मुर्शिदाबाद हिंसा को लेकर कटघरे में टीएमसी और पुलिस
कलकत्ता हाईकोर्ट की एक समिति की रिपोर्ट ने मुर्शिदाबाद हिंसा में पुलिस और टीएमसी नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि...

कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से गठित एक समिति की रिपोर्ट ने मुर्शिदाबाद हिंसा में पुलिस और स्थानीय टीएमसी नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए हैं.पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में बीते महीने वक्फ कानून के खिलाफ हुई हिंसा क्या सुनियोजित थी? कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से गठित तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट ने इसका संकेत देते हुए पुलिस और स्थानीय टीएमसी नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाया है.बीते महीने वक्फ कानून के विरोध में मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा और आगजनी की घटनाओं में कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग घायल हुए थे.आठ से 12 अप्रैल के बीच हुई इस हिंसा के दौरान सैकड़ों दुकानें और घर भी जला दिए गए थे.हिंसा प्रभावित इलाके के की लोगों ने मुर्शिदाबाद से भागकर मालदा जिले में शरण ली थी.इस मामले में अब तक करीब तीन सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है.हाथ पर हाथ धरे बैठी रही पुलिस: रिपोर्टकलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में दायर याचिकाओं की सुनवाई के बाद एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था.उस टीम ने अदालत को सौंपी अपनी रिपोर्ट में पुलिस और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कुछ स्थानीय नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.उसने रिपोर्ट में साफ कहा है कि पुलिस ने अपनी भूमिका नहीं निभाई और ज्यादातर मामलों में हाथ पर हाथ धरे बैठी रही.इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर और तेज हो गया है.पिछले महीने से ही दोनों पार्टियां इस घटना के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराती रही हैं.बीजेपी ने जहां इसके लिए स्थानीय पुलिस प्रशासन और सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को जिम्मेदार बताया था, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किसी का नाम लिए बिना कहा था कि बाहर से लोगों को बुलाकर इन घटनाओं को अंजाम दिया गया था. टीएमसी के पार्षद भी लूटपाट में शामिल थे: रिपोर्टअदालत ने बीते 17 अप्रैल को इस समिति का गठन किया था.इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार जोगिंदर सिंह के अलावा वेस्ट बंगाल लीगल अथॉरिटी के सदस्य सचिव सत्य अर्णब घोषाल और वेस्ट बंगाल ज्यूडिशियल सर्विस के रजिस्ट्रार सौगत चक्रवर्ती शामिल थे.इस टीम ने बीते सप्ताह हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी की खंडपीठ ने मुर्शिदाबाद में हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बीती 15 मई को रिपोर्ट मिलने की बात स्वीकार की थी.लेकिन जज ने कहा था कि गोपनीयता के लिहाज से अभी इसको सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है.अदालत ने समिति को हिंसा की वजह से विस्थापित लोगों की शिनाख्त कर उनके पुनर्वास का उपाय भी सुझाने को कहा था.खंडपीठ ने रिपोर्ट के हवाले कहा कि राज्य सरकार नागरिकों के एक तबके को सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रही है.अब सिर्फ योग्य मूल्यांकन विशेषज्ञों की नियुक्ति के जरिए ही इस नाकामी को दूर किया जा सकता है.रिपोर्ट में कहा गया है, "असामाजिक तत्वों ने शमशेरगंज इलाके में कई दुकानों में और एक शापिंग माल में भी लूटपाट की.इसमें स्थानीय लोगों के हवाले बताया गया है कि हमलावरों ने पहचान छिपाने के लिए अपने चेहरे मास्क से ढक रखे थे.भीड़ के साथ टीएमसी के स्थानीय पार्षद महबूब आलम भी थे" हिंसा के दौरान ढहाए गए 113 घररिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा के दौरान कुल 113 घरों को ढहा दिया गया था. स्थानीय लोगों के हवाले इसमें कहा गया है कि इस हिंसा के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही.इलाके के बेतबोना गांव के लोगों ने हिंसा के दौरान शाम चार बजे पुलिस को फोन किया था.लेकिन किसी ने फोन तक नहीं उठाया.कुछ जगह पुलिस के जवान गैरहाजिर थे तो कुछ जगह वो निष्क्रिय बने रहे.इससे पहले राज्य सरकार ने अदालत को सौंपी अपनी एक रिपोर्ट में मुर्शिदाबाद के जंगीपुर इलाके में हुई हिंसा का ब्योरा देते हुए बताया था कि आठ अप्रैल को अचानक हिंसा भड़क गई.इसके बाद अदालत के आदेश पर 11 और 12 अप्रैल को मौके पर केंद्रीय बलों को तैनात कर दिया गया.पुलिस और प्रशासन के साझा प्रयासों से हिंसाग्रस्त इलाकों में स्थिति पर काबू पाने में कामयाबी मिली.पीड़ित परिवारों को 20 लाख का मुआवजामुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते महीने आरोप लगाया था कि मुर्शिदाबाद की हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ है.उन्होंने मई के पहले सप्ताह में हिंसाग्रस्त रहे इलाकों का दौरा भी किया था.तब उन्होंने प्रभावितों के साथ खड़े रहने और उनको हुए नुकसान की भरपाई का भरोसा दिया था.मुख्यमंत्री ने उन तमाम लोगों को राज्य सरकार की एक योजना बांग्लार बाड़ी (बंगाल का घर) के तहत मकान देने का ऐलान किया था. उन्होंने बताया कि मुख्य सचिव ने इलाके का दौरा कर दुकानों और दुकानों को होने वाले नुकसान का जायजा लिया है.उनकी रिपोर्ट के आधार पर संबंधित लोगों को मुआवजा दिया जाएगा.सरकार ने इस हिंसा में मारे गए तीन लोगों के परिजनों को 10-10 लाख का मुआवजा देने की घोषणा की.बीजेपी की ओर से विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी हिंसा का शिकार बने परिवारों को इतनी ही रकम की आर्थिक सहायता देने की बात कही.बीजेपी ने साधा टीएमसी पर निशानाअब यह रिपोर्ट सामने आने के बाद बीजेपी ने ममता सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं.बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष डीडब्ल्यू से कहते हैं, "रिपोर्ट ने सत्तारूढ़ पार्टी और प्रशासन के गठजोड़ को साफ कर दिया है.इलाके में सुनियोजित तरीके से हिंदू आबादी को निशाना बनाया गया" बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने दिल्ली में इस मामले पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया है कि इस हिंसा के पीछे टीएमसी नेताओं का हाथ था.पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी इस रिपोर्ट के हवाले तृणमूल कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है.दूसरी ओर, ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस ने अब तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है.पार्टी के प्रवक्ता जय कुमार मजूमदार ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह मामला अदालत में विचाराधीन है.इसलिए फिलहाल हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते".