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3 साल में अल्पसंख्यकों पर हमले के 140 मामले; सरकार के पास नहीं कोई डेटाबेस, संसद में बोले मंत्री

  • एनसीएम के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में सर्वाधिक 51 याचिकाएं दर्ज की गईं। 2022-23 और 2023-24 में प्रत्येक वर्ष 30 याचिकाएं मिलीं। 2024-25 में अब तक 29 याचिकाएं प्राप्त हुई हैं।

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तानMon, 24 March 2025 10:04 PM
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3 साल में अल्पसंख्यकों पर हमले के 140 मामले; सरकार के पास नहीं कोई डेटाबेस, संसद में बोले मंत्री

बीते 3 साल में केंद्र सरकार को अल्पसंख्यकों पर हमलों से संबंधित 140 याचिकाएं मिलीं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से राज्यसभा में सोमवार को यह जानकारी दी गई। दरअसल, सीपीआईएम के सांसद जॉन ब्रिटास ने इसे लेकर सवाल पूछा था। उन्होंने ऐसी घटनाओं को लेकर सेंट्रल डेटाबेस के बारे में जानकारी मांगी थी। अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने अपने जवाब में कहा कि सरकार के पास अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों का केंद्रीय रिकॉर्ड नहीं है। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की ओर से प्राप्त याचिकाओं का रिकॉर्ड रखा जाता है।

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एनसीएम के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में सर्वाधिक 51 याचिकाएं दर्ज की गईं। 2022-23 और 2023-24 में प्रत्येक वर्ष 30 याचिकाएं मिलीं। 2024-25 में अब तक 29 याचिकाएं प्राप्त हुई हैं। क्षेत्र के हिसाब से देखें तो दिल्ली में सबसे अधिक 34 याचिकाएं मिलीं। उत्तर प्रदेश से 29 याचिकाएं आईं। महाराष्ट्र से 10, मध्य प्रदेश से 8, पश्चिम बंगाल से 7, पंजाब से 7, हरियाणा से 7, केरल से 6 और कर्नाटक 6 याचिकाएं आई हैं। ध्यान देने वाली बात है कि मणिपुर से कोई याचिका प्राप्त नहीं हुई है, जहां इस समय भी जातीय संघर्ष चल रहा है। मणिपुर में 40% से अधिक ईसाई आबादी निवास करती है।

भारत में 6 समुदायों को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त 

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत 6 समुदायों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी) को भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। किरेन रिजिजू ने कहा, 'अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए योजनाओं को लागू करता है। ये योजनाएं अल्पसंख्यक समुदायों के कमजोर वर्गों के लिए हैं।' हालांकि, मंत्री के जवाब को सांसद जॉन ब्रिटास ने इसे कपटपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक हमलों पर केंद्रीकृत डेटाबेस बनाए रखने से इनकार करना अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए मौजूदा प्रथाओं के विपरीत है।