Hindustan aajkal column by Shashi shekhar 27 April 2025 भरोसा कायम रखने का वक्त, Editorial Hindi News - Hindustan
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भरोसा कायम रखने का वक्त

कश्मीर में अनुच्छेद 370 की विदाई के बाद से जिस तेजी से विकास हुआ है, उससे वहां के नौजवानों में उम्मीद जग पड़ी है कि वे भी समूचे देश के साथ कदमताल कर सकते हैं। पहलगाम के हमले ने उनकी नेक उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। यही वजह है कि पूरे देश के साथ …

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानSat, 26 April 2025 08:39 PM
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भरोसा कायम रखने का वक्त

‘पहलगाम में हमला सिर्फ निहत्थे पर्यटकों पर नहीं, देश के दुश्मनों ने भारत की आत्मा पर हमला करने का दुस्साहस किया है। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूं कि जिन्होंने यह हमला किया है, उन आतंकियों और साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी। 140 करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति अब आतंक के आकाओं की कमर तोड़कर रहेगी।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ये शब्द मधुबनी की धरती पर बोल रहे थे, तब उनके चेहरे पर गुस्से की गहन छाया साफ देखी जा सकती थी। यह पहला मौका था, जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक सभा में ऐसे कठोर शब्द बोले। ये ताकतवर वाक्य उन लोगों के जख्मों पर मरहम की तरह थे, जिन्होंने अपने घर के लोग खोए हैं। ये अल्फाज आहत देशवासियों को भी भरोसा दिला रहे थे कि हम सिर्फ कूटनीतिक कार्रवाई तक नहीं रुकेंगे।

मोदी क्या करने जा रहे हैं?

इस सवाल का जवाब देना नामुमकिन है, लेकिन इतना तय है कि जो होगा, वह अप्रत्याशित और अकल्पनीय होगा। भरोसा न हो, तो 15 फरवरी, 2019 की ओर लौटें। समूचा देश उस वक्त पुलवामा में 40 सीआरपीएफ के जवानों की हत्या से आहत था। उस दिन नई दिल्ली और वाराणसी के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाते हुए उन्होंने कहा था- आतंक के दोषियों और उन्हें मदद देने वाले को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। सुरक्षाबलों को कार्रवाई की पूरी छूट दे दी गई है। पाकिस्तान इस भ्रम में न रहे कि वह भारत को अस्थिर कर सकता है। पाकिस्तान सहित कुछ सियासतदां इसे महज चुनावी भाषण मानने की भूल कर बैठे थे। अगले दस दिन के भीतर बालाकोट में जो हुआ, उसे पूरी दुनिया ने अचरज से देखा।

इससे पहले भारत आतंकवाद से आहत होने के बाद बस गाल बजाकर रह जाता था। इस बार हमारी वायुसेना ने पाकिस्तान की सीमा के भीतर घुसकर न केवल निर्धारित ऑपरेशन को अंजाम दिया, बल्कि सरकार ने उसे दुनिया को बताने और जताने में कोई संकोच नहीं किया था। यह भारतीय रणनीति में सार्थक बदलाव का लम्हा था। तय हो चुका था कि अब भारत-भूमि को रक्त-स्नान कराने वाले कहीं भी हों, बख्शे नहीं जाएंगे। जरूरी हुआ, तो इसके लिए हम सीमा पार करने से कतई नहीं हिचकेंगे।

पुलवामा को छह बरस बीत चुके हैं। इस दौरान दुनिया और उसके तौर-तरीकों में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है। यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई और इजरायल के गाजा सैन्य अभियान ने विश्व राजनय के सिद्धांतों को नया चोला पहना दिया है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बेहद दबाव के बावजूद न पुतिन झुके और न ही नेतन्याहू। उनकी फौजें आज भी अपने ‘दुश्मनों’ का सफाया करने में जुटी हैं। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ग्रीनलैंड और कनाडा को हथियाने का दंभ खुल्लमखुल्ला भरते हैं। क्या भारत ऐसा कर सकेगा?

