16 महीने, 251 हादसे, 73 मौतें ,राजस्थान में कब थमेगा हाईवे पर 'मौत के सफर' का सिलसिला?
नेशनल हाईवे-148 (मनोहरपुर-दौसा मार्ग) पर मौत का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते 16 महीनों में इस हाईवे ने 73 लोगों की सांसें छीन लीं, जबकि 228 लोग घायल हुए हैं।

नेशनल हाईवे-148 (मनोहरपुर-दौसा मार्ग) पर मौत का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते 16 महीनों में इस हाईवे ने 73 लोगों की सांसें छीन लीं, जबकि 228 लोग घायल हुए हैं। रोज़मर्रा की यात्रा अब एक जोखिम भरा सफर बन चुकी है।
इन आंकड़ों को अगर गहराई से देखा जाए तो हर दो दिन में एक हादसा और हर सप्ताह कम से कम एक मौत इस हाईवे पर दर्ज हो रही है। बीते 65 दिनों में ही 14 बड़े हादसे हुए, जिनमें 21 लोगों की जान गई और 34 घायल हुए। ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का आईना हैं।
रायसर थाना क्षेत्र बना ब्लैक स्पॉट
सबसे ज्यादा हादसे रायसर थाना क्षेत्र में सामने आए हैं। यहां सड़कों की स्थिति, संकेतकों की कमी, गलत ढंग से बने मोड़ और हाई स्पीड वाहनों की आवाजाही हादसों की बड़ी वजह मानी जा रही है।
ताजा हादसा फिर बना मौत की मिसाल
गुरुवार को सामने आया हादसा इस मौत के सिलसिले की ताजा कड़ी है। बुधवार देर रात भट्टकाबास मोड़ पर एमपी से दुल्हन लेकर लौट रही जीप की कंटेनर से टक्कर हो गई। हादसे में 6 लोगों की मौत हो गई, जिनमें एक दुल्हन भारती (19) और दो सगे भाई शामिल हैं। मृतकों में जीतू कुमावत (33), सुभाष मीणा (28), रवि मीणा (17), श्रवण मीणा (60) और गुरुवार को इलाज के दौरान दम तोड़ने वाले शंकर मीणा (37) का नाम शामिल है।
इस दुर्घटना में 8 लोग घायल हुए हैं, जिनमें नरेश मीणा की हालत गंभीर बनी हुई है। मृतकों के शव परिजनों को सौंप दिए गए हैं, लेकिन शोक की लहर ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है।
कौन है जिम्मेदार?
सबसे बड़ा सवाल यही है—इन मौतों का जिम्मेदार आखिर कौन है? ओवरस्पीडिंग, ओवरटेकिंग और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी हादसों की प्रमुख वजह है, लेकिन इससे भी बड़ी चिंता यह है कि प्रशासन और पुलिस की भूमिका महज ‘कागज़ी कार्यवाही’ तक सीमित रह गई है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार शिकायतें करने के बावजूद सड़क किनारे डिवाइडर, साइन बोर्ड और स्पीड कंट्रोल उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी सिर्फ कागजों में है, और जब हादसे होते हैं, तब ही जिम्मेदार विभाग जागते हैं।
सुधार की उम्मीद या अगली मौत का इंतजार?
इस मार्ग को सुरक्षित बनाने के लिए अब कठोर कदम उठाने की जरूरत है। हाईवे पर सीसीटीवी कैमरे, स्पीड रडार, फ्लैशिंग सिग्नल और ट्रैफिक पेट्रोलिंग जरूरी हो गई है। साथ ही स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदारी तय करनी होगी कि लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
जब तक सिस्टम की आंखें नहीं खुलतीं, तब तक ये हाईवे अपनों को छीनता रहेगा। सवाल अब सिर्फ यह नहीं है कि कितने लोग मरे, बल्कि यह है कि अगला नंबर किसका है?
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