मां-बाप की ये 5 गलतियां बच्चे को बनाती हैं डरपोक, आत्मविश्वास की कमी लाइफ में ले जाती है पीछे
कहते हैं ना बच्चे की परवरिश एक बहुत जिम्मेदारी का काम है। कई बार ना चाहते हुए भी पैरेंट्स से कुछ ऐसा गलतियां हो जाती हैं तो बच्चे को डरपोक बनाती हैं। अपने आत्मविश्वास की कमी के चलते ऐसे बच्चे जीवन में बहुत कुछ मिस कर देते हैं।

बचपन वो समय होता है जब किसी व्यक्ति के पूरे जीवन की नींव तैयार होती है। ये एक ऐसा टाइम है जब बच्चे की सोच, भावना और आत्मविश्वास एक रूप ले रहे होते हैं। यही वजह है की बचपन से जुड़े सभी छोटे या बड़े अनुभव बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा असर डालते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसी इंसान का पूरा व्यक्तित्व कैसा है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसने किस तरह का बचपन जिया है। कई बार देखा जाता है कि कुछ बच्चे बेहद शर्मीले और डरपोक होते हैं, उनमें आत्मविश्वास की भी भरपूर कमी होती है। दरअसल इसकी वजह भी बचपन से जुड़े कुछ खास हालात ही हैं। अगर आप भी एक पेरेंट हैं, तो बचपन में बच्चों को भूलकर भी इन स्थितियों से ना गुजरने दें।
बार-बार डांट या मार झेलना
अगर किसी बच्चे को बचपन में बहुत ज्यादा डांट या मार पड़ती है, तो ऐसा बच्चा धीरे-धीरे अंदर से कमजोर पड़ने लगता है। आगे चलकर ऐसा बच्चा हमेशा डरा-सहमा सा रहता है और उसमें आत्मविश्वास की भी बहुत ज्यादा कमी हो जाती है। ऐसे बच्चे को हमेशा ये फील होता है कि वो कुछ भी नहीं कर सकता। जब बच्चे को बचपन में फिजिकली या मेंटली टॉर्चर किया जाता है, तो च्चा आगे चलकर हर चुनौती से घबराने लगता है। यूं कहें कि ऐसे बच्चों के मन में पूरी जिंदगी के लिए एक डर सा बैठ जाता है।
घर के कलह वाले माहौल का भी पड़ता है असर
अगर कोई बच्चा ऐसे माहौल में पलता है, जहां रोज लड़ाई-झगड़े, चीख-पुकार या घरेलू हिंसा होती है, तो उनके मानसिक विकास पर इसका गहरा असर पड़ता है। जिस घर में हमेशा कलह का माहौल रहता है, ऐसे घरों में रहने वाले बच्चे मानसिक रूप से अंस्टेबल और चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐसे बच्चों का स्ट्रेस लेवल भी ज्यादा होता है, इसके अलावा वो छोटी-छोटी बातों से भी डर जाते हैं। खासतौर पर किसी नई सिचुएशन में वो आसानी से एडजस्ट नहीं कर पाते हैं।
बचपन में अकेलापन या इग्नोरेंस महसूस करना
कई बार माता-पिता अपने-अपने कामकाज में इतने बिजी हो जाते हैं कि बच्चे को प्रॉपर टाइम नहीं दे पाते हैं। ऐसी सिचुएशन में भी बच्चे में असुरक्षा की भावना आने लगती है। दरअसल, बच्चा जब अपनी बात को किसी से कह नहीं पाता, अपने इमोशंस को किसी के साथ शेयर नहीं कर पाता या उसे लगातार नजरअंदाज किया जाता है, तो बच्चा अकेलापन महसूस करने लगता है। यही अकेलापन धीरे-धीरे डर और असुरक्षा की भावना में बदल जाता है। ऐसे बच्चे हमेशा खुद को सबसे अलग-थलग रखते हैं और अपने आप को कमजोर समझने लगते हैं।
बच्चे की भावनाओं को महत्व ना देना
पेरेंट्स जब बच्चे के इमोशन की कद्र नहीं करते हैं, तो इसका असर भी बच्चों की मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। इससे ना सिर्फ बच्चे के आत्मविश्वास में कमी आती है, बल्कि वह इमोशनली भी कमजोर हो जाता है। अगर बच्चा किसी बात के लिए रो रहा है, किसी चीज से डर रहा है या किसी बात से परेशान है, ऐसे में अगर माता-पिता उसके इमोशंस को ‘ड्रामा’ या ‘कमजोरी’ समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, तो बच्चा खुद पर विश्वास करना छोड़ देता है। वो अपनी भावनाओं को दबाना सीखता है और अंदर ही अंदर टूटता चला जाता है। इसका नतीजा ये होता है कि आगे चलकर बच्चा इमोशनली वीक होता है और उसके आत्मविश्वास में कमी आ जाती है।
बच्चे की तुलना करना या उसका मजाक उड़ाना
अगर किसी बच्चे को बार-बार दूसरे बच्चों से तुलना करके नीचा दिखाया जाए या उसका मजाक उड़ाया जाए, तो इस वजह से भी उसके आत्मविश्वास में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। ऐसी सिचुएशन में बच्चे को लगने लगता है कि वो दूसरों से कम है, इसके अलावा उसे ऐसा लगने लगता है कि वह कुछ भी अच्छा नहीं कर सकता। इस हीन भावना का असर उसके पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है।
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