वही महल इलाका और वैसा ही पैटर्न; नागपुर में 98 साल पहले हुआ था भीषण दंगा, पूरी कहानी
- इस घटना की रिपोर्टिंग न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे अखबारों ने भी की थी, जो रिपोर्ट्स आज भी मौजूद हैं। उस दंगे का पैटर्न भी एकदम वही था, जैसे सोमवार को घटना हुई। हिंदू संगठनों के लोग लक्ष्मी पूजा के बाद शोभायात्रा निकाल रहे थे और दूसरे पक्ष से हमला बोल दिया गया। ऐसा ही सोमवार को भी हुआ।

महाराष्ट्र के नागपुर शहर में सोमवार की शाम को औरंगजेब के नाम पर ऐसा बवाल मचा कि हालात बिगड़ गए। कारों को आग के हवाले कर दिया गया। दुकानें तोड़ी गईं और बलवा ऐसा मचा कि तीन डीसीपी स्तर के अधिकारियों समेत करीब एक दर्जन पुलिस वाले घायल हैं। 6 आम लोगों को भी गंभीर चोटें आई हैं, जिनमें से एक आईसीयू में एडमिट हैं। इसके बाद से ही सरकार ऐक्टिव है और सुरक्षा बल फ्लैगमार्च कर रहे हैं। फिलहाल शांति है, लेकिन माहौल तनावपूर्ण है। इस घटना के बाद नागपुर का इतिहास बताते हुए कई नेताओं ने कहा कि शहर में ऐसा कभी नहीं होता था। कुछ बाहरी तत्वों के चलते ऐसा हुआ है। महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन प्यारे खान ने भी कहा कि नागपुर तो संतों की धरती है। यहां सभी की आस्था का सम्मान हुआ है और कभी ऐसी घटनाएं नहीं हुईं।
यह सही है कि बीते कई दशकों में नागपुर में ऐसे हालात नहीं देखे गए, जब दो समुदायों के लोगों में हिंसक झड़पें हुई हों। दंगा-फसाद में ऐसी स्थिति बनी हो। लेकिन करीब 100 साल पीछे जाएं तो नागपुर में एक भीषण दंगा हुआ था और वह इसी महल इलाके में हुआ था, जहां सोमवार को हिंसा भड़की। आज से ठीक 98 साल पहले 4 सितंबर 1927 को वह दंगा भड़का था, जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई थी और 180 लोग घायल थे। इस घटना की रिपोर्टिंग न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे अखबारों ने भी की थी, जो रिपोर्ट्स आज भी मौजूद हैं। उस दंगे का पैटर्न भी एकदम वही था, जैसे सोमवार को घटना हुई। हिंदू संगठनों के लोग लक्ष्मी पूजा के बाद शोभायात्रा निकाल रहे थे और उस पर दूसरे पक्ष से हमला बोल दिया गया।
ऐसा ही सोमवार को भी हुआ, जब औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग करते हुए कुछ संगठनों के लोग सड़कों पर उतरे थे। इसी दौरान मुस्लिम पक्ष से भी भीड़ जुट गई और शुरुआती झड़प के बाद पत्थरबाजी शुरू हो गई। अब बात करते हैं 4 सितंबर, 1927 की। उस दिन महालक्ष्मी की शोभायात्रा हिंदू पक्ष निकाल रहा था। महल इलाके में जब शोभायात्रा पहुंची तो मुस्लिम पक्ष ने उसे रोकने का प्रयास किया। इस विवाद बढ़ा तो खूनी हिंसा हुई। रिपोर्ट्स के अनुसार हिंदुओं के घरों को टारगेट करते हुए भीषण हिंसा की गई। कुल 25 लोग मारे गए थे और 180 लोग बुरी तरह जख्मी हुए। यह दंगा इतना भीषण था कि रुक-रुक कर तीन दिन तक चलता रहा।
यह वह दौर था, जब आज विशाल रूप ले चुके आरएसएस की स्थापना को दो साल ही हुए थे। फिर भी आरएसएस के कार्यकर्ताओं का एक वर्ग नागपुर में था, जहां आज उसका मुख्यालय है। कहा जाता है कि दंगों के बीच में आरएसएस के कार्यकर्ता लाठी ही लेकर सड़कों पर उतरे और किसी तरह हमलावर भीड़ का मुकाबला किया था। इस घटना ने भी आरएसएस के प्रसार में अहम भूमिका अदा की। कहा जाता है कि इस दंगे के दौरान मुस्लिम पक्ष से संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के घर पर भी हमला किया गया था, लेकिन वह उस वक्त अपने घर पर नहीं थे। कुल 25 लोगों में 13 लोग आरएसएस से ही जुड़े थे, जिनकी दंगों में मौत हुई थी।