बोले रामगढ़: इस मंदिर में श्रद्धा है अपार पर सुविधा लाचार
झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित मां पंचबहिनी मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि विवाह के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां हर साल सैकड़ों जोड़े विवाह करते हैं। हालांकि, मंदिर बुनियादी सुविधाओं जैसे...
भुरकुंडा। झारखंड के रामगढ़ जिले के बासल थाना क्षेत्र स्थित मां पंचबहिनी मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि विवाह के पवित्र बंधन में बंधने वाले जोड़ों के लिए भी एक खास स्थल बन चुका है। पतरातू डैम के किनारे बसे इस मंदिर में हर साल झारखंड ही नहीं, बल्कि बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश से भी सैकड़ों जोड़े विवाह रचाने आते हैं। जहां एक ओर श्रद्धा और परंपरा की मिसाल यह मंदिर लोगों के विश्वास को मजबूती देता है, वहीं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी इसके विकास में बाधा बन गई है। हिन्दुस्तान के बोले रामगढ़ की टीम से यहां के लोगों ने शौचालय, विवाह भवन, स्नानागार और पार्किंग के अभाव की समस्या साझा की।
बासल थाना क्षेत्र के लबगा गांव में पतरातू डैम के किनारे स्थित मां पंचबहिनी मंदिर श्रद्धा, संस्कृति और परंपरा का एक अनूठा संगम है। करीब साढ़े छह दशक पुराने इस मंदिर में हर साल झारखंड सहित बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। खासकर विवाह के पवित्र बंधन में बंधने के लिए यहां सैकड़ों जोड़े आते हैं। 1990 से शुरू हुए मंदिर प्रांगण में विवाह का सिलसिला आज इतना बढ़ चुका है कि सालाना लगभग 400 से अधिक विवाह यहां संपन्न होते हैं। इसके बावजूद यह आस्था स्थल मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उपेक्षा का शिकार है। मंदिर के प्रति लोगों की आस्था इतनी प्रबल है कि माना जाता है, जो भी भक्त यहां सच्चे मन से मां पंचबहिनी के चरणों में शीश नवाते हैं, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। विवाह के लिए आने वाले जोड़ों पर विशेष देवी कृपा मानी जाती है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। इसके चलते मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुका है। मंदिर परिसर में मां पंचबहिनी के साथ-साथ देवी शीतला, भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती, भगवान गणेश, शेषनाथ, कार्तिकेय और पंचमुखी हनुमान जी की भी प्रतिमाएं विराजमान हैं। यह स्थल नजदीक स्थित पतरातू डैम, लेक रिसोर्ट और नेतुआ टापू जैसे पर्यटन स्थलों से आने वाले पर्यटकों का भी ध्यान आकर्षित करता है। विडंबना यह है कि इतनी आस्था और संभावनाओं के बावजूद यह मंदिर आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यहां सबसे बड़ी समस्या शौचालय की है। विवाह समारोहों और त्योहारों के दौरान हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन साफ-सफाई और उनके शौच की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। जिससे न केवल श्रद्धालुओं को असुविधा होती है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं। विवाह भवन, स्नानागार, ठहरने की सुविधा, छाया शेड और पार्किंग जैसी जरूरी सुविधाओं की भी भारी कमी है। लोग खुले में नहाने और कपड़े बदलने को मजबूर होते हैं, जबकि वाहनों की पार्किंग के लिए भी कोई समुचित स्थान नहीं है। मंदिर कमेटी इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत है, लेकिन सरकारी सहयोग के अभाव में सभी प्रयास सीमित होकर रह जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कुछ ही दूरी पर स्थित पतरातू लेक रिसोर्ट को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं, जबकि मंदिर में रोज सैकड़ों की संख्या में लोग आते हैं। इस मंदिर से प्रत्यक्ष रूप से लगभग 100 परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से करीब 500 से अधिक परिवार इसकी गतिविधियों पर निर्भर हैं। यहां अगर पर्यटन और धार्मिक दृष्टिकोण से सुविधाओं का विकास किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देगा, बल्कि राज्य के पर्यटन नक्शे पर भी इसे एक महत्वपूर्ण स्थान मिलेगा। स्थानीय लोगों और मंदिर समिति की मांग है कि सरकार इसे एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करे। इसके लिए स्थायी शौचालय, विवाह भवन, विश्रामालय, स्वच्छता प्रणाली और सड़क व प्रकाश व्यवस्था जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाना जरूरी है। पर्यटन विकास की दौड़ में पिछड़ा मां पंचबहिनी मंदिर पतरातू डैम के किनारे स्थित मां पंचबहिनी मंदिर जहां श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है, वहीं सैकड़ों स्थानीय लोगों के लिए यह जीविका का एकमात्र साधन भी है। मंदिर परिसर और आस-पास की गतिविधियों से प्रत्यक्ष रूप से लगभग 100 परिवारों की रोज़ी-रोटी चलती है, जबकि 500 से अधिक परिवार अप्रत्यक्ष रूप से इस पर निर्भर हैं। फूल-माला, प्रसाद, पंडिताई, फोटोग्राफी, चाय-नाश्ता और लोकल ट्रांसपोर्ट जैसे कार्यों से जुड़े लोगों की पूरी आजीविका मंदिर की गतिविधियों पर टिकी है। हर साल यहां सैकड़ों जोड़े विवाह के लिए आते हैं। विवाह के लिए पहली पसंद है यह मंदिर हर साल सैकड़ों जोड़े मां पंचबहिनी मंदिर में विवाह के पवित्र बंधन में बंधते हैं। वर्ष 1990 से यहां विवाह समारोहों की शुरुआत हुई थी, जो अब परंपरा बन चुकी है। झारखंड के अलावा बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश से भी लोग अपने संबंधियों की शादी यहां करवाने आते हैं। माना जाता है कि यहां मां के समक्ष विवाह करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। बिना किसी विशेष तामझाम के कम खर्च में विवाह संपन्न हो जाता है, जिससे आर्थिक रूप से सामान्य परिवारों को बड़ी राहत मिलती है। लेकिन विवाह भवन, ठहरने और जरूरी सुविधाओं की कमी अब बड़ी बाधा बनती जा रही है। शौचालय और सफाई सबसे बड़ी चुनौती मंदिर में सालभर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन विवाह और त्योहारों के दौरान हजारों की भीड़ जुटती है। इतनी भीड़ के बावजूद यहां शौचालय की समुचित व्यवस्था नहीं है। विशेषकर महिलाओं, बच्चों और वृद्धों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। गंदगी और बदबू के कारण श्रद्धालु असहज महसूस करते हैं। इसके चलते कई बार लोग पास की झाड़ियों या डैम किनारे खुले में जाने को मजबूर होते हैं, जिससे स्वास्थ्य और स्वच्छता की स्थिति चिंताजनक हो जाती है। मंदिर समिति ने कई बार प्रशासन से मांग की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। रोजगार से जुड़ी सैकड़ों जिंदगियां मां पंचबहिनी मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सैकड़ों लोगों की आजीविका का आधार है। मंदिर के आसपास फूलवाले, प्रसाद विक्रेता, फोटोग्राफर, पुजारी, दुकानदार, और छोटे खानपान विक्रेता वर्षों से जीविका चला रहे हैं। विवाह कार्यक्रमों और पर्यटकों की आवाजाही से इन लोगों को रोज़गार मिलता है। लेकिन सुविधाओं के अभाव में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रभावित