बोले बलिया : कोविड काल की मजबूरी बनी आदत, बढ़ गई आफत
Balia News - कोरोना काल में कोचिंग सेंटरों की स्थिति खराब हो गई है। ऑनलाइन क्लासेस के कारण छात्रों की संख्या में कमी आई है, जिससे कोचिंग संचालकों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय प्रशासन की...
शहर में संचालित हो रहे कोचिंग सेंटर कोरोना काल में ‘ट्रैक से उतरे तो फिर वापस पटरी पर नहीं लौट सके। ऑनलाइन क्लासेस और डिजिटल लाइब्रेरी के बढ़ते चलन ने कोचिंग संचालकों की कमर तोड़ दी है। छात्रों की संख्या कम होने से खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। भर्तियों में देरी तथा नए बदलावों के चलते प्रतियोगी छात्र कम हुए हैं। स्थानीय स्तर पर शासन-प्रशासन का उपेक्षित रवैया भी इन्हें तकलीफ दे रहा है। पंजीकरण, मानक व अन्य कारणों से गाहे-बगाहे प्रशासन का चाबुक भी इन्हें झेलना पड़ता है। जबकि सहुलियत कुछ नहीं दी जाती। नगर की संकटमोचन व द्वारिकापुरी कॉलोनी को बलिया का ‘कोटा कहा जाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विद्यार्थियों को तैयार कर रहे यहां के शिक्षक खुद ही परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान से बात करते हुए कोचिंग संचालकों ने चौपट होते जा रहे इस पेशे को लेकर चिंता जताई। आरपी सिंह ने बताया कि संकट मोचन व द्वारिकापुरी कॉलोनी में दर्जनों कोचिंग संस्थान हैं। यहां नगर के अलावा ग्रामीण इलाकों से भी छात्र-छात्राएं अलग-अलग परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं। बताया कि पांच वर्ष पहले तक सबकुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच आयी कोरोना की लहर कोचिंग सेंटरों को बहा ले गयी। हम सबके लिए वह ‘डॉउन फॉल साबित हुआ। प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही अन्य वर्गों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन व्यवस्था शुरू हुई। विकल्प के तौर पर जन्मे इस सिस्टम ने अपनी जड़ें पूरी तरह जमा लीं और ऑफलाइन कोचिंग सेंटरों पर तगड़ा प्रहार किया। अधिकांश छात्र घर बैठे ही ऑनलाइन क्लासेस कर रहे हैं। इससे कोचिंग संस्थानों में छात्रों की कमी होती जा रही है। कोचिंग सेंटरों का किराया और बिजली का बिल देना तक भारी पड़ने लगा है।
कुणाल सिंह व राघव यादव ने बताया कि कोचिंग संचालकों को शिक्षा विभाग में बच्चों की संख्या के हिसाब से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। दूसरी ओर, आनलाइन शिक्षा व जगह-जगह खुले रहे लाइब्रेरियों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। जबकि ऑफलाइन कोचिंग संचालकों पर इसके लिए दबाव बनाया जाता है। कार्रवाई तक झेलनी पड़ती है। सिस्टम के पेंच से भी कोचिंग चलाना मुश्किल होता जा रहा है।
छात्रावास की हो व्यवस्था :
विनय तिवारी व सुजीत यादव ने बताया कि भर्तियों के समय से नहीं निकलने तथा परीक्षाओं में पेपर लीक होने का असर भी कोचिंग संस्थाओं पर पड़ रहा है। छात्र हतोत्साहित होकर कोचिंग छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि पैसा खर्च किया, मेहनत की, लेकिन सब बेकार हो गया। कहा कि आमतौर पर यहां कोचिंग आने वाले अधिसंख्य बच्चे मध्यम व निम्न वर्गीय परिवार के होते हैं। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले छात्रों को शहर में रहने-खाने पर भी खर्च करना पड़ता है। ऐसे बच्चों के लिए अपने शहर में ऐसे छात्रावास नहीं हैं, जहां कम पैसे में रहना-खाना हो सके। शासन-प्रशासन को चाहिए कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए शहरी क्षेत्रों में ‘नो प्राफिट-नो लॉस की तर्ज पर हॉस्टल की व्यवस्था करे।
छात्रों को मिले बुनियादी सुविधाएं :
