इलाहाबाद HC के लिए कैसे फिट हैं जस्टिस यशवंत वर्मा? हरीश साल्वे ने कॉलेजियम पर उठाए सवाल
- साल्वे के इस बयान ने न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रिया और उसके पारदर्शिता के अभाव पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। साथ ही सवाल उठाया है कि क्या मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सक्षम है।

जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित रूप से नकदी मिलने और बाद में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने के मामले पर उत्पन्न विवाद पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शुक्रवार को जजों की नियुक्ति प्रणाली (कॉलेजियम सिस्टम) की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने जजों की नियुक्ति में अधिक पारदर्शिता की अपील की है। समाचार चैनलों से बात करते हुए साल्वे ने कहा कि इस घटना ने न्यायपालिका की संस्था को ही चुनौती दी है कि सिर्फ एक आंतरिक जांच से काम नहीं चलेगा।
साल्वे ने कहा, "मैं हमेशा से कॉलेजियम का आलोचक रहा हूं। यह एक अस्थायी व्यवस्था है। सिस्टम को पारदर्शिता के साथ चलना चाहिए और कॉलेजियम इस तरीके से काम नहीं कर सकता।" जज को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने के निर्णय पर असहमति व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में गहरी खामियां हैं और अगर जज अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए अयोग्य थे तो उन्हें दूसरे हाईकोर्ट में क्यों ट्रांसफर किया गया।
साल्वे ने उदाहरण देते हुए कहा, "अगर यह नकदी किसी और के घर से मिली होती तो प्रवर्तन निदेशालय (ED) उनके दरवाजे पर होता।" उन्होंने कहा कि एक जज को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में ट्रांसफर करना सिर्फ एक अस्थायी समाधान है। यह गलत है। उन्होंने कहा, "अगर वह सक्षम हैं तो उन्हें दिल्ली में ही रहना चाहिए। अगर वह सक्षम नहीं हैं तो क्या वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए फिट हैं, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के लिए नहीं हैं? इलाहाबाद हाईकोर्ट क्या है? क्या वह एक डंपिंग ग्राउंड है? अगर उनकी ईमानदारी पर संदेह नहीं है तो उन्हें अकेला छोड़ दीजिए और लोगों को बता दीजिए कि मीडिया रिपोर्ट्स गलत हैं।"
साल्वे के इस बयान ने न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रिया और उसके पारदर्शिता के अभाव पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। साथ ही सवाल उठाया है कि क्या मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सक्षम है।