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पूर्व CJI दीपक मिश्रा की बेंच ने सुना दिया कॉपी-पेस्ट फैसला? सिंगापुर के SC ने कर दिया रद्द

  • अदालत का कहना है कि जांच में पता चला है कि फैसले में कुल 451 पैराग्राफ लिए गए थे, जिनमें से 212 पैराग्राफ पूर्व के ही फैसलों से उठाए गए हैं। ये फैसले जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ही सुनाए थे और उन दो मामलों में लिखी सामग्री को ही यहां कॉपी पेस्ट किया गया।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 10 April 2025 10:43 AM
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पूर्व CJI दीपक मिश्रा की बेंच ने सुना दिया कॉपी-पेस्ट फैसला? सिंगापुर के SC ने कर दिया रद्द

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच ने एक मामले में मध्यस्थता की थी और फैसला सुनाया था। अब इस फैसले को सिंगापुर में खारिज कर दिया गया है और वहां के सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही माना है। शीर्ष अदालत ने अपनी सुनवाई में कहा कि जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच का फैसला खारिज करना सही है क्योंकि उसका कॉन्टेंट बड़े पैमाने पर कॉपी पेस्ट था। अदालत का कहना है कि जांच में पता चला है कि फैसले में कुल 451 पैराग्राफ लिए गए थे, जिनमें से 212 पैराग्राफ पूर्व के ही फैसलों से उठाए गए हैं। ये फैसले जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ही सुनाए थे और उन दो मामलों में लिखी सामग्री को ही यहां कॉपी पेस्ट किया गया।

इससे पहले सिंगापुर इंटनेशनल कॉमर्शियल कोर्ट ने भी ऐसा ही आदेश दिया था, जो हाई कोर्ट का ही हिस्सा है। उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी, लेकिन उसने भी फैसले के बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस सुंदरेश मेनन और जस्टिस स्टीवन चोन्ग की बेंच ने कहा, 'ऐसा ही फैसला अन्य मामलों में भी दिया गया था। यही कॉन्टेंट भी इस्तेमाल किया गया था। इस बात में कोई दोमत नहीं है कि पहले दिए गए फैसलों की सामग्री उठाकर 212 पैरे डाले गए हैं, जबकि कुल फैसला ही 451 पैराग्राफ में है। इस तरह 47 फीसदी सामग्री कॉपी पेस्ट वाली है। इसका बड़ा असर पड़ सकता था।' यह मामला स्पेशल पर्पज वीकल मैनेजिंग फ्राइट कॉरिडोर और तीन अन्य कंपनियों के समूह के बीच विवाद को लेकर था।

यह मामला इस बात को लेकर था कि 2017 में भारत सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जिसमें न्यूनतम वेतन बढ़ाने का फैसला लिया था। यह वेतन तीन कंपनियों को देना होता। इस पर कंपनियों ने ऐतराज जताया तो मामला अदालत पहुंच गया। हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद इस केस को ट्राइब्यूनल के हवाले किया गया। इस ट्राइब्यूनल बेंच के मुखिया चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे। उनके अलावा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज जस्टिस कृष्ण कुमार लोहाटी भी इसका हिस्सा थे। उनके अलावा जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गीता मित्तल भी इसमें शामिल थे। इस बेंच ने तीन कंपनियों के कंसोर्टियम के पक्ष में फैसला सुनाया था। लेकिन ट्राइब्यूनल के इस आदेश को सिंगापुर हाई कोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी गई कि पहले को दो फैसलों से इसके एक हिस्से को कॉपी किया गया है।

पहले के जिन दो फैसलों से कॉन्टेंट को कॉपी करने का आरोप लगा है, उन्हें भी दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली ट्राइब्यूनल बेंच ने ही दिया था। हालांकि उन बेंचों में दो अन्य जज शामिल नहीं थे, जो इसका हिस्सा बने। इस पर हाई कोर्ट कहना था कि यह तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। बेंच ने कहा कि ऐसा करके तो ट्राइब्यूनल ने एक तरह से पूरे मामले को समझा ही नहीं है। दोनों पक्षों को समझने के बाद यदि फैसला दिया जाता तो फिर इस तरह बड़ा हिस्सा पुराने केसों का कॉपी पेस्ट नहीं होता।