पहाड़ों के अंदर हैं ईरान के परमाणु ठिकाने, ऐसे खत्म नहीं कर पाएगा इजरायल; US की मदद क्यों जरूरी?
ईरान के परमाणु ठिकाने पहाड़ों और बंकरों में सुरक्षित हैं, जिन्हें इजरायल अकेले नष्ट नहीं कर सकता। अमेरिका की उन्नत हथियारों, खुफिया जानकारी और राजनयिक समर्थन की मदद इसके लिए जरूरी है।

मध्य पूर्व में तनाव का केंद्र रहे ईरान और इजरायल के बीच तनातनी अब एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम दशकों से वैश्विक शक्तियों के लिए चिंता का विषय रहा है। अब ये इजरायल के निशाने पर है। इजरायल ने शुक्रवार सुबह ईरान की राजधानी पर हमला कर दिया और देश के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाया जिसके बाद पश्चिम एशिया के दो कट्टर विरोधियों के बीच एक व्यापक युद्ध की आशंका तेज हो गई है। इसे 1980 के दशक में इराक के साथ युद्ध के बाद ईरान पर सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। इजरायल ने ईरान के मुख्य परमाणु संवर्धन केंद्र को भी निशाना बनाया और हमले के बाद वहां से काला धुआं हवा में उठता देखा गया। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल के लिए ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करना इतना भी आसान नहीं है। आइए विस्तार से समझते हैं।
ईरान के परमाणु ठिकाने: पहाड़ों की आड़ में सुरक्षा
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अपनी जटिलता और गोपनीयता के लिए जाना जाता है। विशेष रूप से, इसके दो प्रमुख ठिकाने- नतांज और फोर्डो पहाड़ों और गहरी चट्टानों के नीचे बनाए गए हैं, जो इन्हें बाहरी हमलों से सुरक्षित बनाते हैं। इजरायल ने ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के उद्देश्य से ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ प्रारंभ करने की घोषणा की, साथ ही इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शुक्रवार को दावा किया कि नतांज स्थित ईरान के मुख्य संवर्धन केंद्र सहित अन्य ठिकानों पर हमला किया गया है।
नतांज: यह ईरान का सबसे बड़ा यूरेनियम संवर्धन केंद्र है, जो इस्फहान प्रांत में स्थित है। यह फैसिलिटी जमीन के नीचे बंकरों में बनाई गई है, जिसे कई मीटर मोटी कंक्रीट और चट्टानों की परतें सुरक्षा प्रदान करती हैं। नतांज पहले भी साइबर हमलों (जैसे स्टक्सनेट वायरस) और रहस्यमयी विस्फोटों का शिकार हो चुका है, लेकिन इसकी गहरी संरचना इसे आसानी से नष्ट करने से बचाती है।
फोर्डो: कुम शहर के पास पहाड़ी इलाके में स्थित फोर्डो, ईरान का सबसे सुरक्षित परमाणु ठिकाना माना जाता है। पहाड़ को काटकर बनाए गए इस केंद्र को निशाना बनाना लगभग असंभव है, क्योंकि यह प्राकृतिक और कृत्रिम किलेबंदी से घिरा हुआ है। इसका उद्देश्य यूरेनियम को उच्च स्तर तक संवर्धित करना है, जो परमाणु हथियार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
इन ठिकानों की भौगोलिक स्थिति और मजबूत संरचना के कारण पारंपरिक हथियारों से इन्हें नष्ट करना मुश्किल है। विशेष रूप से, बंकर-बस्टर बम जैसे हथियारों की आवश्यकता होती है, जो गहरी संरचनाओं को भेद सकें। इजरायल के पास ऐसे हथियारों की कमी है, जिसके कारण वह अकेले इस मिशन को अंजाम देने में सक्षम नहीं है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज में नॉनप्रोलिफरेशन और बायोडिफेंस प्रोग्राम की उप निदेशक एंड्रिया स्ट्रिकर के अनुसार, "ईरान की परमाणु सुविधाओं को नष्ट करने के लिए कई दिनों तक फाइटर जेट्स से बमबारी या मिसाइल हमले की जरूरत होगी। विशेष रूप से फोर्डो संवर्धन स्थल पर जोकि 60 से 90 मीटर की गहराई पर है। इसके अलावा, नतांज के पास एक नया यूरेनियम संवर्धन स्थल है जो 100 मीटर से अधिक गहराई पर पहाड़ के नीचे है। उसको नष्ट करने के लिए भारी बंकर बस्टर बमों की आवश्यकता होगी।" स्ट्रिकर ने यह भी कहा कि अमेरिका के पास सबसे शक्तिशाली बंकर बस्टर बम हैं, लेकिन इजरायल भी अपने दम पर कुछ हद तक हमले करने में सक्षम है। एंड्रिया स्ट्रिकर ने चेताते हुए कहा कि “ईरान शायद इजरायली सैन्य ठिकानों, बेसों या कमांड सेंटरों को निशाना बनाएगा। लेकिन अगर वह आम नागरिक इलाकों पर हमला करता है, तो वह पूरी तरह आतंक फैलाने का इरादा दिखाएगा।”
इजरायल की सैन्य चुनौतियां
इजरायल की सैन्य ताकत दुनिया में सबसे एडवांस मानी जाती है। 1976 के एंटेबे ऑपरेशन और 1981 में इराक के ओसिरक रिएक्टर पर हमले जैसे उदाहरण इसकी क्षमता को दर्शाते हैं। हालांकि, ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने में कई चुनौतियां हैं।
दूरी की बाधा: ईरान, इजरायल से लगभग 1,000 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को पार करने के लिए इजरायली वायुसेना को लंबी दूरी के लड़ाकू विमानों, हवा में ईंधन भरने की क्षमता और जटिल लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता होगी।
