बोले बोकारो: बीएसएल व प्रशासन मंच दे तो रंगमंच का जमेगा रंग
बोकारो के रंगकर्मियों को रंगमंच के अभाव में निराशा का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय कलाकारों के लिए उचित मंच नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी प्रतिभा का विकास नहीं हो पा रहा है। सेक्टर टू कला केंद्र में...

रंगमंच के अभाव में बोकारो के रंगकर्मी का रंग बैरंग हो रहा है। कवि-कवियत्री, नाटककार, साहित्यकार, चित्रकार, शिल्पकार, संगीतकार, गीतकार सहित अन्य कलाकारों को बोकारो की धरती से निराशा मिल रही है। बोकारो में नाटक आदि कार्यक्रम के लिए एक ही स्थान फिलहाल बेहतर है वह है सेक्टर टू कला केंद्र। जिसमें किसी कार्यक्रम के लिए मोटी फी देने के बाद ही कलाकारों को आयोजन के लिए यह स्थान मिलता है। ऐसे में छोटे स्तर के कलाकारों को अपनी प्रतिभा निखारने व बिखेरने के लिए मंच नहीं मिल पाता है। इसके अलावा सेक्टर फाइव का बोकारो क्लब का भी दरवाजा इन कलाकारों के लिए नहीं खुल रहा है। जिला प्रशासन संगीत व अन्य कला के लिए कोई विशेष पहल करते नहीं दिख रही है। सरकार द्वारा निर्मित टाउन हॉल के स्टेज की बनावट ऐसी है कि इसमें ऐसे कार्यक्रमों को सपोर्ट नहीं मिलेगा। उक्त बातें बोकारो के कलाकारों ने बोले बोकारो के तहत हिन्दुस्तान संवाद में कही।
घुणपोका साहित्य पत्रिका के सदस्यों ने बोकारो के कलाकरों के दर्द को रखा। कहा कि बोकारो सांस्कृतिक कलचर जैसे गीत-संगीत, नाटक, कविता आदि के विकास को लेकर लगतार नीचे पायदान की ओर फिसलता जा रहा है। इन कलाओं को ऊपर उठाने के लिए किसी के द्वारा कोई पहल नहीं किया जा रहा है। यहीं हाल रहा तो एक समय ऐसा आयेगा, जब बोकारो कलाकार विहीन हो जाएगा। नये जनरेशन को इस क्षेत्र में बोकारो का सपोर्ट नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। एक तरह से कहें तो कला का भ्रूण हत्या जैसा माहौल है। कलाकारों को जब तक मंच नहीं मिलेगा, कलाकार स्वयं को निखार नहीं सकेंगे। बोकारो में कई दिनों तक पूजा पंडाल से लेकर अन्य तरह का मेला उत्सव का आयोजन किया जाता है। उन संस्थाओं द्वारा भी यहां के स्थानीय कलाकारों को प्रतिभा दिखाने के लिए मंच उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
सात वर्षों से कला केंद्र में नहीं हुआ कार्यक्रम : कहा कि बोकारो के सेक्टर टू स्थित कला केंद्र कला के प्रदर्शन का सबसे अच्छा व उपयुक्त मंच है। 2014 से पूर्व इस कला केंद्र में देश के नामीगिरामी कलाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया करते थें। रिनोवेशन के नाम पर रोक लगने के बाद से आज तक यहां ऐसा कोई कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो सका। कहा कि अब कला केंद्र में कार्यक्रम आयोजन के लिए 7000 रूपये बतौर फी की मां की जाती है। जिसे यहां के कलाकार भुगतान करने में अक्षम है। इतना रकम किसी तरह दे भी दें तो आगे का बजट मेंटेन करना मुश्किल हो जायेगा। अत्यधिक रेट बढ़ाये जाने के कारण यहां पर स्थानीय कलाकरों को उचित मंच नहीं मिल पा रहा है। जिससे कलाकारों के अंदर की कला को घुणपोका (दीमक) खाता जा रहा है। यहां के कलाकार की इच्छाएं दमित होती जा रही है।
वो दौर गुजर गया, जहां कलाकारों को मिलती थी सुविधा : कहा कि एक वक्त था, जब घुणपोका साहित्य द्वारा स्थानीय कलाकार के साथ बाहार से अन्य कलाकारों को बुलावा कर कार्यक्रम किया जाता था। उस दौर में बोकारो स्टील प्लांट प्रबंधन कलाकरों के लिए बोकारो निवास में रहने की व्यवस्था करते थे। बोकारो ऑफिसर्स क्लब भी फ्री में उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन अब वो दौर बदल गया है। अब तो प्रबंधन के उच्चाधिकारी से मिलने हीं नहीं दिया जाता है। मीटिंग में व्यस्त है कह कर टहला दिया जाता है। न तो हम लोग वैसे अधिकारियों से मिल पा रह है, न हीं अपनी सूचना से अवगत करा पा रहें है। इस काम्न्युकेशन गेप की वजह से बीएसएल प्रबंधन का सहयोग नहीं मिल पा रहा है। कहा कि बीएसएल प्रबंधन के सहयोग के बिना बोकारो के स्थानीय कलाकारों का भला होना असंभव है। प्रबंधन को इस दिशा में विचार करना चाहिए।
सुझाव
1. रंगकर्मियों के सर्वांगीण विकास के लिए बोकारो शहर में सस्ते दर पर कला केंद्र उपलब्ध कराया जाय। ताकि कलाकार अपनी प्रस्तुति दे सकें।
2. रंगकर्मियों के लिए प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है। स्थानीय कलाकारों के लिए सरकार एवं प्रबंधन मंच उपलब्ध कराए।
3. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आने के कारण रंगकर्मी के प्रति झुकाव कम होते जा रहा है। समय-समय पर रंगमंच आयोजन होने से रुचि बढ़ेगी।
4. झारखंड में फिल्म सिटी का निर्माण किया जाए। यहां खूबसूरत स्थान है। इससे यहां के बच्चों को कला के क्षेत्र में आने का अवसर मिलेगा। जो रंगमंच से निकलेगा।
5. सरकारी शिक्षण संस्थानों में रंगमंच की पढ़ाई शामिल करने से बच्चों में जागृति आएंगी। बच्चे भी रंगमंच में रुचि लेंगे।
शिकायतें
1. बोकारो में रंगकर्मियों के लिए सभागार की कमी होने से रंगकर्मी का सर्वांगीण विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
2. रंगकर्मी के प्रति सामाजिक स्तर पर जानकारी का अभाव होने की वजह से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
3. बढ़ते मनोरंजन के साधनों के कारण धीरे-धीरे रंगकर्मियों के प्रति लोगों का झुकाव कम हो रहा है। स्कूली बच्चों के लिए सामूहिक रंगमंच तैयार नहीं किया जाता है।
4. बोकारो, झारखण्ड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन, प्लेटफार्म की कमी है। यहां के कलाकारों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है।
5. टीवी और मोबाइल के युग में रंगमंच विलुप्त होते जा रहा है। रंगकर्मी भी अब पहले की तरह नहीं रह गए हैं। रंग मंच का आयोजन भी नहीं होता है।
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