नौकरी की चिंता
- पश्चिम बंगाल में करीब पच्चीस हजार शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय ने जैसी संवेदना के साथ विचार किया है, उसकी सराहना होनी चाहिए…

पश्चिम बंगाल में करीब पच्चीस हजार शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय ने जैसी संवेदना के साथ विचार किया है, उसकी सराहना होनी चाहिए। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को निरस्त कर दिया था। अब अगर नियुक्तियों को अगले आदेश तक के लिए फिर बहाल कर दिया गया है, तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि अदालत को बच्चों की पढ़ाई की चिंता है। खास तौर पर नौवीं-दसवीं और ग्यारहवीं-बारहवीं के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों का बहुत टोटा हो जाता, क्योंकि निरस्त नियुक्तियों वाले शिक्षकों में इन कक्षाओं में पढ़ाने वाले ज्यादा हैं। अत: ताजा फैसला बिल्कुल सही है। शीर्ष अदालत के आदेश के बाद अपनी नौकरी गंवाने वाले बेदाग सहायक शिक्षक पढ़ाना जारी रख सकते हैं। ध्यान रहे, अदालत को नियुक्तियों में हुए घोटाले को लेकर तनिक भी शक नहीं है, घोटाला तो हुआ है और नई नियुक्तियां भी जरूर होंगी। अभी अदालत ने यही कहा है कि यह फैसला छात्रों के हित में लिया गया है। बेशक, अगर छात्रों के हित का ध्यान नहीं रखा जाता, तो पश्चिम बंगाल में लाखों छात्र-छात्राओं को पढ़ाई का नुकसान होता। यह फैसला छात्रों को भी सुकून पहुंचाएगा और योग्य शिक्षक भी कुछ समय तक अपनी नौकरी को लेकर आश्वस्त रहेंगे।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना व न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मानवीयता के आधार पर छात्रों और शिक्षकों की प्रार्थना को स्वीकार किया है। अदालत के आदेश पर पश्चिम बंगाल सरकार को 31 मई तक नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी है और 31 दिसंबर तक प्रक्रिया को पूरा कर लेना है। वाकई, जो योग्य शिक्षक हैं, जो विगत आठ वर्ष से पढ़ा रहे हैं, उन्हें नौकरी से निकालना अमानवीय ही कहा जाएगा, लेकिन यह पश्चिम बंगाल सरकार की विफलता है कि वह योग्य और अयोग्य शिक्षकों के बीच अंतर करने में नाकाम रही। जो अयोग्य शिक्षक थे, उनके चलते योग्य शिक्षकों की भी नौकरी खतरे में है। अक्सर ऐसा होता है कि चंद अयोग्य लोग पूरी व्यवस्था पर दाग लगा देते हैं। अभी इस भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है और जैसी सूचनाएं सामने आ रही हैं, उनसे कतई आश्चर्य नहीं होता। भर्ती में लगभग हर स्तर पर ईमानदारी का मखौल उड़ाया गया है। योग्य छात्रों को नियुक्त नहीं किया गया, जबकि अयोग्य छात्रों को सेवा का मौका मिल गया। योग्य शिक्षकों की यह शिकायत बिल्कुल जायज है कि उनकी दुर्दशा का कारण स्कूल सेवा आयोग की अक्षमता है। इस मामले में दोषियों को अवश्य दंड मिलना चाहिए। ऐसा न हो कि निर्दोष की नौकरी चली जाए और दोषियों की नौकरी आराम से चलती रहे।
नियुक्तियों में किसी भी प्रकार की बेईमानी वास्तव में युवाओं के मनोबल को तोड़कर उन्हें भ्रष्ट आचरण की ओर धकेलती है। आज शायद ही कोई ऐसा राज्य है, जहां नियुक्तियों को लेकर विवाद न हो और भर्तियों की शिकायत अदालत तक न पहुंचती हो। भर्तियों में भ्रष्टाचार हमेशा से रहा है और भ्रष्ट अधिकारियों व नेताओं पर नकेल कसने में व्यवस्था एक हद तक नाकाम रही है। परीक्षाओं के डिजिटल दौर में ऐसी नाकामी को दूर कर पारदर्शिता सुनिश्चित होनी चाहिए। निगाह सीबीआई पर भी है, जो पश्चिम बंगाल के बेशर्म शिक्षक घोटाले की जांच कर रही है। सीबीआई शिक्षा में स्थायी सुधार के मकसद से दूध का दूध और पानी का पानी करे। वहां अगर दोषियों को कड़ी सजा मिलती है, तो उसका संदेश पूरे देश में जाएगा।
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