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भारत को लेकर UN ने क्यों जताई चिंता, 2065 तक कैसे खड़ा होगा युवा आबादी वाला संकट

भारत की आबादी में तेजी से गिरावट का डर है और इसी बात को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है। यूएन जनसंख्या कोष की ओर से तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 40 साल बाद यानी 2065 से भारत की आबादी में गिरावट आने लगेगी।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 12 June 2025 11:40 AM
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भारत को लेकर UN ने क्यों जताई चिंता, 2065 तक कैसे खड़ा होगा युवा आबादी वाला संकट

भारत फिलहाल दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला मुल्क है। भारत की मौजूदा जनसंख्या 1.5 अरब के करीब है। यह आबादी बहुत अधिक प्रतीत होती है और इसके चलते संसाधनों के लिए संघर्ष की स्थिति बढ़ रही है। यही नहीं यह आबादी बढ़कर अगले दो दशकों में 1.7 अरब तक पहुंचने की संभावना है। इसके बाद भारत की आबादी में तेजी से गिरावट का डर है और इसी बात को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है। यूएन जनसंख्या कोष की ओर से तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 40 साल बाद यानी 2065 से भारत की आबादी में गिरावट आने लगेगी।

यह चिंता इसलिए भी सही लग रही है क्योंकि भारत में औसत जन्मदर 1.9 पर आ गई है, जो कि रिप्लेसमेंट लेवल से कम है। जनसंख्या विज्ञानियों के अनुसार रिप्लेसमेंट लेवल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि प्रति महिला औसतन जन्मदर 2.1 रहे। फिलहाल भारत की आबादी काफी अधिक है और ऐसे में जन्मदर घटने से भी आबादी कम होने का संकट नहीं है। किंतु मौजूदा पीढ़ी के गुजरने के बाद यह संकट प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देगा। जानकार मानते हैं कि फिलहाल आबादी का विकास गुणात्मक नहीं है बल्कि घनात्मक है। यदि जन्मदर इसी तरह कम होती रही तो फिर आबादी की ग्रोथ निगेटिव में जा सकती है। ऐसी स्थिति लगभग 2065 तक आ सकती है।

यही चिंता संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट में व्यक्त की गई है। यह रिपोर्ट भारत, अमेरिका, इंडोनेशिया जैसे 14 देशों पर तैयार की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आबादी 1960 में 43 करोड़ थी और तब प्रति महिला औसतन 6 बच्चों को जन्म दे रही थी। किंतु अब स्थिति बदल गई है। स्कूली शिक्षा के प्रसार, परिवार नियोजन के उपायों के प्रति जागरूकता और सुविधाएं जुटाने के आकर्षण के चलते महिलाएं कम बच्चे पैदा कर रही हैं। बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं हैं, जो एक ही बच्चा पैदा करना चाहती हैं। फिलहाल भारत में एक महिला औसतन 2 बच्चों को ही जन्म दे रही है।

परिवारों को लेकर कैसे बदलती जा रही भारतीयों की सोच

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बिहार के एक परिवार की तीन पीढ़ी की महिलाओं का सर्वे किया गया है। इस सर्वे में जिस 64 साल की महिला सरस्वती देवी को शामिल किया गया है, वह कहती हैं कि उनकी पीढ़ी में परिवार नियोजन के उपायों पर चर्चा ही नहीं होती थी। यहां तक कि बड़े परिवार को भगवान का आशीर्वाद माना जाता था। सरस्वती के भी 5 बेटे हुए। वह कहती हैं कि उस दौर में जिसके कम बच्चे होते थे, उसको लेकर माना जाता था कि शायद किसी बीमारी के चलते ऐसा हुआ है। वह कहती हैं कि मैंने जब सोचा कि अब बच्चे पैदा न किए जाएं तो मेरी सास कहती थीं कि ऐसा करना गलत होगा।

तीन पीढ़ी के सर्वे से UN की रिपोर्ट में क्या निकला

इसी सर्वे में सरस्वती देवी की बहू अनीता को भी शामिल किया गया है। 42 साल की अनीता कहती हैं कि मेरी शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। वह कहती हैं कि मेरे 6 बच्चे हैं और मैं इतने पैदा नहीं करना चाहती थी। इतने बच्चे इसलिए हुए क्योंकि पति और सास बेटा चाहते थे। इस तरह दिखता है कि कैसे सोच में बदलाव आया। यही नहीं अनीता की बेटी पूजा जो फिलहाल 26 साल की हैं, उसका कहना है कि वह दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करेगी। इसकी वजह यह है कि वह सभी को बेहतर सुविधा देना चाहती हैं।

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