बीसीआई को कानूनी शिक्षा का पाठ्यक्रम तय करने के बजाए वकीलों के प्रशिक्षण पर देना चाहिए ध्यान- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बीसीआई द्वारा लॉ कॉलेजों के शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप पर कड़ी नाराजगी जताई। न्यायालय ने कहा कि यह काम शिक्षाविदों का है। कोर्ट ने बीसीआई को कानूनी शिक्षा के पाठ्यक्रम तय करने की...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) द्वारा देशभर में लॉ कॉलेजों के शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप किए जाने पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। शीर्ष अदालत ने सवालिया लहजे में कहा कि ‘देश में कानूनी शिक्षा के मुद्दे पर बीसीआई को क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए, जबकि यह काम शिक्षाविदों का है।
जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ‘बीसीआई से कहा कि आप शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? पीठ ने यह भी कहा कि बीसीआई को लॉ कॉलेजों के पाठ्यक्रम आदि क्यों तय करने चाहिए। यह काम तो किसी अकादमिक विशेषज्ञ को करना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘देश में वकीलों का एक बहुत बड़ा वर्ग है। आपके पास उनके ज्ञान को अपडेट करने और उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की एक बड़ी वैधानिक जिम्मेदारी है। इतना ही नहीं, उन्होंने विधिज्ञ परिषद से कहा कि आप याचिका का तैयार करने की कला, केस कानूनों को समझने आदि पर प्रशिक्षण दे सकते हैं और यह आपकी वैधानिक जिम्मेदारी का हिस्सा होना चाहिए। पीठ ने सीबीआई से कहा कि कानूनी शिक्षा का पाठ्यक्रम तय करने काम का शिक्षाविदों को सौंपा जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने देश में एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम को खत्म करने और विदेशी एलएलएम को मान्यता देने के बीसीआई के 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इसके साथ ही, पीठ ने मामले में कानूनी शिक्षा का पाठ्यक्रम बीसीआई द्वारा तय करने के मुद्दे पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है। पीठ ने इस मामले में देश के अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से भी मामले में सहायता करने आग्रह किया है।
मामले की सुनवाई के दौरान बीसीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने पीठ से कहा कि मौजूदा व्यवस्था के तहत कानूनी शिक्षा का पाठ्यक्रम तय करने का काम बीसीआई के पास है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने बीसीआई से कहा कि आपके ने खुद से यह तय कर लिया और दावा कर रहे हैं कि आप इस देश में एकमात्र प्राधिकारी हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता तन्खा ने इसके बाद कहा कि देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में हितधारकों की एक समिति गठित की गई थी, जो एक वर्षीय और दो वर्षीय एलएलएम डिग्री को समान करने के लिए एक रूपरेखा की जांच और सिफारिश करेगी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मौजूदा कानूनी शिक्षा प्रणाली के तहत जमीनी स्तर पर शामिल किए जा रहे न्यायिक अधिकारियों की गुणवत्ता पर अपना असंतोष व्यक्त किया।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘कानूनी शिक्षा में, न्यायपालिका प्राथमिक हितधारक है... हमें किस तरह के अधिकारी मिल रहे हैं? क्या वे उचित रूप से संवेदनशील हैं। क्या उनमें करुणा है। क्या वे जमीनी हकीकत को समझते हैं या सिर्फ यांत्रिक निर्णय देते हैं? पीठ ने कहा कहा कि शिक्षाविद मुद्दों की जांच कर सकते हैं। पीठ ने बीसीआई से कहा कि आप अपनी जिम्मेदारी का ख्याल रखें। देश में लगभग 10 लाख वकील हैं और आपको लॉ कॉलेजों में निरीक्षण करने के बजाय उन्हें प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि बीसीआई न केवल एलएलएम, बल्कि पीएचडी, डिप्लोमा में भी हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है। सिंघवी ने पीठ से कहा कि बीसीआई का उद्देश्य कानूनी पेशे में प्रवेश को विनियमित करना था और फिर दाखिले को लेकर कानून आया। हम दो साल के पाठ्यक्रम (एलएलएम) को खत्म करने के बारे में नहीं कह रहे हैं, लेकिन क्या कोई प्रैक्टिसिंग वकील दो साल का एलएलएम या एक साल का एलएलएम करना पसंद करेगा?
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