कैसे पाकिस्तान के विरोध में एक डॉक्टर ने दिया था 'खालिस्तान' नाम, फिर बना अलगाववाद का प्रतीक
प्रोफेसर मलकीत सिंह बताते हैं, 'खालिस्तान शब्द का सबसे पहले प्रयोग लुधियाना के एक मेडिकल डॉक्टर वी.एस. भट्टी द्वारा एक पैम्फलेट के शीर्षक के रूप में 1940 में किया गया था, जो कि ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के लाहौर प्रस्ताव के तुरंत बाद प्रकाशित हुआ था। तब खालिस्तान का नारा पाकिस्तान प्रस्ताव के खिलाफ था।

पंजाब के इतिहास की जब भी बात होती है तो बंटवारे का दर्द, खालिस्तान का उभार और 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार का जिक्र किए बना यह अधूरा रहता है। 1 जून से 8 जून तक 1984 में चले ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत भारतीय सुरक्षा बलों ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे उग्रवादियों को टारगेट किया था। सुरक्षा बलों का यह ऐक्शन तो खालिस्तानी उग्रवादियों को मार गिराने के लिए था, लेकिन पंजाब में एक वर्ग इसे पवित्र स्थान पर सैन्य ऐक्शन के तौर पर देखता है। लेकिन यह खालिस्तान का जिक्र और भिंडरावाले का उभार जैसी चीजें कोई इतनी सामान्य घटनाएं नहीं थीं, जैसा कि हम पढ़ते आए हैं। इनके पीछे गहरे राजनीतिक मंतव्य थे तो वहीं ऐतिहासिक घटनाक्रम भी ऐसे रहे, जिनसे अलगाववाद को खाद पानी मिला।
इस संबंध में हमने हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मलकीत सिंह से बात की। पंजाब में उग्रवाद पर पीएचडी करने वाले प्रोफेसर मलकीत सिंह का खालिस्तान पर गहरा अध्ययन है। वह कहते हैं कि जब सरकार की भिंडरावाले के विरुद्ध कार्रवाई का विश्लेषण किया जाता है तो अधिकतर विद्वान ऑपरेशन ब्लू स्टार को सिख राष्ट्रवाद को दबाने के रूप में देखते हैं। वे भिंडरावाले को भारतीय राज्य के विरुद्ध सिख जातीय राष्ट्रवाद के नेता या संस्थापक के रूप में देखते हैं, जो एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र ‘खालिस्तान’ की स्थापना करना चाहता था। हालांकि वह कहते हैं कि भिंडरावाले का उभार और खालिस्तान का नारा सिर्फ धार्मिक राष्ट्रवाद के कारण नहीं आया। इसकी वजह चुनावी राजनीति को साधने की कोशिशें भी थीं।
वह बताते हैं, 'खालिस्तान शब्द का सबसे पहले प्रयोग लुधियाना के एक मेडिकल डॉक्टर वी.एस. भट्टी द्वारा एक पैम्फलेट के शीर्षक के रूप में 1940 में किया गया था, जो कि ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के लाहौर प्रस्ताव (जिसे पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है) के तुरंत बाद प्रकाशित हुआ था। डॉक्टर भट्टी की ओर से दिया गया खालिस्तान का नारा उस दौर में पाकिस्तान प्रस्ताव के खिलाफ था, जिसे मुस्लिम लीग लाई थी। तब खालिस्तान का नारा देकर चिनाब से लेकर यमुना तक के क्षेत्र पर दावेदारी की कोशिश थी। यह प्रयास था कि यदि पंजाब का बंटवारा ही होना है तो ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र भारत के हिस्से में आए।
हिंदू परिवार में पैदा हुए थे मास्टर तारा सिंह, खालिस्तान का किया था विरोध
हालांकि बाद में खालिस्तान शब्द का इस्तेमाल अलगाववादी गतिविधियों के लिए होने लगा। प्रोफेसर मलकीत सिंह कहते हैं कि खालिस्तान वाले पैम्फलेट की निंदा तो तब मास्टर तारा सिंह ने भी की थी। वह उस समय शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष हुआ करते थे। मास्टर तारा सिंह हिंदू परिवार में पैदा हुए थे और 1903 में सिख पंथ अपनाया था। उन्होंने कहा था कि खालिस्तान शब्द एक और भ्रम पैदा करेगा, जैसे एक भ्रम पाकिस्तान के नाम पर चल रहा है। हालांकि, एक अन्य सिख नेता और कांग्रेस पार्टी के मजबूत समर्थक बाबा गुरदित सिंह ने मास्टर तारा सिंह की राय को गलत बताया। उन्होंने खालिस्तान के विचार को लोकप्रिय बनाने के लिए दो सम्मेलन आयोजित किए।
अकाली दल नहीं चाहता था अलग राज्य, फिर कैसे बदल गया
वह कहते हैं कि अकाली दल कभी भी सिख पहचान का उपयोग सिखों के लिए अलग राज्य के निर्माण के लिए नहीं करना चाहता था। लेकिन देश का धार्मिक आधार पर विभाजन अकाली दल की राजनीति की लाइफलाइन हो गया। वे इस बात से अवगत थे कि यदि देश का विभाजन हुआ तो सिखों को सबसे अधिक नुकसान होगा क्योंकि पंजाब को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया जाना था। ऐसा ही हुआ भी। स्वतंत्रता की सुबह भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ आई। पाकिस्तान पंजाब (सप्त-सिंधु क्षेत्र) और पश्चिम बंगाल के क्षेत्र को काटकर बनाया गया।
बंटवारे में सिखों ने खो दी अपनी ढाई फीसदी आबादी
प्रोफेसर मलकीत सिंह कहते हैं कि इसी धर्म की राजनीति ने आगे चलकर पंजाब का भारत में भी विभाजन कराया। फिर पंजाब सूबे से निकलकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बन गए। अब जो पंजाब बचा था, वह सिख बहुल हो गया। पंजाब के बंटवारे का सिखों पर कैसा असर हुआ, इसके बारे में मलकीत सिंह विस्तार से बताते हैं। वह कहते हैं, 'जो सिख अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे, वे बंटवारे की हिंसा में 2.5% जनसंख्या खो बैठे और उन्होंने महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अमानवीय हिंसा का सामना किया। इसके साथ ही पश्चिम पंजाब में 75% सिंचित भूमि और संपत्तियों को भी उन्होंने खो दिया।'
कैसे बंटवारे के बाद सिख बहुल राज्य के लिए हुआ आंदोलन
स्वतंत्रता के बाद एक जनसांख्यिकीय परिवर्तन देखा गया क्योंकि पंजाब के मुस्लिमों की आबादी पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब की ओर स्थानांतरित हो गई और हिंदू तथा सिख पंजाब में प्रमुख समुदाय बन गए। स्वतंत्रता-पूर्व पंजाब की आबादी में हिंदू (30.1%) और सिख (14.9%) मिलाकर कुल जनसंख्या का 44% बनाते थे जबकि अकेले मुस्लिम 53.2% थे। स्वतंत्रता के बाद हिंदू कुल जनसंख्या का 65.75% और सिख 30.29% बन गए। इस बदले हुए माहौल में अकाली दल ने पंजाब सूबे के लिए आंदोलन छेड़ा और अंत में राज्य का पुनर्गठन हुआ तो हिंदी भाषी हरियाणा और हिमाचल अलग हुए। शेष बचा पंजाब का भाग सिख बहुल हो गया। वह कहते हैं कि सिख पहचान के नाम पर अलग से प्रांत बनना भी खालिस्तान की अलगाववादी भावना को बढ़ावा देने वाली रणनीति थी।