हो रही है। इसका सीधा असर इन परिवारों की आय पर पड़ रहा है। यदि मंदिर को धार्मिक पर्यटन स्थल का दर्जा मिले और ढांचागत विकास हो, तो रोजगार के नए अवसर खुल सकते हैं। यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी से श्रद्धालुओं को काफी दिक्कत होती है। प्रशासन को चाहिए कि शौचालय, विवाह भवन और पार्किंग जैसी सुविधाएं जल्द उपलब्ध कराए। -रामेश्वर गोप बाहर से आए लोग खुले में शौच के लिए मजबूर होते हैं। इससे मंदिर की छवि भी खराब होती है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और स्थायी व्यवस्था करनी चाहिए। -लालू महतो हमारे मंदिर में हर साल सैकड़ों शादियां होती हैं, लेकिन विवाह के लिए एक ढंग का भवन तक नहीं है। इतना बड़ा आयोजन खुले में करना बहुत मुश्किल होता है। -आशीष शर्मा यहां पर्यटन की अपार संभावना है, लेकिन कोई सुविधा नहीं। अगर राज्य की सरकार सहयोग करे तो मंदिर क्षेत्र में रोजगार और व्यापार दोनों में विकास संभव है । -दीपक कुमार मंदिर से हम जैसे गरीबों की रोज़ी-रोटी चलती है। लेकिन श्रद्धालु कम होते जा रहे हैं क्योंकि सुविधाएं नहीं हैं। हम चाहते हैं कि सरकार इसे धार्मिक पर्यटन स्थल बनाए। -शिवप्रसाद मुंडा श्रद्धालु धूप और बारिश में खुले में पूजा करते हैं। यहां उनके लिए न बैठने की व्यवस्था है, न पीने के पानी की। यह दुर्भाग्य की बात है कि इतना प्रसिद्ध मंदिर उपेक्षित है। -अनिल सोनी मैं हर साल विवाह कराने यहां आता हूँ, लेकिन हर बार पानी, शौचालय और स्नानघर की कमी से परेशानी होती है। प्रशासन को अब चेत जाना चाहिए। -शशि मिश्रा हमारे मंदिर में मां पंचबहिनी का वास है, लेकिन मंदिर की स्थिति देखकर दुख होता है। साफ-सफाई तक की व्यवस्था नहीं है। इतना बड़ा आस्था स्थल सुविधाओं को तरस रहा है। -तुलसी राम पास का लेक रिसॉर्ट पूरी तरह सजा है, और हमारा मंदिर सुविधाओं से वंचित है। क्या मंदिर पर्यटन का हिस्सा नहीं हो सकता? यह भेदभाव अब खत्म होना चाहिए। -नरेश महतो मंदिर का विकास होगा तो यहां रोजगार भी बढ़ेगा। इसके साथ ही श्रद्धालु भी संतुष्ट होंगे। जिससे यहां के प्रशासन की छवि भी सुधरेगी। सबको मिलकर प्रयास करना होगा। -बिरसा उरांव मैं यहां फूल बेचता हूँ। जब भीड़ होती है तो बिक्री बढ़ती है, लेकिन गंदगी और असुविधा की वजह से लोग जल्दी लौट जाते हैं। इससे नुकसान होता है। रोजगार नहीं मिलने की समस्या है। -झरी मुंडा सरकार को मंदिर परिसर को एक धार्मिक हब की तरह विकसित करना चाहिए। यहां से सैकड़ों लोग रोज़ी-रोटी कमाते हैं, लेकिन कोई स्थायी सहारा नहीं है। -रामदास बेदिया मां पंचबहिनी मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यहां शौचालय, विवाह भवन और पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। हम बार-बार प्रशासन से इन समस्याओं को हल करने की अपील कर रहे हैं। अगर यहां सुविधाओं का विकास हो, तो यह स्थान पर्यटन के लिए आदर्श बन सकता है। -रंजीत यादव, संरक्षक,मंदिर कमेटी मां पंचबहिनी मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, लेकिन यह सुविधाओं के अभाव में पिछड़ रहा है। यहां हर साल सैकड़ों विवाह होते हैं, लेकिन विवाह भवन, शौचालय और ठहरने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए ताकि श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव मिल सके और आसपास के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ें। हम इस मंदिर का विकास चाहते हैं। - किरण यादव, मुखिया
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