राघव यादव ने बताया कि संकट मोचन कॉलोनी क्षेत्र में बड़ी संख्या में कोचिंग संचालित होते हैं। सुबह से देर शाम तक इन इलाकों में छात्र-छात्राओं का आना-जाना रहता है। अधिकांश कोचिंग शिफ्ट में ही चलते हैं। बुनियादी सुविधाओं का अभाव अखरता है। बच्चों के लिए पीने के पानी का इंतजाम कोचिंग सेंटरों ने तो कर रखा है लेकिन सार्वजनिक स्तर पर नगरपालिका की ओर से ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। जैसे-तैसे फीस जुगाड़कर पढ़ने वाले बच्चों के लिए पानी खरीदकर पीना संभव नहीं है। गांव-देहात से आने वाले बच्चों को अधिक परेशान होना पड़ता है।
बाहर भी है सुरक्षा का खतरा :
सनक कुमार पांडेय व आनंद श्रीवास्तव ने कहा कि नीचे तक लटकते बिजली तारों के मकड़जाल से हादसे का भय बना रहता है। छात्र-छात्राओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन तारों को ठीक कराया जाना चाहिए। कोचिंग सेंटरों की जांच-पड़ताल तो होती रहती है लेकिन इन दिक्कतों पर ध्यान किसी का नहीं जाता। बच्चों की सुरक्षा का खतरा सिर्फ कोचिंग सेंटरों के अंदर ही नहीं, उसके बाहर भी है। भानू प्रताप व राजू यादव ने बताया कि सड़कें भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कभी-कभार बच्चे गिरकर चोटिल हो जाते हैं। कहा कि बड़ी संख्या में छात्राएं भी कोचिंग के लिए आती हैं। महिला पुलिस की गश्त गलियों में होनी चाहिए। वाहन पार्किंग नहीं होने से कई बार बच्चों की साइकिल चोरी होने की घटना हो चुकी है।
देखते ही देखते बंद हो गए 32 कोचिंग सेंटर
आरपी सिंह व सुधीर परिहार ने बताया कि शहर का एजुकेशन हब बन चुकी द्वारिकापुरी व संकट मोचन कालोनी में करीब 54 कोचिंग संचालित होते थे। कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा की इंट्री के बाद अब छोटे-बड़े मात्र 22 कोचिंग ही यहां संचालित हो रहे हैं। उनके सामने भी कई चुनौतियां हैं। हर कोचिंग सेंटरों में एक-दो कर्मचारी भी हैं। उनका वेतन, कमरों का किराया और बिजली बिल देने के बाद बची-खुची रकम घर-परिवार चलाने के लिए नाकाफी होती है। बताया कि कोचिंग सेंटरों में बड़ी तदाद सेना भर्ती परीक्षा की तैयारी कराने वालों की थी। सेना भर्ती में बदलाव के बाद काफी बच्चों ने इसकी तैयारी ही छोड़ दी। इसके चलते उससे सम्बंधित कोचिंग बंद हो गए।
सिस्टम के पेंच को बनाएं आसान
आनंद व सनक पाण्डेय ने कहा कि पढ़ाई-लिखायी में बेहतर करने के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो तमाम लोग कोचिंग शुरू करने का मन बनाया।
शिक्षा से इतर वे कुछ कर नहीं सकते थे। लेकिन यहां सिस्टम के पेंच के चलते उनके सामने चुनौती खड़ी हो गयी है। कोचिंग के पंजीकरण से लेकर मानकों को पूरा करना आसान नहीं होता। प्रशासनिक स्तर पर इसमें सहुलियत दी जानी चाहिए। इतनी पूंजी भी नहीं होती कि बड़ा संस्थान खड़ा कर सकें। ऐसे में ‘स्टार्ट अप की तर्ज पर यहां भी सरकारी मदद मिले तो राहत मिलेगी।
ऑनलाइन पढ़ाई ने बनाया मोबाइल का लती
कुणाल सिंह ने बताया कि एक तरफ बच्चों में मोबाइल की बढ़ती लत से अभिभावक से लेकर स्कूल तक चिंता जाहिर कर रहे हैं, दूसरी ओर पढ़ाई का पैटर्न ऐसा तैयार हो रहा है, जिससे बच्चों को चाहकर भी मोबाइल से दूर नहीं किया जा सकता। स्कूलों के सभी होमवर्क, प्रोजेक्ट आदि मोबाइल पर ही दिए जा रहे हैं। ऑनलाइन क्लास भी करायी जा रही है। ऐसे में बच्चों को मोबाइल देना अभिभावकों की विवशता भी हो जा रही है। कोई छात्र मोबाइल से ऑनलाइन कोचिंग की सुविधा ले रहा है। वह अनुशासित है या नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं होता। ऑनलाइन क्लास या अन्य कार्य के दौरान वह इंटरनेट की दुनिया में खोता चला जा रहा है। कोई उन्हें टोकने वाला भी नहीं होता। जबकि स्कूल व कोचिंग की ऑफलाइन पढ़ाई बच्चों को किताब-कापी से जोड़कर रखती है। इस अंतर को समझते हुए शिक्षा व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है।
