संशोधित.... ‘संसद नहीं, संविधान है सुप्रीम- देश के अगले सीजेआई गवई
प्रभात कुमार नई दिल्ली। भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है

प्रभात कुमार नई दिल्ली। भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है कि ‘देश में संसद नहीं, संविधान सर्वोच्च है। न्यायपालिका, खासकर सुप्रीम कोर्ट पर विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल देने के आरोपों के बारे में कहा कि ‘केशवानंद भारती बनाम भारत सरकार के मामले में 13 जजों की संविधान पीठ ने यह तय कर दिया है कि ‘देश में संविधान ही सर्वोच्च है और हम सभी इससे बंधे हैं। देश के 52वें सीजेआई के रूप में 14 मई से न्यायपालिका की बागडोर संभालने जा रहे जस्टिस गवई ने रविवार को अपने आवास पर अनौपचारिक बातचीत के दौरान कई मुद्दों पर खुलकर बात की।
जब उनसे उन बयानों के बारे में पूछा गया, जिसमें देश में संसद सर्वोच्च बताया गया, तो इसके जवाब में जस्टिस गवई ने केशवानंद भारती मामले में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया और कहा कि ‘देश में संसद नहीं, संविधान सर्वोच्च है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट पर विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि देश में संसद सुप्रीम है। युद्ध अच्छी चीज नहीं। पहलगाम में आतंकवादियों को द्वारा पर्यटकों की हत्या किए जाने के बाद भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ‘आपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच जंग जैसे हालात के बाद शनिवार को दोनों देशों के बीच हुए संघर्ष विराम की घोषणा पर भी जस्टिस गवई ने खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि देखिए, युद्ध अच्छी चीज नहीं... हमारे सामने युद्ध के दो उदाहरण है, जो अभी भी चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच कितने दिनों से युद्ध चल रहा है, आखिर क्या मिला... युद्ध से कुछ हासिल नहीं होता। आपरेशन सिंदूर के बाद युद्ध जैसे हालात और परिवार के सुरक्षा के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस गवई ने कहा कि हम भी देश के नागरिक हैं, हमें भी चिंता होती है। उनसे जब पूछा गया कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच उन्हें अपनी और परिवार की सुरक्षा को लेकर कोई चिंता हुई तो इस पर उन्होंने कहा कि नहीं। पहलगाम घटना से सुप्रीम कोर्ट के सभी जज स्तब्ध थे जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि कश्मीर पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में आतंकियों द्वारा पर्यटकों की हत्या किए जाने की दुखद घटना के बारे में सुबह जब अखबार में पढ़ा तो बहुत दुख हुआ। दरअसल, उस समय देश के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना देश से बाहर थे, इसलिए, मैंने उनसे सम्पर्क किया गया और सभी जजों ने फैसला लिया कि पहलगाम में आतंकी हमला में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा जाएगा... और रखा गया। उन्होंने कहा कि आखिर हम भी इस देश के जिम्मेदार नागरिक है, कुछ भी होता है तो हम भी प्रभावित होते हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि जब देश दुख में हो तो सुप्रीम कोर्ट उससे अलग नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि जब देश खतरे में हो तो सुप्रीम कोर्ट अलग-थलग नहीं रह सकता, हम देश का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट में पहली बार इस तरह की आतंकी घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरी तरह से साइरन बजाकर 2 मिनट के लिए मौन रखा गया। सीजेआई के बाद कोई पद नहीं लूंगा। जस्टिस गवई ने कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के पद से सेवानिवृत होने के बाद कोई पद नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक मेरा सवाल है, मैं सेवानिवृति के बाद कोई पद नहीं लूंगा। उन्होंने कहा कि मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है, इसलिए मैं सेवानिवृति के बाद कोई पद नहीं लूंगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राज्यपाल का पद संभालने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मैं दूसरों की ओर से नहीं बोल सकता। उन्होंने विस्तार से