भारत से चीतों का संरक्षण सीखना चाहता है ईरान
भारत में चीतों की पुन: संरक्षण योजना की सफलता से कई देश प्रभावित हुए हैं। ईरान ने भारत से चीता प्रबंधन सीखने में रुचि दिखाई है। भारतीय अधिकारियों ने बताया कि ईरान के अधिकारियों ने हाल ही में इस विषय...

भारत में चीतों की पुन: संरक्षण योजना की सफलता से प्रभावित हुए कई देश दुनिया में चीतों के संरक्षण के लिए भारत सरकार सहयोग के लिए तैयार नई दिल्ली, एजेंसी। चीतों की घटती आबादी के मद्देनजर ईरान ने उनके संरक्षण के लिए भारत से चीता प्रबंधन सीखने में रूचि दिखाई है। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के माध्यम से यह जानकारी दी गई है। सरकार की चीता परियोजना संचालन समिति के अध्यक्ष राजेश गोपाल ने फरवरी में हुई समिति की बैठक के दौरान यह जानकारी साझा की। बैठक के विवरण में गोपाल के हवाले से कहा गया है, “हाल ही में हुई एक बैठक में ईरानी अधिकारियों ने भारत में चीता संरक्षण सीखने में अपनी रूचि व्यक्त की है।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत के नेतृत्व वाली पहल- ‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस, चीता संरक्षण और प्रबंधन के बारे में रूचि रखने वाले अन्य उन देशों से संपर्क कर सकती हैं जहां चीतें पाए जाते हैं। हालांकि, जब यह पूछा गया कि क्या ईरान ने इस संबंध में भारत से औपचारिक रूप से संपर्क किया है, तो राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस समय ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। भारत में चीतों के लिए सरकार की कार्य योजना में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश को गंभीर रूप से संकटग्रस्त ईरानी चीतों के संरक्षण के प्रयासों में ईरान और वैश्विक संरक्षण समुदाय की सहायता करने में खुशी होगी। भारत में खत्म हो चुके थे चीते, पुन: किया संरक्षण : चीता एकमात्र ऐसा बड़ा मांसाहारी प्राणी है जो अधिक शिकार और जंगलों में कमी के कारण भारत में लुप्त हो चुका है। छत्तीसगढ़ में कोरेया जिले के साल के जंगल में 1948 में आखिरी ज्ञात चीता मारा गया था, जिसके बाद देश में चीते को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। भारत ने ईरान के शाह के साथ 1970 के दशक में एशियाई शेरों के बदले एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए चर्चा शुरू की थी। हालांकि, ईरान में एशियाई चीतों की कम आबादी और ईरानी तथा अफ्रीकी चीतों के बीच आनुवंशिक समानता को देखते हुए, बाद में चीतों की अफ्रीकी प्रजातियों को लाने का फैसला किया गया। भारत में आठ चीते और आएंगे: भारत ने चीतों को फिर से बसाने के मकसद से सितंबर 2022 से अपने वैश्विक कार्यक्रम की शुरूआत की, जिसके तहत 20 अफ्रीकी चीतों को यहां लाया गया। इनमें से आठ नामीबिया और 12 दक्षिण अफ्रीका से लाए गए। अब दो चरणों में बोत्सवाना से आठ और चीते यहां लाए जाने की तैयारी है, जिनमें से पहले चार चीतों को इस वर्ष मई तक यहां लाने की संभावना है। कभी मध्य और दक्षिण-पश्चिम एशिया में पाया जाने वाले एशियाई चीते अब केवल ईरान में ही बचे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि जंगल में 30 से भी कम चीते बचे हैं।
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