Supreme Court Declares Right to Pollution-Free Environment as Fundamental Right सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोका, Delhi Hindi News - Hindustan
Hindi NewsNcr NewsDelhi NewsSupreme Court Declares Right to Pollution-Free Environment as Fundamental Right

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोका

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार मौलिक अधिकार का हिस्सा है। अदालत ने केंद्र के पर्यावरणीय मंजूरी देने वाले परिपत्र को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 17 May 2025 12:32 AM
share Share
Follow Us on
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोका

वैकल्पिक हेडिंग प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार मौलिक अधिकार का हिस्सा : सुप्रीम कोर्ट क्रॉसर अदालत ने पर्यावरणीय मंजूरी देने वाले केंद्र के परिपत्र को भी खारिज कर दिया वनशक्ति संगठन की याचिका पर फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने की कड़ी टिप्पणी नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार मौलिक अधिकार का हिस्सा है और मानदंडों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को बाद की अवधि में पर्यावरणीय मंजूरी देने वाले केंद्र के परिपत्र को भी खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने वनशक्ति संगठन की याचिका पर अपने फैसले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार, हर नागरिक की तरह, पर्यावरण की रक्षा करने का संवैधानिक दायित्व रखती है।

अदालत ने कहा कि उसे केंद्र द्वारा ऐसा कुछ करने के प्रयास पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो कानून के तहत पूरी तरह से प्रतिबंधित है। 2021 में जारी परिपत्र पर्यावरण कानून के विपरीत पीठ ने 2021 के कार्यालय ज्ञापन और संबंधित परिपत्रों को मनमाना, अवैध और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 तथा पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 के विपरीत घोषित किया। अदालत ने केंद्र को किसी भी तरीके से पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी देने या ईआईए अधिसूचना के उल्लंघन में किए गए कार्यों को नियमित करने के लिए निर्देश जारी करने से रोक दिया गया। अनुच्छेद-21 प्रदूषण मुक्त वातावरण का अधिकार देता है अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-21 प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार देता है। वास्तव में, 1986 का अधिनियम इस मौलिक अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए अधिनियमित किया गया है। इसलिए, केंद्र सरकार का भी कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करे। इसमें कहा गया कि पूर्व पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने की शर्त के उल्लंघन से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन पर सख्त रुख पीठ ने कहा कि पर्यावरण से जुड़े मामलों में, अदालतों को पर्यावरण से जुड़े कानूनों के उल्लंघन पर बहुत सख्त रुख अपनाना चाहिए। ऐसा करना संवैधानिक अदालतों का कर्तव्य है। इसने दिल्ली और कई अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर पर्यावरण क्षरण के कारण मानव जीवन पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों को रेखांकित किया। साल के दो महीने दिल्ली के लोगों का घुटता है दम पीठ ने कहा कि हर साल कम से कम दो महीने तक दिल्ली के निवासियों का वायु प्रदूषण के कारण दम घुटता है। एक्यूआई का स्तर या तो खतरनाक होता है या बहुत खतरनाक। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। अन्य प्रमुख शहर भी पीछे नहीं हैं। शहरों में वायु और जल प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। क्या पर्यावरण की कीमत पर हो सकता है विकास? पीठ ने कहा कि यह आदेश अनुच्छेद-21 के तहत सभी व्यक्तियों को प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के मौलिक अधिकारों का हनन करता है और यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत स्वास्थ्य के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। कार्यालय आदेश की आलोचना करते हुए पीठ ने पूछा कि क्या पर्यावरण की कीमत पर विकास हो सकता है? शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को ऐसे प्रयासों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।