'भारत ने रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंक दिया', UN ने शुरू की जांच; SC बोला- खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी
UN ने भारत से रोहिंग्याओं की जबरन वापसी को रोकने की मांग की है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देकर याचिका पर तत्काल कार्रवाई से इनकार कर दिया है। जानिए पूरा मामला।
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने हाल ही में सामने आए उन आरोपों की जांच शुरू की है, जिनमें दावा किया गया कि भारतीय नौसेना ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंडमान सागर में जबरन समुद्र में फेंक दिया। इन शरणार्थियों को कथित तौर पर दिल्ली से हिरासत में लिया गया और म्यांमार की समुद्री सीमा के पास अंतरराष्ट्रीय जल में छोड़ दिया गया। इस बीच, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दायर एक याचिका को "खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी" करार देते हुए इसे सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने 15 मई को एक बयान जारी कर कहा कि वह इन "अस्वीकार्य और अमानवीय" कृत्यों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ नियुक्त कर रहा है। म्यांमार में मानवाधिकार स्थिति पर यूएन के विशेष दूत टॉम एंड्रयूज ने कहा, "रोहिंग्या शरणार्थियों को नौसेना के जहाजों से समुद्र में फेंकने का विचार पूरी तरह से अपमानजनक है।" उन्होंने भारत सरकार से इस घटना का पूरा ब्योरा देने और रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ कथित अमानवीय व्यवहार को रोकने की मांग की।
एंड्रयूज ने यह भी कहा कि म्यांमार में रोहिंग्याओं को हिंसा, उत्पीड़न और गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों का खतरा है, इसलिए उनकी जबरन वापसी अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत 'नॉन-रिफाउलमेंट' का उल्लंघन है। 'नॉन-रिफाउलमेंट' अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक सिद्धांत है जो किसी व्यक्ति को उस देश में वापस भेजने से रोकता है जहां उसे उत्पीड़न, यातना या अन्य गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन का खतरा है। यह सिद्धांत प्रवासन स्थिति की परवाह किए बिना लागू होता है, चाहे कोई व्यक्ति शरणार्थी, शरण चाहने वाला या अन्य प्रवासी हो।
यूएन के अनुसार, 6 मई को दिल्ली पुलिस ने 40 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को बायोमेट्रिक डेटा कलेक्ट करने के बहाने हिरासत में लिया। इनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर और मधुमेह से पीड़ित लोग शामिल थे। इन्हें कथित तौर पर दिल्ली के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में 24 घंटे से अधिक समय तक रखा गया, फिर इंदरलोक डिटेंशन सेंटर में शिफ्ट किया गया। इसके बाद, उन्हें पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया, जहां उनकी आंखों पर पट्टी बांधी गई और हाथ बांधकर नौसेना के जहाज पर ले जाया गया। जहाज ने अंडमान सागर पार करने के बाद शरणार्थियों को लाइफ जैकेट देकर समुद्र में फेंक दिया और उन्हें म्यांमार के एक द्वीप की ओर तैरने के लिए मजबूर किया गया।
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, भारत में अभी भी मौजूद कई रोहिंग्या शरणार्थियों ने दावा किया है कि उनके परिवार के सदस्य उन लोगों में शामिल थे जिन्हें 6 मई को भारतीय अधिकारियों ने हिरासत में लिया था। एक शरणार्थी ने कहा, "मेरे माता-पिता को मुझसे छीन लिया गया और पानी में फेंक दिया गया...अगर मैं अपने माता-पिता से फिर से मिल जाऊं तो यह काफी होगा। मुझे बस अपने माता-पिता चाहिए, और कुछ नहीं।"
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
दिल्ली में रहने वाले दो रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दायर एक रिट याचिका में दावा किया गया कि 43 शरणार्थियों को इस तरह से निर्वासित किया गया। याचिका में मांग की गई कि भारत सरकार इन शरणार्थियों को तुरंत दिल्ली वापस लाए और उनकी हिरासत से रिहा करे। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि इस प्रक्रिया में बच्चों को उनकी माताओं से अलग किया गया और परिवार बिखर गए।
हालांकि, 16 मई को जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस याचिका पर संदेह जताया। जस्टिस कांत ने याचिका को "खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी" करार देते हुए कहा, "हर दिन आप एक नई कहानी लेकर आते हैं। इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस मटेरियल नहीं है।" कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि दिल्ली में बैठे याचिकाकर्ता को अंडमान तट से समुद्र में फेंके जाने की जानकारी कैसे मिली।
"विदेशी रिपोर्ट्स भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकतीं"
याचिकाकर्ताओं के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने तर्क दिया कि उन्हें म्यांमार तट से एक फोन कॉल प्राप्त हुआ था और संयुक्त राष्ट्र ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि म्यांमार में रोहिंग्या नरसंहार के खतरे का सामना कर रहे हैं। कोलिन गोंजाल्विस ने सबूत के तौर पर "म्यांमार तटों" से रिपोर्ट और ऑडियो रिकॉर्डिंग पेश करने की पेशकश की। हालांकि, हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा, "ऐसी सामग्री तो पेश की जा सकती है, लेकिन विदेशी रिपोर्ट्स भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकतीं।"
न्यायमूर्ति कांत ने पूछा, "हर बार, आपके पास एक नई कहानी होती है। अब (कहां से) यह खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी आ रही है?... वीडियो और तस्वीरें कौन क्लिक कर रहा था? वह वापस कैसे आया? रिकॉर्ड में क्या सामग्री है?" न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, "जब देश मुश्किल दौर से गुज़र रहा होता है, तो आप काल्पनिक विचार सामने लाते हैं।" कोर्ट ने याचिका को अन्य लंबित रोहिंग्या मामलों के साथ जोड़ दिया और अगली सुनवाई 31 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित की।
रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति
रोहिंग्या एक मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय है, जो म्यांमार में दशकों से उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा शुरू किए गए नरसंहार अभियान के बाद, लगभग 7 लाख रोहिंग्या को बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र ने इसे नरसंहार के रूप में वर्णित किया है। भारत में, अनुमानित 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं, जिनमें से लगभग 22,500 यूएनएचसीआर के साथ पंजीकृत हैं। हालांकि, भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, जिसके कारण रोहिंग्या को अक्सर अवैध प्रवासियों के रूप में देखा जाता है।
भारत सरकार का रुख
भारत सरकार ने इन आरोपों पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। नौसेना और विदेश मंत्रालय ने भी इस मामले पर कोई बयान नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पहले कहा था कि रोहिंग्या को विदेशी नागरिकों के रूप में कानून के अनुसार निर्वासित किया जाएगा। 8 मई को कोर्ट ने कहा था कि यदि रोहिंग्या को भारतीय कानूनों के तहत विदेशी माना जाता है, तो उन्हें निर्वासित करना होगा।