जा सकता है।
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