आर्टिकल 142 पर क्यों है इतनी चर्चा, कैसे SC को मिल जाती है 'सुप्रीम' पावर; समझें पूरी बात
- उपराष्ट्रपति ने तो इस मामले पर बात करते हुए दिल्ली के जस्टिस यशवंत वर्मा के यहां कैश पाए जाने का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आखिर एक महीना हो गया है और कैश कांड में अब तक क्या हुआ है। एक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। आइए अब जानते हैं कि आखिर आर्टिकल 142 क्या है, जिसे लेकर इतना विवाद है।

तमिलनाडु में 10 विधेयकों को राज्यपाल की तरफ से रोके जाने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश दिया था। अदालत ने संविधान के आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि किसी भी विधेयक को दूसरी बार पारित करके भेजे जाने के बाद राज्यपाल के पास रोके रखने का अधिकार नहीं है। यही नहीं विधेयकों को यदि राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा जाए तो उन्हें तीन महीने के अंदर मंजूर किया जाए। यदि उन्हें मंजूरी नहीं दी जाती है तो फिर यह कारण बताया जाए कि ऐसा क्यों किया जा रहा है। यही नहीं अदालत ने यह भी कहा था कि राष्ट्रपति किसी विधेयक की संवैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट से भी राय ले सकते हैं। शीर्ष अदालत की इसी राय को लेकर आपत्ति जताई जा रही है और उपराष्ट्रपति ने तो स्पष्ट कहा कि यह अदालत के हाथ परमाणु हथियार लगने जैसा है।
उपराष्ट्रपति ने तो इस मामले पर बात करते हुए दिल्ली के जस्टिस यशवंत वर्मा के यहां कैश पाए जाने का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आखिर एक महीना हो गया है और कैश कांड में अब तक क्या हुआ है। एक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई। आइए अब जानते हैं कि आखिर आर्टिकल 142 क्या है, जिसे लेकर इतना विवाद है। वह कैसे सुप्रीम कोर्ट को देता है इतनी पावर...
अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है, जो उसके समक्ष लंबित किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक है। इस प्रकार पारित कोई डिक्री या दिया गया आदेश भारत के संपूर्ण क्षेत्र में लागू होगा। ऐसे आदेश को संसद की ओऱ से पारित ऐक्ट से ही खारिज किया जा सकता है। इसी को सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीम पावर के तौर पर देखा जाता है। यही नहीं इसी के तहत अदालत को यह शक्ति भी मिलती है कि वह किसी को भी अदालत में पेश होने का आदेश दे या फिर उचित दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहे। वह किसी को भी अदालत की अवमानना के केस में दंडित भी कर सकती है।
वाइस प्रसिडेंट ने इसी प्रावधान का हवाला देते हुए गुरुवार को कहा था कि अदालत के हाथ में परमाणु हथियार लग गया है। ऐसा लगता है कि कुछ जज संसद की तरह की काम करना चाहते हैं। अदालत सुपर संसद बन गई है। वह भी तब जबकि उनकी कोई जवाबदेही नहीं है और उनके ऊपर कोई कानून भी लागू नहीं होता। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि आप राष्ट्रपति को आदेश दें। आखिर किस आधार पर आप ऐसा कर सकते हैं। जगदीप धनखड़ ने कहा कि हाल ही में एक फैसला आया है, जिसमें राष्ट्रपति को ही आदेश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें संवेदनशील होना होगा। क्या हमने लोकतंत्र के लिए संघर्ष इस दिन के लिए किया है। राष्ट्रपति से समयबद्ध निर्णय लेने को कहा जा रहा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनके समक्ष प्रस्तुत विधेयक कानून बन जाएगा। उनके इस बयान पर विपक्ष ने हमला बोला है।