बोले बरेली: मेडिकल कार्ड का रिन्युवल और जंक्शन पर रेस्ट रूम चाहते हैं कुली
Bareily News - बरेली जंक्शन पर कुलियों की स्थिति चिंताजनक है। रेलवे में सुधारों और तकनीकी बदलावों ने उनके रोजगार को संकट में डाल दिया है। कुलियों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलतीं, और उनकी आय अनिश्चित है। महिला...
रेलवे स्टेशनों पर कुलियों की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है, लेकिन समय के साथ उनके संघर्ष और मुश्किलें बढ़ी हैं। बरेली जंक्शन पर कुलियों की स्थिति इसका जीवंत उदाहरण है। एक समय था जब कुलियों की आवाजें प्लेटफार्म पर गूंजती थीं, लेकिन अब बदलावों के कारण उनका काम और रोजगार दोनों ही संकट में हैं। रेलवे के द्वारा मिलने वाली सीमित सुविधाओं, बढ़ते तकनीकी बदलावों और आवास की समस्याओं ने इनकी स्थिति को और कठिन बना दिया है। देश के रेलवे नेटवर्क में कुलियों की भूमिका ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, समय के साथ रेलवे में हुए परिवर्तनों ने इनकी स्थिति को कठिन बना दिया है। बरेली जंक्शन पर स्थित कुलियों की मुश्किलें इसी बदलाव का कड़वा सच हैं। यहां 36 कुली काम करते हैं, जिनमें दो महिला कुली भी हैं। इन कुलियों का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है, और रेलवे के बदलाव ने इनकी स्थिति को और जटिल बना दिया है।
कुलियों की स्थिति पर अगर गौर किया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि रेलवे के सुधारों का असर उनके जीवन पर प्रतिकूल पड़ा है। जब लालू प्रसाद रेल मंत्री बने थे, तो कुलियों के लिए कई सुविधाओं और सुधारों की शुरुआत हुई थी। रेलवे में स्थाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ी, और कुलियों की स्थिति में भी कुछ सुधार देखने को मिले। उन्हें विभिन्न सुविधाएं जैसे मेडिकल सेवा, साल में रेल पास जैसी सुविधाएं मिलीं। लेकिन इसके बाद जब अन्य रेल मंत्री आए, तो इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। कुलियों को उम्मीद होती है कि बजट में उनकी समस्याओं का समाधान होगा, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती है।
बरेली जंक्शन पर कुलियों को एक बड़ा मुद्दा है, जो उन्हें अपने परिवारों का पालन-पोषण करने में असुविधा उत्पन्न करता है। रेलवे की ओर से कोई निर्धारित मानदेय नहीं मिलता। अगर यात्री अपने सामान को उठवाते हैं, तो वही कुछ रुपये मिलते हैं, लेकिन यह कभी भी निश्चित नहीं होते। कभी-कभी तो एक रुपया भी नहीं मिलता। इसके अलावा, रेलवे की ओर से कुछ सुविधाएं जरूर मिलती हैं, जैसे कि मेडिकल चिकित्सा और साल में चार रेल पास, लेकिन ये सुविधाएं उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए अपर्याप्त हैं। बरेली जंक्शन पर दो महिला कुली हैं। उनका कहना है कि जब उनके पति कुली थे, तो उनके नाम पर बिल्ला आवंटित किया गया था, लेकिन वे काम पर नहीं आतीं। यहां काम बहुत कम है, और वे अन्य काम करके अपने बच्चों का पेट पालती हैं। रेलवे की ओर से उनके पति की मृत्यु पर कोई आर्थिक सहायता भी नहीं दी गई। यह स्थिति उन महिला कुलियों के लिए विशेष रूप से निराशाजनक है, क्योंकि उनके पास न तो काम है और न ही किसी प्रकार की वित्तीय सहायता।