बताया कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश के लिए राज्यपाल का पद प्रोटोकॉल के हिसाब से देश मुख्य न्यायाधीश यानी सीजेआई के पद से नीचे है। राज्यपाल बनने या राज्यसभा में जाने जैसे मुद्दे पर जस्टिस गवई ने कहा कि देश के सीजेआई के पद पर एक प्रोटोकॉल होता है। यदि आप कहीं का राज्यपाल बन भी जाते हैं तो राज्यपाल का प्रोटोकॉल, सीजेआई के प्रोटोकॉल से नीचे होता है। ऐसे में, सीजेआई के पद से सेवानिवृत होने के बाद कोई पद धारण नहीं करना चाहिए। बौद्ध धर्म को मानने वाले पहले सीजेआई होंगे गवई जस्टिस बीआर गवई बौद्ध धर्म को मानने वाले देश के पहले और दलित समुदाय से आने वाले देश के दूसरे सीजेआई होंगे। उन्होंने कहा कि यह महज संयोग है कि बुद्ध पूर्णिमा के अगले दिन सीजेआई के पद पर शपथ लेंगे। यह मेरे लिए गौरवपूर्ण क्षण होगा। उन्होंने कहा कि बुद्ध पूर्णिमा पर दिल्ली स्थित शांति स्तूप जाकर प्रार्थना करेंगे। उन्होंने कहा कि वह मूलत: हिंदू हैं, लेकिन उनके पिता ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था। सीजेआई बनने जा रहे जस्टिस गवई, आरएस गवई के पुत्र हैं। जस्टिस गवई के पिता बिहार और केरल के राज्यपाल थे। वह एक ऐसे परिवार से हैं जो बीआर अंबेडकर के आदर्शों को बढ़ावा देने में गहराई से लगा हुआ है। उच्च न्यायालय के जजों को भी संपत्ति सार्वजनिक करना चाहिए। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की जजों की तरह देश के सभी उच्च न्यायालयों के जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा के घर लगी बुझाने के दौरान भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद न्यायपालिका में पारदर्शिता पर उठ रहे सवाल के बीच सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने पिछले सप्ताह अपनी संपत्ति की घोषणा कर दी। जब उनसे पूछा गया कि क्या उच्च न्यायालय के जजों को भी सुप्रीम कोर्ट की तरह अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए? इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि उच्च न्यायालय के जजों को भी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 33 में से 21 ने संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा कर दी है, बाकी भी जल्द इसकी घोषणा करेंगे। जस्टिस वर्मा के खिलाफ तय प्रक्रिया के तहत होगी कार्रवाई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ 3 जजों की जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई है और अब इस मामले में तय प्रक्रिया के तहत कार्रवाई होगी। जब उनसे पूछा गया कि क्या सीजेआई संजीव खन्ना द्वारा जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजते समय क्या महाभियोग की भी सिफारिश की है, तो उन्होंने कहा कि रिपोर्ट भेज दी गई है और तय प्रक्रिया से कार्रवाई होगी। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज की जा सकती है, तो उन्होंने विवाद पर आगे कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहते हुए जस्टिस वर्मा के घर में 14 मार्च को लगी आग बुझाने के दौरान भारी मात्रा में नकदी मिली थी और इसकी पुष्टि जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में की है। जस्टिस वर्मा द्वारा इस्तीफा देने से इनकार के बाद आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया गया। संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में नहीं हो सकता है आरक्षण जस्टिस बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम और केंद्र द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी नहीं दिए जाने से संबंधित एक सवाल पर उन्होंने विशिष्ट टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के सवाल के जवाब में जस्टिस गवई ने कहा कि संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों में आरक्षण नहीं हो सकता। हालांकि, उन्होंने कहा कि संबंधित लोगों को उच्च न्यायपालिका में समाज के विभिन्न वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर जागरूक होना चाहिए। महिला जजों की कम संख्या के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कई बार उपयुक्त व्यक्ति मिलना मुश्किल होता है।
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