सुझाव :
एजुकेशन हब बने संकट मोचन व द्वारिकापुरी कॉलोनी के रास्तों को दुरूस्त कराया जाना चाहिए।
नगरपालिका की ओर से पीने के पानी का सार्वजनिक इंतजाम किया जाना चाहिए। मुख्य सड़क पर भी आरओ लगाने से राहत मिलेगी।
कोचिंग संस्थानों के आसपास बेतरतीब तरीके से लटके बिजली के तारों को दुरुस्त किया जाय। स्ट्रीट लाइटें भी ठीक हों।
कोचिंग संस्थानों को रियायती दरों पर बिजली उपलब्ध करायी जाय। इससे आर्थिक दिक्कत झेल रहे संचालकों को राहत मिलेगी।
पंजीकरण के नाम पर कोचिंग संचालकों को परेशान न किया जाय। शासन स्तर पर मदद दी जाय।
शिकायतें :
संकट मोचन व द्वारिकापुरी कॉलोनी में ही अधिसंख्य कोचिंग हैं। यहां के रास्ते उबड़-खाबड़ हैं। इसके चलते आने-जाने में परेशानी होती है।
कोचिंग सेंटरों में पीने के पानी का इंतजाम रहता है लेकिन बाहर इसका अभाव है। गांव से आने वाले बच्चों को परेशानी होती है।
कोचिंग सेंटरों के आसपास बिजली के तार बेतरतीब ढंग से लटके हैं। इससे बच्चों व कोचिंग संचालकों में हादसे का भय बना रहता है।
कोचिंग संस्थानों को व्यवसायिक दर से बिजली बिल का भुगतान करना होता है। इससे आर्थिक भार और भी बढ़ता है।
पंजीकरण व मानक आदि के नाम पर कोचिंग संचालकों को परेशान होना पड़ता है। प्रशासन का सहयोगात्मक रवैया नहीं रहता।
बताई पीड़ा :
आनलाइन शिक्षा ने कोचिंग सेंटरों को नुकसान पहुंचाया है। कई संचालक कोचिंग बंद कर दूसरी जॉब में लग गए। कितनों पर कर्ज भी लद गया।
सुजीत यादव
कोरोना काल के वक्त आनलाइन शिक्षा का शुरू हुआ प्रचलन अब घातक साबित हो रहा है। चाहकर भी बच्चों को मोबाइल से दूर नहीं कर पा रहे। हमें ऑफलाइन पढ़ाई पर जोर देना होगा।
नीरज
कोचिंग सेंटरों के आसपास पार्किंग का इंतजाम नहीं है। कालोनियों के रास्ते पतले हैं। वाहन खड़े होने से जाम लगता है। चोरी का खतरा भी बना रहता है।
कुणाल सिंह
बड़ी संख्या में गांव-देहात के बच्चे यहां रहकर तैयारी कर रहे हैं। उनके लिए रियायती दर पर छात्रावास की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे उनकी पढ़ाई बाधित नहीं होगी।
राघव यादव
कोचिंग सेंटरों में बड़ी संख्या में छात्राएं भी पढ़ाई के लिए आती हैं। महिला पुलिस की गश्त समय-समय पर होती रहे तो लड़कियों में सुरक्षा को लेकर भरोसा बना रहेगा।
जितेंद्र यादव
कस्बों व ग्रामीण इलाकों में भी जगह-जगह कोचिंग व ई-लाइब्रेरी खुल गए हैं। इसके चलते भी अब धीरे-धीरे यहां की रौनक व आकर्षण कम हो रहा है।
राजू यादव
समय-समय पर वैकेंसी नहीं निकालने के कारण भी कई कोचिंग बंद हो गए। कई बंद होने के कगार पर हैं।
आरपी सिंह
पिछले दिनों में प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपरलीक की घटनाओं से प्रतियोगी छात्र-छात्राओं का उत्साह कम हुआ है। इस पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए।
सुधीर परिहार
कोचिंग संचालकों पर रजिस्ट्रेशन के लिए विभाग से दबाव बनाया जाता है। जबकि आनालाइन क्लास चलाने का कोई रजिस्ट्रेशन या टैक्स नहीं लिया जाता है।
विनय तिवारी
शासन-प्रशासन स्तर पर कोई मदद नहीं मिलने के कारण कोचिंग संचालकों के लिए मुश्किलें आ रही हैं। किसी तरह से रूम व बिजली का किराया निकाल पा रहे हैं।
आनंद श्रीवास्तव
सेना भर्ती में हुए बदलाव के बाद इसकी तैयारी करने वाले युवाओं की संख्या काफी कम हो गयी है। लिहाजा इससे सम्बंधित कोचिंग सेंटरों पर ताला लग गया है।
भानू प्रताप यादव
द्वारिकापुरी व संकटमोचन कालोनी में दर्जनों कोचिंग सेंटर हैं। यहां की गलियों में बिजली के तारों का मकड़जाल बिछा हुआ है। इससे खतरे का भय बना रहता है।
सनक कुमार पांडेय
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