'पाकिस्तानी नारे लगाने का कोई सबूत नहीं', मंगलुरु मॉब लिंचिंग केस में 3 पुलिसकर्मियों पर गिरी गाज
पुलिस सूत्रों के अनुसार, मृतक की पहचान केरल के वायनाड जिले के पल्पल्ली गांव के 36 वर्षीय अशरफ के रूप में हुई है। अशरफ मंगलुरु में एक महीने से मजदूर के रूप में काम कर रहा था।

मंगलुरु में हाल ही में हुई एक मॉब लिंचिंग की घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी। इस मामले में पुलिस ने अब बड़ा खुलासा किया है। मंगलुरु के पुलिस आयुक्त ने स्पष्ट किया है कि घटना के दौरान "पाकिस्तान समर्थक नारे" लगाने की बात को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। इस बयान ने उन मीडिया रिपोर्ट्स पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनमें दावा किया गया था कि भीड़ के हाथों मारे गए शख्स ने कथित तौर पर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे।
इस बीच मॉब लिंचिंग की घटना की जांच में कथित देरी और लापरवाही के आरोप में तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। यह घटना मंगलुरु के बाहरी इलाके कुदुपु गांव में भटरा कल्लुर्ती मंदिर के पास एक स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान हुई थी। निलंबित पुलिसकर्मियों में मंगलुरु ग्रामीण पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर शिवकुमार के.आर., हेड कॉन्स्टेबल चंद्रा पी., और कॉन्स्टेबल यल्लालिंगा शामिल हैं। निलंबन का आदेश 29 अप्रैल की रात को जारी किया गया।
क्या है पूरा मामला?
पुलिस सूत्रों के अनुसार, मृतक की पहचान केरल के वायनाड जिले के पल्पल्ली गांव के 36 वर्षीय अशरफ के रूप में हुई है। अशरफ मंगलुरु में एक महीने से मजदूर के रूप में काम कर रहा था। प्रारंभिक जांच के अनुसार, 27 अप्रैल को दोपहर करीब 3 बजे, अशरफ एक बोरी लेकर क्रिकेट मैदान से गुजर रहा था, जब उसने कथित तौर पर "पाकिस्तान जिंदाबाद" का नारा लगाया। इसके बाद, लगभग 25-30 लोगों की भीड़ ने उस पर लकड़ी के डंडों और बल्लों से हमला कर दिया, जिसके चलते उसकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि अशरफ की मृत्यु आंतरिक चोटों, सदमे, और समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण हुई।
हालांकि, अशरफ के परिवार और कुछ संगठनों ने दावा किया कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था और "पाकिस्तान जिंदाबाद" नारे का दावा हमलावरों द्वारा हिंसा को उचित ठहराने के लिए किया गया एक बहाना हो सकता है। कुछ लोगों के अनुसार, हिंसा तब शुरू हुई जब अशरफ ने पास में रखे पानी के गिलास से पानी पिया, जिसके बाद एक आरोपी, सचिन टी. ने उसकी पिटाई कर दी। वहीं पुलिस की जांच में पाकिस्तानी नारे के दावों की पुष्टि नहीं हुई। पुलिस आयुक्त ने कहा, "माध्यमों में चल रही खबरों के समर्थन में हमारे पास कोई सबूत नहीं है।"
पाकिस्तानी नारों पर क्या बोले पुलिस आयुक्त?
शहर के पुलिस आयुक्त अनुपम अग्रवाल ने गुरुवार को कहा कि कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के संबंध में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है। अग्रवाल ने कहा, "चूंकि हमारे पास इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए थे, इसलिए इस संबंध में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।"
पुलिस की कार्रवाई और निलंबन
मंगलुरु ग्रामीण पुलिस ने शुरू में इस मामले को संदिग्ध परिस्थितियों में अप्राकृतिक मृत्यु (UDR) के रूप में दर्ज किया था। हालांकि, पोस्टमॉर्टम और सार्वजनिक आक्रोश के बाद, इसे मॉब लिंचिंग का मामला मानकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103(2) के तहत दर्ज किया गया, जो मॉब लिंचिंग के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।
पुलिस ने इस मामले में अब तक 21 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें मुख्य आरोपी सचिन टी., एक ऑटोरिक्शा चालक, और अन्य लोग जैसे देवदास, साईदीप, मंजुनाथ, और अनिल शामिल हैं। पुलिस आयुक्त अनुपम अग्रवाल ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयानों के आधार पर जांच जारी है, लेकिन हमले के पीछे का सटीक मकसद अभी स्पष्ट नहीं है।
तीन पुलिसकर्मियों के निलंबन का कारण उनकी ओर से गंभीर लापरवाही और ड्यूटी में चूक बताया गया है। जांच में पाया गया कि इंस्पेक्टर शिवकुमार को घटना की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित नहीं किया और जांच में क्रिकेट खिलाड़ियों और दर्शकों को पंचनामा में शामिल किया।
हेड कॉन्स्टेबल चंद्रा पी. को मंगलुरु ट्रैफिक (ईस्ट) स्टेशन के हेड कॉन्स्टेबल दीपक ने भीड़ के हमले की सूचना दी थी, लेकिन उन्होंने कोई जानकारी एकत्र नहीं की और न ही वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया। कॉन्स्टेबल यल्लालिंगा, जो उस क्षेत्र में बीट ड्यूटी पर थे, उन्होंने न तो क्रिकेट टूर्नामेंट और न ही घटना की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी। मंगलुरु पुलिस आयुक्त अनुपम अग्रवाल ने निलंबन की पुष्टि करते हुए कहा कि यह कार्रवाई पुलिसकर्मियों की गंभीर लापरवाही के कारण की गई है।