ट्रंप की दादागिरी के आगे नहीं झुकेगा भारत, दोस्त रूस के प्लान पर लग सकती है मुहर; एक टेंशन
ट्रंप के दबाव के बावजूद भारत रूस के प्रस्ताव यानी RIC को दोबारा खड़ा करने को तैयार है, जो उसकी स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है। लेकिन चीन के साथ विश्वास की कमी एक चुनौती बनी हुई है।

हाल के महीनों में वैश्विक मंच पर भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी दूसरी पारी में आक्रामक व्यापार नीतियों और कूटनीतिक दबाव के साथ उभरे हैं, वहीं भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इस बीच, भारत के पुराने और भरोसेमंद दोस्त रूस ने रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन को दोबारा खड़ा करने का प्रस्ताव रखा है, जिसे भारत ने सकारात्मक रूप से लिया है। यह कदम न केवल भारत की मल्टी-अलाइनमेंट नीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भारत ट्रंप के दबाव के सामने झुकने को तैयार नहीं है। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को समझते हैं और जानते हैं कि RIC की वापसी भारत के लिए क्या मायने रखती है।
RIC क्या है और क्यों पड़ा ठंडे बस्ते में?
RIC यानी रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय समूह की शुरुआत 1990 के दशक में रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव के दिमाग की उपज थी। इसका मकसद था एक ऐसी व्यवस्था बनाना जो पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के नेतृत्व वाली एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सके। यह समूह बहुपक्षीयता यानी मल्टीलैटरलिज्म और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों को मजबूत करने की वकालत करता है।
हालांकि, 2020 में भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में हुए हिंसक टकराव के बाद RIC की गतिविधियां लगभग ठप हो गई थीं। भारत और चीन के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि दोनों देशों के नेताओं ने एक-दूसरे से द्विपक्षीय बातचीत तक बंद कर दी थी। इस दौरान भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड (QUAD) गठबंधन को और मजबूत किया, जिसे चीन के खिलाफ एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जाता है। दूसरी तरफ, रूस ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन सीमा विवाद के चलते RIC की गति रुक गई।
रूस का नया प्रस्ताव और भारत की सकारात्मक प्रतिक्रिया
हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने RIC को फिर से सक्रिय करने की जोरदार वकालत की। पिछले महीने उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा तनाव कम होने के बाद अब समय आ गया है कि RIC को दोबारा मजबूत किया जाए। लावरोव ने इसे बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था का प्रतीक बताया और कहा कि यह BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) जैसे समूहों का आधार है।
भारत ने इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख दिखाया है। डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत RIC शिखर सम्मेलन को दोबारा खड़ा करने के लिए तैयार है। यह भारत की उस विदेश नीति का हिस्सा है, जिसमें वह किसी एक महाशक्ति के साथ पूरी तरह बंधने के बजाय सभी प्रमुख देशों के साथ संतुलित रिश्ते रखना चाहता है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि भारत इस विचार के लिए खुला है, बशर्ते यह बैठक क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा दे। भारत का मानना है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी व रूसी समकक्षों (वांग यी और सर्गेई लावरोव) के साथ रियो डी जेनेरियो में ब्रिक्स समिट से पहले बैठक होनी चाहिए ताकि बाद में RIC शिखर सम्मेलन के लिए मंच तैयार किया जा सके।
पीएम मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग ने दिसंबर 2018 में ब्यूनस आयर्स में जी-20 सम्मेलन के दौरान दूसरा आरआईसी शिखर सम्मेलन आयोजित किया था। उन्होंने जून 2019 में ओसाका में जी-20 बैठक के दौरान तीसरा आरआईसी शिखर सम्मेलन आयोजित किया। हालांकि, यह शिखर सम्मेलन 2020 से आयोजित नहीं किया जा सका, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया और पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध को लेकर चीन के साथ भारत के संबंध नए निचले स्तर पर पहुंच गए। हालांकि, जयशंकर 23 जून, 2020 और 26 नवंबर, 2021 को वर्चुअल आरआईसी बैठकों में लावरोव और वांग के साथ शामिल हुए। पिछले तीन सालों में आरआईसी विदेश मंत्रियों की बैठक भी नहीं हुई। अक्टूबर 2024 में एलएसी पर गतिरोध समाप्त होने के बाद से नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंध सुधर रहे हैं।
ट्रंप का दबाव और भारत की रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका ने भारत पर कई तरह के दबाव बनाए हैं। ट्रंप ने न केवल भारत पर व्यापारिक टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी, बल्कि रूस के साथ भारत के सैन्य और ऊर्जा सहयोग पर भी ऐतराज जताया है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने भारत से रूस के साथ हथियारों की खरीद और तेल आयात कम करने की मांग की है। ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में कहा कि भारत का रूस से सैन्य हथियारों की खरीद ने अमेरिका को "नाराज" किया है। फिर भी, भारत-रूस संबंधों की मजबूती को नजरअंदाज करना मुश्किल है।
