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क्या है पट्टाभिषेक, अखाड़े की महामंडलेश्वर कैसे बनेंगी ममता कुलकर्णी? पूरी प्रक्रिया समझिए

  • अखाड़े के संतों और महंतों के बीच यह तय किया जाता है कि कौन इस पद के लिए योग्य है। इस चयन में साधु-संत की आध्यात्मिक गहराई, शास्त्रों का ज्ञान, तप और समाज सेवा में योगदान को ध्यान में रखा जाता है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, प्रयागराजFri, 24 Jan 2025 10:53 PM
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क्या है पट्टाभिषेक, अखाड़े की महामंडलेश्वर कैसे बनेंगी ममता कुलकर्णी? पूरी प्रक्रिया समझिए

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 के दौरान पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक किया जा रहा है। उन्हें अब यमाई ममता नंदगिरी के नाम से जाना जाएगा। यह प्रक्रिया न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि पट्टाभिषेक क्या है और अखाड़े अपने महामंडलेश्वर का चयन कैसे करते हैं।

पट्टाभिषेक का अर्थ और महत्व

पट्टाभिषेक का अर्थ है किसी व्यक्ति को एक विशिष्ट धार्मिक पद पर विधिवत स्थापित करना। यह प्रक्रिया वैदिक मंत्रों, अनुष्ठानों और पवित्र विधियों के साथ संपन्न होती है। पट्टाभिषेक किसी अखाड़े के महामंडलेश्वर के चयन और उन्हें पदस्थापित करने का एक औपचारिक अनुष्ठान है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि चयनित व्यक्ति अखाड़े के मूल्यों, सिद्धांतों और परंपराओं का पालन करेगा और समाज के लिए एक मार्गदर्शक बनेगा।

जिस भी साधु-संतों का पट्टाभिषेक होता है उसे उनके अखाड़े में एक विशेष सम्मान का दर्जा मिलता है। इसके बाद उनको अखाड़े की ओर से एक चादर उढ़ाई जाती है। यह चादर ही कपड़े का पट्टा कहलाता है, जिसे पट्टाभिषेक कहा जाता है। ठीक वैसे ही जैसे किसी राजा को राजपाट सौंपने के लिए उसे तिलक लगाकर मुकुट पहनाया जाता है, सिंहासन पर बैठाया जाता है और माला पहनाकर फूल बरसाए जाते हैं। उसी तरह साधु-संतों के समाज में भी, जब किसी खास साधु या संत को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है, तो उसका स्वागत किया जाता है।

महामंडलेश्वर का चयन कैसे होता है?

महामंडलेश्वर का चयन एक विशेष प्रक्रिया के तहत होता है, जो मुख्य रूप से अखाड़ों और संत परंपराओं से जुड़ी होती है। यह प्रक्रिया धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक योगदान के आधार पर की जाती है। महामंडलेश्वर बनने से पहले उस शख्स को अपना पिंडदान करना होता है। गंगा में स्नान के बाद गुरु की देखरेख में उससे अपना पिंडदान कराया जाता है। पिंडदान के बाद फिर से स्नान कराया जाता है। इसके बाद पट्टाभिषेक होता है और उसे महामंडलेश्वर की उपाधि मिल जाती है।

निम्नलिखित चरणों में यह प्रक्रिया संपन्न होती है:

योग्यता और अनुभव की जांच

अखाड़े के संतों और महंतों के बीच यह तय किया जाता है कि कौन इस पद के लिए योग्य है। इस चयन में साधु-संत की आध्यात्मिक गहराई, शास्त्रों का ज्ञान, तप और समाज सेवा में योगदान को ध्यान में रखा जाता है।

अखाड़े की सहमति

अखाड़े की परिषद आपस में चर्चा कर संभावित उम्मीदवारों की सूची बनाती है। इसके बाद सर्वसम्मति से एक व्यक्ति को चुना जाता है।

संन्यास की दीक्षा

महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति का संन्यासी होना आवश्यक है। उन्हें पहले संन्यास दीक्षा दी जाती है, और वे अखाड़े के नियमों का पालन करते हैं।

पट्टाभिषेक की घोषणा

चयन के बाद पट्टाभिषेक की तिथि तय की जाती है। इस दौरान अखाड़े के सभी संत, महंत, और भक्तजन एकत्र होते हैं।

विधिवत अनुष्ठान

पट्टाभिषेक के दिन वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चयनित व्यक्ति को पवित्र गंगा जल, चंदन, पुष्प और रुद्राक्ष से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद उन्हें भगवा वस्त्र, मुकुट और दंड प्रदान किया जाता है, जो उनके नए पद का प्रतीक होता है।

नामकरण और अधिकार सौंपना

नए महामंडलेश्वर को एक नया नाम दिया जाता है, जो उनकी आध्यात्मिक पहचान को दर्शाता है। ममता कुलकर्णी को इसी प्रकार 'यमाई ममता नंदगिरी' नाम दिया गया। इसके साथ ही उन्हें अखाड़े के अधिकार और जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं। महामंडलेश्वर बनने के बाद, व्यक्ति को धर्म प्रचार, अखाड़े का नेतृत्व, और समाज में धार्मिक और सामाजिक जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी दी जाती है।

किन्नर अखाड़ा और इसका महत्व

भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो सनातन धर्म और वैदिक परंपराओं के संरक्षण का कार्य करते हैं। हालांकि किन्नर अखाड़ा इनसे अलग है। किन्नर अखाड़ा विशेष रूप से किन्नर समुदाय (हिजड़ा या ट्रांसजेंडर समुदाय) से संबंधित है। इसे 2015 में स्थापित किया गया था और यह हिंदू धर्म में किन्नर समुदाय की धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मान्यता को बढ़ावा देने का कार्य करता है। किन्नर अखाड़ा का उद्देश्य न केवल किन्नर समुदाय को मुख्यधारा के समाज में समानता और सम्मान दिलाना है, बल्कि धर्म और आध्यात्मिकता में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को पुनर्स्थापित करना भी है।

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किन्नर अखाड़ा की स्थापना:

स्थापना वर्ष: 2015

संस्थापक: आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, जो एक प्रसिद्ध किन्नर नेता और धार्मिक गुरु हैं।

स्थान: इसकी स्थापना उज्जैन में हुई थी, जहां इसे पहली बार कुंभ मेले में प्रस्तुत किया गया।

उद्देश्य:

  • किन्नर अखाड़ा का उद्देश्य किन्नर समुदाय को धर्म और समाज में उचित स्थान दिलाना है।
  • किन्नर समुदाय को आध्यात्मिक शिक्षा और साधना के लिए प्रेरित करना।
  • किन्नर समुदाय को समाज में समान अधिकार दिलाने और उनके प्रति भेदभाव खत्म करने के लिए काम करना।

कुंभ मेले और अन्य धार्मिक आयोजनों में किन्नर अखाड़ा की भागीदारी इस बात का प्रतीक है कि किन्नर समुदाय का धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है। किन्नर अखाड़ा के प्रमुख को "महामंडलेश्वर" का दर्जा दिया गया है, और उनके नेतृत्व में यह अखाड़ा संचालित होता है। 2019 में प्रयागराज कुंभ मेले के दौरान किन्नर अखाड़ा ने पहली बार भव्य रूप से शोभायात्रा निकालकर धर्म और आध्यात्मिकता में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस अखाड़ा में गीता, वेद, और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और शिक्षण होता है। हिंदू धर्म में किन्नर समुदाय का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यह माना जाता है कि किन्नर समुदाय में विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं, और उनके आशीर्वाद को शुभ माना जाता है। किन्नर अखाड़ा इस परंपरा को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रहा है।

महत्वपूर्ण संदेश

पट्टाभिषेक की प्रक्रिया न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे समाज की विविधता और परंपराओं को भी दर्शाती है। यह चयन और पदस्थापन इस बात का प्रतीक है कि हमारे समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिल सकता है, यदि वे सेवा और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलें। महाकुंभ के दौरान यह ऐतिहासिक पट्टाभिषेक न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण घटना है।