इस्तीफा देना रिटायरमेंट के ही बराबर, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला; विवादों में रहीं Ex जज की पेंशन मंजूर
पीठ ने आदेश दिया कि इस्तीफा देने वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को हाई कोर्ट जज (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954 के तहत पेंशन दिया जाय।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि इस्तीफा देना रिटायरमेंट के ही बराबर है। इसलिए इस्तीफा देनेवाले को पेंशन की सुविधा दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने गुरुवार को अपनी ही पूर्व जस्टिस के इस्तीफे के बाद उपजे गतिरोध को दूर करते हुए आदेश दिया कि इस्तीफा देने वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को हाई कोर्ट जज (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954 के तहत पेंशन दिया जाय। हाई कोर्ट ने कहा कि इस्तीफा देने वालीं जस्टिस इस अधिनियम के तहत पेंशन लाभ की हकदार हैं।
इस फैसले से पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को राहत मिली है, जिन्होंने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत विवादास्पद फैसलों के कारण कॉलेजियम द्वारा उनके कार्यकाल की पुष्टि नहीं किए जाने के बाद फरवरी 2022 में स्वेच्छा से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट रजिस्ट्रार द्वारा जारी किए गए पहले के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता (पुष्पा गनेडीवाला) को पेंशन लाभ देने से इनकार कर दिया गया था।
गनेडीवाला ने क्यों दिया था इस्तीफा
बता दें कि गनेडीवाला को 12 फरवरी, 2022 को हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के पद पर कार्यकाल की समाप्ति के बाद कॉलेजियम ने स्थाई जज के रूप में नामित नहीं किया और जिला सत्र न्यायाधीश के रूप में पदावनत कर दिया था। उनके खिलाफ यह कार्रवाई तब की गई थी, जब पोक्सो अधिनियम के तहत एक मामले में ‘यौन हमले’ की उनकी व्याख्या को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।
गनेडीवाला अपने कई उन फैसलों के लिए सवालों के घेरे में आ गई थीं, जिनमें कहा गया था कि पोक्सो अधिनियम के तहत यदि ‘यौन संबंध बनाने के इरादे से त्वचा से त्वचा का संपर्क’ होता है तो उसे यौन हमला माना जाएगा अन्यथा ‘नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और किसी लड़के की पतलून की जिप खोलना’ इस अधिनियम के तहत ‘यौन हमला’ नहीं है।
हाई कोर्ट रजिस्ट्रार ने खारिज कर दिया था दावा
इस्तीफा देने के लंबे समय बाद जुलाई 2023 में, गनेडीवाला ने हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसमें उच्च न्यायालय (मूल पक्ष) के रजिस्ट्रार द्वारा 2 नवंबर, 2022 को जारी एक सूचना पत्र को चुनौती दी गई, जिसमें घोषित किया गया था कि वह हाई कोर्ट की एक जज के रूप में पेंशन और अन्य लाभों के लिए पात्र/हकदार नहीं हैं। गनेडीवाला ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पेंशन दिये जाने का अनुरोध करते हुए दलील दी थी कि ऐसा इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना होना चाहिए कि वह स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हुई हैं या एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत्त हुई हैं।
दो माह में शुरू हो पेंशन: HC
इस मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को नवंबर 2022 के रजिस्ट्रार के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि गनेडीवाला फरवरी 2022 से ही हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश के बराबर पेंशन पाने की हकदार हैं। अदालत ने आदेश दिया, ‘‘हम रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि आज से दो महीने के भीतर फरवरी 2022 से छह प्रतिशत ब्याज के साथ उनकी पेंशन तय की जाए।’’ (भाषा इनपुट्स के साथ)