ऑपरेशन सिंदूर, ट्रंप का दावा और भारत-पाकिस्तान को एक तराजू में तौलना
ऑपरेशन सिंदूर, 7 मई को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा शुरू किया गया एक लक्षित सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब देना था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को जिम्मेदार ठहराया और पाकिस्तान तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। इनमें जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के प्रमुख नाम शामिल थे। इस ऑपरेशन ने भारत की सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने के संकल्प को प्रदर्शित किया, साथ ही पाकिस्तान की रक्षा कमजोरियों और चीन निर्मित हथियारों की अक्षमताओं को भी उजागर किया। हालांकि, 10 मई को दोनों देशों के बीच युद्धविराम की घोषणा ने कई सवाल खड़े किए, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावों के संदर्भ में, जिन्होंने इस युद्धविराम का श्रेय अपनी मध्यस्थता को दिया।
ट्रंप का बार-बार यह दावा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसने भारत में विवाद को जन्म दिया, क्योंकि उन्होंने दोनों देशों को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश की, जो भारत के लिए असहज स्थिति पैदा करता है। भारत ने स्पष्ट किया कि युद्धविराम का फैसला द्विपक्षीय स्तर पर हुआ और इसमें अमेरिका की कोई मध्यस्थता नहीं थी। ट्रंप के बयानों, जैसे कि भारत और पाकिस्तान के नेताओं को "महान" बताना और व्यापार बंद करने की धमकी देकर युद्धविराम कराने का दावा, को भारत ने अपनी संप्रभुता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संदर्भ में अनुचित माना। यह दृष्टिकोण ट्रंप के पहले कार्यकाल के विपरीत था, जब उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवाद का पनाहगाह बताया था। उनके इस बदले रुख ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा किया और सवाल उठाए कि क्या अमेरिका अपने भू-राजनीतिक हितों, खासकर पाकिस्तान को चीन के प्रभाव से हटाने और ईरान पर नजर रखने के लिए, भारत के हितों की अनदेखी कर रहा है।
क्यों अटूट है रूस-भारत की दोस्ती?
भारत और रूस (पूर्व सोवियत संघ) के बीच संबंध दशकों पुराने हैं। 1971 के शांति, मैत्री और सहयोग संधि और 2000 में हस्ताक्षरित "भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी" ने दोनों देशों के बीच विश्वास और आपसी हितों पर आधारित एक मजबूत ढांचा तैयार किया है। वर्तमान में, भारतीय सेना का लगभग 70% हथियार रूसी मूल के हैं, जिसमें टी-72 और टी-90 टैंक, नौसेना का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य और मिग-29के जैसे लड़ाकू विमान शामिल हैं।
रूस भारत के लिए हथियारों और रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, रूस भारत के कुल हथियार आयात का लगभग दो-तिहाई हिस्सा प्रदान करता है। हाल के वर्षों में, रूस ने भारत को उन्नत एस-400 'ट्रायम्फ' मिसाइल रक्षा प्रणाली प्रदान की है, जिसने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी प्रभावशीलता साबित की। भारत ने इस प्रणाली की और इकाइयों के लिए रूस से अनुरोध किया है।
भारत और रूस संयुक्त रूप से हथियारों का उत्पादन करने में सक्रिय हैं, जो भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल इसका एक शानदार उदाहरण है। इसके अलावा, रूस ने भारत को सु-57 स्टील्थ फाइटर जेट को भारत में ही बनाने का प्रस्ताव दिया है, जो दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग को और गहरा करेगा।
रूसी हथियार अक्सर पश्चिमी हथियारों की तुलना में सस्ते होते हैं और भारत की सैन्य जरूरतों के लिए उपयुक्त हैं। हालांकि, रूसी उपकरणों को बार-बार रखरखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत ने इसे अपनी रणनीति में समायोजित किया है। रूस भारत को परमाणु पनडुब्बियों जैसे विशेष उपकरण प्रदान करने वाला एकमात्र देश है, जो भारत की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाता है।
भारत-चीन तनाव में कमी: RIC के लिए अनुकूल माहौल
2024 के अंत में भारत और चीन ने सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाए। अक्टूबर 2024 में दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में तनाव कम करने के लिए सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति जताई। यह कदम RIC को पुनर्जन्म देने के लिए एक अनुकूल माहौल बना रहा है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस इस मौके का फायदा उठाकर भारत और चीन को एक मंच पर लाना चाहता है, ताकि तीनों देश मिलकर वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए काम कर सकें।
हालांकि, भारत और चीन के बीच विश्वास की कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती है। गलवान टकराव के बाद भारत ने चीन के साथ व्यापार और निवेश पर कई पाबंदियां लगाई थीं। दूसरी तरफ, चीन भी भारत को क्वाड जैसे गठबंधनों में शामिल होने के लिए आलोचना करता रहा है। फिर भी, रूस की मध्यस्थता और दोनों देशों के बीच हालिया सकारात्मक कदम RIC को फिर से शुरू करने का आधार दे रहे हैं।
RIC की वापसी से क्या हासिल होगा?