हथियारों की कमी: नतांज और फोर्डो जैसे गहरे बंकरों को नष्ट करने के लिए GBU-57 मासिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) जैसे बमों की जरूरत होती है, जो केवल अमेरिका के पास हैं। इजरायल के पास ऐसे हथियार नहीं हैं जो इन ठिकानों को प्रभावी ढंग से नष्ट कर सकें।
ईरान की हवाई रक्षा: ईरान ने अपने परमाणु ठिकानों की सुरक्षा के लिए एडवांस हवाई रक्षा प्रणालियां तैनात की हैं। सीरिया और इराक में इजरायल के पिछले हमलों से सबक लेते हुए, ईरान ने अपने ठिकानों को और मजबूत किया है।
खुफिया जानकारी की चुनौती: इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करने के लिए कई गुप्त अभियान चलाए हैं, जिसमें वैज्ञानिकों की हत्या और साइबर हमले शामिल हैं। हाल के एक ऑपरेशन, राइजिंग लायन, में इजरायल ने कथित तौर पर दो परमाणु वैज्ञानिकों, मोहम्मद मेहदी तेहरानची और फेरेयदून अब्बासी, को निशाना बनाया। फिर भी, ईरान के परमाणु ठिकानों की सटीक जानकारी और हमले की योजना बनाना एक जटिल कार्य है।
हाल के घटनाक्रम: ऑपरेशन राइजिंग लायन
13 जून को इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमले किए, जिसे ऑपरेशन राइजिंग लायन नाम दिया गया। इस अभियान में इजरायली वायुसेना ने तेहरान और नतांज सहित कई स्थानों पर हमले किए, जिसमें ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुसैन सलामी, सेना प्रमुख मोहम्मद बाघेरी, और कई परमाणु वैज्ञानिकों की मौत की पुष्टि हुई। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि यह हमला ईरान के परमाणु हथियार बनाने की योजना को रोकने के लिए किया गया, क्योंकि खुफिया जानकारी के अनुसार ईरान 15 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त फिसाइल सामग्री जमा कर चुका था।
हालांकि, इन हमलों का प्रभाव सीमित रहा। नतांज और फोर्डो जैसे ठिकानों को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा, क्योंकि उनकी गहरी संरचना और मजबूत सुरक्षा ने इजरायल के पारंपरिक हथियारों को प्रभावी होने से रोका। यह घटना इस बात का सबूत है कि इजरायल के लिए इन ठिकानों को पूरी तरह नष्ट करना अकेले संभव नहीं है।
अमेरिका की भूमिका: क्यों जरूरी है सहायता?
अमेरिका के पास B-2 स्टेल्थ बॉम्बर और GBU-57 MOP जैसे हथियार हैं, जो गहरे बंकरों को नष्ट करने में सक्षम हैं। ये हथियार इजरायल के पास उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, अमेरिका के पास हवा में ईंधन भरने की क्षमता वाले विमान हैं, जो लंबी दूरी के मिशनों के लिए आवश्यक हैं।
अमेरिका की खुफिया एजेंसियां, जैसे CIA, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर गहरी नजर रखती हैं। हाल के खुफिया इनपुट्स में यह सामने आया कि इजरायल ईरान के ठिकानों पर हमले की योजना बना रहा है, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों में इस बात पर मतभेद हैं कि क्या इजरायल ऐसा करेगा। अमेरिका की सैटेलाइट और ड्रोन तकनीक इजरायल को सटीक जानकारी प्रदान कर सकती है।
अमेरिका ने हमेशा इजरायल को सैन्य और राजनयिक समर्थन दिया है। हाल के वर्षों में, अमेरिका ने हिंद महासागर के डिएगो गार्सिया द्वीप पर अपने B-2 स्टेल्थ बॉम्बर तैनात किए हैं, जो ईरान और इजरायल दोनों से कुछ ही घंटों की दूरी पर है। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कूटनीति को प्राथमिकता देने की बात कही है और ईरान के साथ परमाणु समझौते की वकालत की है।
ईरान की जवाबी क्षमता
ईरान ने दावा किया है कि उसकी खुफिया एजेंसियों ने इजरायल के परमाणु ठिकानों की जानकारी हासिल कर ली है और वह जवाबी हमले के लिए तैयार है। ईरान के पास बैलिस्टिक मिसाइलें, जैसे फतह मिसाइल, हैं, जो इजरायल तक पहुंच सकती हैं। इसके अलावा, ईरान के सहयोगी समूह, जैसे हिजबुल्लाह और हूती विद्रोही, क्षेत्र में इजरायल के खिलाफ सक्रिय हैं, जो युद्ध को और जटिल बना सकते हैं।
एक जटिल और खतरनाक समीकरण
ईरान के परमाणु ठिकाने, जो पहाड़ों और बंकरों की आड़ में छिपे हैं, इजरायल के लिए एक असाधारण सैन्य चुनौती पेश करते हैं। हाल के हमलों, जैसे ऑपरेशन राइजिंग लायन, ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को झटका दिया है, लेकिन इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए इजरायल को अमेरिका की तकनीकी, खुफिया और सैन्य सहायता की जरूरत है। दूसरी ओर, अमेरिका इस क्षेत्र में तनाव को कम करने के लिए कूटनीति पर जोर दे रहा है, क्योंकि एक गलत कदम तीसरे विश्व युद्ध को भड़का सकता है।
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