Is rice becoming poison There is a fear of getting cancer by eating rice in these countries including India report says 'जहर' बनता जा रहा चावल, भारत समेत इन देशों में खाने से कैंसर होने का डर; रिपोर्ट ने चौंकाया, International Hindi News - Hindustan
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'जहर' बनता जा रहा चावल, भारत समेत इन देशों में खाने से कैंसर होने का डर; रिपोर्ट ने चौंकाया

  • जिस चावल को हम सेहतमंद समझकर रोज खाते हैं, वही जहर बनता जा रहा है। एक नई रिपोर्ट ने चेताया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते चावल में जहरीले आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है, जिससे कैंसर होने का खतरा बढ़ गया है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानTue, 22 April 2025 03:40 PM
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'जहर' बनता जा रहा चावल, भारत समेत इन देशों में खाने से कैंसर होने का डर; रिपोर्ट ने चौंकाया

दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी का पेट जिस चावल से भरता है, अब वही चावल एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन सकता है। हाल ही में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते चावल में जहर जैसे आर्सेनिक की मात्रा बढ़ती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो साल 2050 तक सिर्फ चीन में ही करीब 1 करोड़ 93 लाख लोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट में भारत समेत अन्य एशियाई देशों में भी बढ़ते खतरे का संकेत दिया है।

आर्सेनिक कोई नया तत्व नहीं है। यह जमीन, पानी और हवा में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। लेकिन जब धान की खेती होती है, तो मिट्टी से यह आर्सेनिक पौधों के जरिए चावल में पहुंच जाता है। वैसे तो यह मात्रा मामूली होती है, लेकिन अगर लगातार सालों तक शरीर में जाता रहे, तो ये गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, फेफड़ों की बीमारियां और हृदय रोग को जन्म दे सकता है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लुईस जिस्का ने इस रिसर्च का नेतृत्व किया और बताया कि बढ़ती गर्मी और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर चावल को जहरीला बना रहा है। रिसर्चर्स ने चीन के चार अलग-अलग हिस्सों में 28 प्रकार के धान की किस्में उगाईं और 10 साल तक निगरानी की। नतीजा चौंकाने वाला था। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ी, चावल में आर्सेनिक की मात्रा भी बढ़ गई।

लोगों को बीमार कर रहा चावल में घुला जहर

इसके बाद शोधकर्ताओं ने एशिया के उन सात देशों जैसे- भारत, बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया, म्यांमार और फिलीपींस पर ध्यान केंद्रित किया जहां चावल का उपभोग सबसे ज्यादा होता है। उन्होंने इन देशों में प्रति व्यक्ति चावल की खपत के आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया कि भविष्य में लोगों के स्वास्थ्य पर इसका कितना गहरा असर पड़ सकता है।

स्टडी में पाया गया कि इन सभी देशों में चावल में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा सीधे तौर पर मूत्राशय, फेफड़े और त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के बढ़ते मामलों से जुड़ी हुई है। लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि आर्सेनिक सिर्फ कैंसर का ही नहीं, बल्कि मधुमेह, गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं, बच्चों के मस्तिष्क विकास में रुकावट, कमजोर इम्यून सिस्टम और कई अन्य जानलेवा बीमारियों का भी बड़ा कारण बन सकता है।

इस रिपोर्ट ने साफ किया है कि अगर चावल में आर्सेनिक की मात्रा पर काबू नहीं पाया गया, तो ये देश भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ये खतरा सिर्फ भारत-चीन या एशिया तक सीमित नहीं है। यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में भी जहां जमीन में कम आर्सेनिक है, वहां भी चावल इंसानों के शरीर में अकार्बनिक आर्सेनिक पहुंचाने का बड़ा स्रोत बनता जा रहा है।

तो क्या चावल खाना छोड़ दें?

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद लोगों के जेहन में यह बात जरूर घूम रही होगी, जिसका जवाब है नहीं। लेकिन सावधानी जरूरी है। रिसर्च में बताया गया है कि चावल को अच्छी तरह से धोकर, पहले पांच मिनट उबालकर पानी निकाल दें, फिर नए पानी में पकाएं, तो आर्सेनिक की मात्रा काफी हद तक घटाई जा सकती है। शैफील्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रक्रिया से लाल चावल से 50% और सफेद चावल से 74% तक आर्सेनिक हटाया जा सकता है। बासमती चावल और पूर्वी अफ्रीका के कुछ इलाकों के चावलों में आर्सेनिक की मात्रा वैसे भी कम पाई गई है। हालांकि, सफेद चावल में पोषक तत्व लाल चावल से कम होते हैं, लेकिन इसमें आर्सेनिक भी कम होता है।

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