इस पर अभी कोई टिप्पणी मुनासिब नहीं होगी, मगर यह जान लीजिए कि पाकिस्तानी परमाणु बम और उसके दुरुपयोग की धमकियां मोदी की राह नहीं रोक सकतीं। वह पहले ही सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के जरिये इसकी मुनादी कर चुके हैं। दुनिया के अन्य देश भी पाकिस्तान की इस गीदड़ भभकी से आजिज आ चुके हैं। यह अकारण नहीं है कि पहलगाम नरसंहार के बाद विश्व के सभी प्रमुख देशों ने भारत और भारतीयों के साथ एकजुटता दिखाई है। इस साथ का बदली हुई परिस्थितियों में बेहतरीन उपयोग किया जा सकता है।

देश के अंदर भी प्रमुख विपक्षी नेताओं ने सरकार से कड़ी कार्रवाई की उम्मीद करते हुए एकजुटता दिखाई है। मैं कभी युद्ध का समर्थन नहीं करता और यह भी मानता हूं कि मीडिया के दबाव या जन-इच्छाओं से लड़ाइयां नहीं लड़ी जानी चाहिए, लेकिन जब पानी नाक तक चढ़ आए, तो फिर हाथ-पैर हिलाने ही पड़ते हैं। यह समय सरकार के साथ एकजुट होकर खड़े होने का है। पहलगाम में जान गंवाने वालों को इससे बेहतर कोई और श्रद्धांजलि नहीं हो सकती।

यहां उन खलनायकों का जिक्र जरूरी है, जो इस नेक काम में रोड़े अटकाने की बचकानी कोशिशें कर रहे हैं।

मधुबनी में प्रधानमंत्री की गर्जना से ऐन पहले की रात आगरा में कुछ लोगों ने बिरयानी बेचने वाले एक कारोबारी की हत्या कर दी। उसका सहायक भी गोली लगने से घायल हो गया। इस घटना के तत्काल बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल होता है। इसके जरिये खुद को एक कल्पित हिंदूवादी संगठन का ताबेदार बताते हुए दो सशस्त्र युवक इस हत्याकांड को पहलगाम नरमेध से जोड़ते हुए, सांप्रदायिक विषवमन कर रहे थे। उसी दिन नोएडा के तमाम लोगों को एक रिकॉर्डेड कॉल मिली थी। उसमें भी एक धर्म विशेष के लिए जहर बोला गया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने दोनों मामलों में रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है। हो सकता है कि जब तक ये पंक्तियां आप तक पहुंचें, दोषी धरे जा चुके हों, पर वे अकेले नहीं हैं।

सोशल मीडिया के जरिये धार्मिक उन्माद फैलाने वाले सैकड़ों हैंडल इस समय सक्रिय हैं। ये लोग जाने-अनजाने उन दहशतगर्दों का काम आसान कर रहे हैं, जो कश्मीर को सिर्फ देश की मुख्यधारा से अलग नहीं करना चाहते, बल्कि समूचे मुल्क को सांप्रदायिकता की आग में झोंकना चाहते हैं। पहलगाम की बैसरन घाटी में जिस अपमानजनक तरीके से धार्मिक पहचान पता कर गोलियों से भूना गया,उससे नाराजगी स्वाभाविक है। इसके बावजूद हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि सैलानियों की रक्षा के लिए भिड़ पड़े एक कश्मीरी युवक को उस दौरान जान गंवानी पड़ी। पीड़ितों को फौरी मदद भी स्थानीय लोगों से मिली। वे सभी मुसलमान थे।

इससे पहले ऐसा कम देखने को मिलता था।

कश्मीर में अनुच्छेद 370 की विदाई के बाद से जिस तेजी से विकास हुआ है, उससे वहां के नौजवानों में उम्मीद जग पड़ी है कि वे भी समूचे देश के साथ कदमताल कर सकते हैं। पहलगाम के हमले ने उनकी इन नेक उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। यही वजह है कि पूरे देश के साथ कश्मीर घाटी भी गुस्से से तप रही है। हमले के दिन ही लोग सड़कों पर ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारों के साथ उतर पड़े थे। वे आम कश्मीरी थे, जिन्होंने अगले दिन कश्मीर बंद का आह्वान किया। उन्हें पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते देख मुझे वे दिन याद आ गए, जब घाटी में सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराया करते थे। हमें कश्मीरियों की इस राष्ट्रभावना का सम्मान करना चाहिए।

इस बीच कुछ खबरें यह भी आईं कि अन्य प्रदेशों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों के साथ कुछ लोगों ने बदसलूकी करने की कोशिश की। इस तरह की हर हरकत को कड़ाई से रोकना होगा। हमें पीड़ित परिवारों के साथ कश्मीर के लोगों का भी भाईचारे की भावना से साथ देना होगा, क्योंकि उन्होंने शेष भारत से अधिक ‘अपने’ खोए हैं और हर किस्म का नुकसान उठाया है।

ध्यान रहे, यह समय एकजुटता का है, अलगाव का नहीं।

@shekharkahin

@shashishekhar.journalist

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