RIC का पुनर्जनन भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद हो सकता है।
बहुपक्षीयता को मजबूती: RIC का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन जैसे मंचों को मजबूत करना है। यह भारत की उस नीति के अनुरूप है, जिसमें वह वैश्विक शासन में विकासशील देशों की आवाज को मजबूत करना चाहता है।
आतंकवाद के खिलाफ साझा रुख: RIC पहले भी आतंकवाद के खिलाफ साझा नीति बनाने पर जोर देता रहा है। 2019 में ओसाका में हुई RIC बैठक में तीनों देशों ने आतंकवाद को खत्म करने और इसके वित्तपोषण को रोकने की बात कही थी। भारत के लिए यह खास तौर पर महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन चाहता है।
रूस के साथ रिश्तों को मजबूती: भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रिश्ता है। रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है और ऊर्जा क्षेत्र में भी दोनों देशों का सहयोग बढ़ रहा है। RIC के जरिए भारत रूस के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत कर सकता है, खासकर तब जब अमेरिका रूस के साथ भारत के सहयोग पर सवाल उठा रहा है।
चीन के साथ संतुलन: RIC भारत को चीन के साथ बातचीत का एक मंच दे सकता है, जहां दोनों देश आपसी तनाव को कम करने और सहयोग के नए रास्ते तलाश सकते हैं। यह भारत की मल्टि-अलाइनमेंट नीति का हिस्सा है, जिसमें वह किसी एक देश के साथ पूरी तरह बंधने के बजाय सभी के साथ संतुलन बनाए रखना चाहता है।
ट्रंप की नीतियों का असर और भारत की चिंता
ट्रंप की नीतियां भारत के लिए एक दोधारी तलवार की तरह हैं। एक तरफ, ट्रंप ने भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करने की बात कही है और फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्हाइट हाउस दौरे के दौरान दोनों देशों ने रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया। लेकिन दूसरी तरफ, ट्रंप की व्यापार नीतियां भारत के लिए चुनौती पैदा कर रही हैं। अप्रैल में ट्रंप ने चीन के खिलाफ 145% टैरिफ लगाए और भारत पर भी दबाव बनाया कि वह रूस से तेल आयात कम करे। ट्रंप ने भारत के खिलाफ भी टैरिफ लगाया लेकिन उसे फिलहाल के लिए रोक दिया गया है।
इसके अलावा, ट्रंप ने BRICS देशों को चेतावनी दी है कि अगर वे अमेरिकी डॉलर को वैश्विक मुद्रा के रूप में चुनौती देने की कोशिश करेंगे, तो उन्हें भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। यह भारत के लिए एक चिंता का विषय है, क्योंकि BRICS और RIC जैसे मंच भारत के लिए वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने का ज़रिया हैं।
भारत की एक टेंशन
RIC की वापसी के बावजूद भारत के सामने एक बड़ी चुनौती है- चीन के साथ विश्वास की कमी। भले ही सीमा तनाव कम हुआ हो, लेकिन भारत इस बात को लेकर सतर्क है कि चीन के साथ सहयोग बढ़ाने से उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता पर असर न पड़े। भारत यह भी नहीं चाहता कि RIC का इस्तेमाल चीन अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए करे, खासकर दक्षिण चीन सागर या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में।
इसके अलावा, भारत को अमेरिका के साथ अपने रिश्तों का भी ख्याल रखना है। क्वाड और अमेरिका के साथ बढ़ता सहयोग भारत की रणनीति का अहम हिस्सा है। अगर भारत RIC को बहुत ज्यादा तवज्जो देता है, तो इससे अमेरिका के साथ उसके रिश्तों पर असर पड़ सकता है। इसलिए भारत एक संतुलन बनाकर चल रहा है।