जिसके घर बम फटा उसे ही बना दिया आरोपित, मानवाधिकार आयोग पहुंचा मामला; खबर को समझिए
पूर्वी चंपारण जिला के कुंडवा चैनपुर थाना के जटवलिया गांव बुजुर्ग कपिलदेव दुबे के घर पर 13 अप्रैल की रात लूटपाट व बम विस्फोट के मामले में पुलिस ने उन्हें व उनकी पत्नी मालती देवी को ही आरोपित बना दिया है।

बिहार के पूर्वी चंपारण पुलिस की कार्यशैली के खिलाफ राज्य मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत की गयी है। पूर्वी चंपारण जिला के कुंडवा चैनपुर थाना के जटवलिया गांव बुजुर्ग कपिलदेव दुबे के घर पर 13 अप्रैल की रात लूटपाट व बम विस्फोट के मामले में पुलिस ने उन्हें व उनकी पत्नी मालती देवी को ही आरोपित बना दिया है। पुलिस पर आरोप है कि कपिलदेव दुबे की ओर से प्राथमिकी के लिए दिए गए आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और पुलिस ने अपने मन से पीड़ित को ही आरोपित बना दिया। वरीय अधिकारियों से शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पीड़ित परिवार ने पुलिस की कार्यशैली के विरुद्ध बिहार राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में अलग-अलग याचिका दाखिल की है। याचिका दाखिल करने में कानूनी सहायता दे रहे मानवाधिकार मामले के अधिवक्ता एसके झा ने बताया कि कपिलदेव दुबे ने अपनी पोती की शादी के लिए गहना, कपड़ा व बर्तन घर में रखा था।
कपिलदेव दूबे ने बताया कि दो महीने से वे अपने परिवार के साथ बाहर थे। इस बीच उन्हें जानकारी मिली कि 13 अप्रैल की रात लगभग 11 बजे गांव के कुछ लोगों ने उनके घर में लूटपाट की और बम विस्फोट किया। इसकी जानकारी मिलने पर जब वे घर पर आए तो आरोपितों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कुंडवा चैनपुर थाना में आवेदन दिया।
कपिलदेव दूबे ने बताया कि दो महीने से वे अपने परिवार के साथ बाहर थे। इस बीच उन्हें जानकारी मिली कि 13 अप्रैल की रात लगभग 11 बजे गांव के कुछ लोगों ने उनके घर में लूटपाट की और बम विस्फोट किया। इसकी जानकारी मिलने पर जब वे घर पर आए तो आरोपितों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कुंडवा चैनपुर थाना में आवेदन दिया।
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उन्होंने आरोप लगाया गया है कि कांड के असली आरोपितों के मेल में आकर पुलिस उनके आवेदन पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की। उल्टे उन्हें और उनकी पत्नी के विरुद्ध ही प्राथमिकी दर्ज कर आरोपित बना दिया। इससे उन्हें मानसिक पीड़ा पहुंची है और बेवजह केस पर पैसा खर्च करना पड़ रहा है। उन्होंने इसकी शिकायत पूर्वी चंपारण के एसपी से की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। थक हारकर उन्हें मानवाधिकार आयोग की शरण में जाना पड़ा।