इस्तीफा या बर्खास्तगी, क्या कहता है नियम? जस्टिस यशवंत वर्मा नकदी केस में आगे क्या विकल्प
Justice Yashwant Varma: कॉलेजियम ने सुझाव दिया कि जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर पर्याप्त दंड नहीं होगा क्योंकि उन्होंने न केवल न्यायपालिका की छवि खराब की है बल्कि संवैधानिक संस्थान की साख धूमिल की है।

Justice Yashwant Varma : दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर अथाह नकदी बरामद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे न केवल गंभीरता से लिया है बल्कि शुक्रवार को उनके खिलाफ आंतरिक जांच शुरू कर दी है। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने मामले की जानकारी मिलते ही तुरंत कॉलेजियम की मीटिंग बुलाई, जिसमें सर्वसम्मति से फैसला हुआ कि सबसे पहले जस्टिस वर्मा का अपने मूल हाई कोर्ट यानी इलाहाबाद हाई कोर्ट तबादला कर दिया जाय।
हालांकि, इस बैठक में कॉलेजियम सदस्यों ने सुझाव दिया कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ दंडात्मक स्थानांतरण पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि उन्होंने न केवल न्यायपालिका की छवि खराब की है बल्कि संवैधानिक संस्थान की साख पर बट्टा लगाया है। इसलिए उनके खिलाफ कुछ ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बाद सीजेआई ने एक आंतरिक जांच भी बैठा दी है। इसके अलावा टॉप कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से एक रिपोर्ट भी मांगी है। चर्चा इस बात की भी है कि कॉलेजियम सदस्यों ने जस्टिस यशवंत वर्मा से इस्तीफा मांगने का भी सुझाव दिया है।
इस्तीफा या बर्खास्तगी? क्या कहता है नियम
संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार, दुराचरण या अनौचित्य के आरोपों से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में एक आंतरिक प्रक्रिया तैयार की थी। इसके अनुसार, शिकायत प्राप्त होने पर देश के मुख्य न्यायाधीश आरोपी न्यायाधीश से जवाब मांग सकते हैं। यदि वह जवाब से संतुष्ट नहीं होते हैं या यह निष्कर्ष निकालते हैं कि उस मामले में गहन जांच की जरूरत है तो वह सुप्रीम कोर्ट के एक जज और हाई कोर्ट के दो चीफ जस्टिस वाली एक आंतरिक जांच समिति गठित कर सकते हैं।
अगर CJI को यह लगता है कि आरोपी जज का दुराचरण काफी गंभीर है तो वह उस जज से इस्तीफा मांग सकते हैं और अगर उस जज ने ऐसा करने से मना किया तो सीजेआई सरकार को उनकी बर्खास्तगी के लिए संसद में प्रक्रिया चलाने की सिफारिश कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को महाभियोग कहा जाता है।
महाभियोग पर क्या कहता है संविधान?
बता दें कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में प्रावधान है कि किसी न्यायाधीश को केवल लोकसभा या राज्यसभा में पेश महाभियोग प्रस्ताव के आधार पर संसद द्वारा ही हटाया जा सकता है। न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 में वर्णित है। आज तक, किसी भी न्यायाधीश को महाभियोग प्रक्रिया के तहत नहीं हटाया जा सका है। हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव आया था लेकिन उन्होंने संसद में पेश होने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिनाकरन के खिलाफ भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया गया था। उन्होंने भी संसद का सामना करने से पहले राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भेज दिया था।