बरेली जंक्शन पर कुलियों की स्थिति एक उदाहरण है कि कैसे समय के साथ रोजगार के अवसर बदलते हैं, और कैसे उन बदलावों का असर कमजोर वर्ग पर पड़ता है। कुलियों का जीवन संघर्षपूर्ण है, और उन्हें न केवल काम की आवश्यकता है, बल्कि सम्मान और स्थिरता की भी जरूरत है। यदि रेलवे और सरकार उनके अधिकारों का सम्मान करते हुए उनका सहयोग करें, तो वे अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। कुलियों के लिए सुधारात्मक कदम उठाना न केवल उनका हक है, बल्कि यह रेलवे के राजस्व को बढ़ाने और समाज के लिए भी फायदेमंद होगा।
कुलियों के लिए आवास की समस्या
कुलियों के लिए आवास की समस्या भी एक गंभीर मुद्दा है। बरेली जंक्शन की नार्थ और साउथ कॉलोनियों में दर्जनों खाली क्वार्टर हैं, जिनमें बाहरी लोग कब्जा कर लेते हैं। ये क्वार्टर रेलवे के राजस्व को भी नुकसान पहुंचाते हैं। कुलियों का कहना है कि इन खाली क्वार्टरों को उनके नाम आवंटित किया जाए। वे किराया रेलवे के खाते में जमा करेंगे और अपने परिवार के लिए रहने का ठिकाना पाएंगे। इससे रेलवे को अतिरिक्त राजस्व मिलेगा और कुलियों को एक स्थिर जीवन जीने का अवसर मिलेगा।
पहियों वाले सूटकेस ने छीना रोजगार
आजकल यात्री अपने सामान को ले जाने के लिए पहियों वाले ट्राली बैग का उपयोग करते हैं, जो कुलियों के रोजगार को प्रभावित कर रहे हैं। पहले जब यात्री टीन के बक्सों में सामान रखते थे, तो कुली उनका बोझ उठाते थे। लेकिन अब ट्राली बैग के चलते, लोग अपना सामान खुद ले जाते हैं। इससे कुलियों को कम काम मिलता है। कुलियों का कहना है कि पहले स्टेशन पर उनकी आवाजें गूंजती थीं, ‘अरे कुली, इधर आओ लेकिन अब यह आवाज कभी सुनाई नहीं देती। पहियों वाले बैगों ने उनके काम को लगभग खत्म कर दिया है।
कुलियों का इस काम से मोहभंग
एक दौर था जब बरेली जंक्शन पर 70-80 कुली काम करते थे। स्टेशन पर ट्रेन के आने-जाने के दौरान कुलियों की आवाजें सुनाई देती थीं। लेकिन अब कुलियों की संख्या में भारी कमी आ गई है। उनका कहना है कि जब काम नहीं है, तो बिल्ला लेकर क्या करें? यह स्थिति उनके लिए निराशाजनक है, और कई कुली अब रेलवे से मोहभंग हो चुके हैं। वे कहते हैं कि अगर वे किसी अन्य काम में लग जाएं, तो उन्हें कम से कम पांच सौ रुपये दिहाड़ी मिल सकती है। रेलवे में उन्हें न तो पर्याप्त काम मिलता है और न ही सम्मान की कोई उम्मीद बची है।
नीति बनाकर हो कुलियों की समस्याओं का समाधान
कुलियों की समस्याओं को लेकर बरेली जंक्शन पर गहरी चिंताएं हैं। सबसे पहला कदम यह हो सकता है कि रेलवे उन्हें स्थाई कर्मचारी के रूप में स्वीकार करे और उन्हें न्यूनतम वेतन की सुविधा प्रदान करे। अगर उन्हें एक स्थिर आय मिलती है, तो वे अपने परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर सकेंगे। इसके साथ ही, रेलवे को चाहिए कि वे कुलियों को अधिक काम और बेहतर सम्मान देने के लिए एक नीति बनाए। आवास के मुद्दे को लेकर रेलवे को यह कदम उठाना चाहिए कि जो खाली क्वार्टर हैं, वे कुलियों को आवंटित किए जाएं। इससे न केवल कुलियों को आवास मिलेगा, बल्कि रेलवे को भी अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। इसके अलावा, पहियों वाले सूटकेस के कारण कुलियों का रोजगार कम होने की समस्या को भी सुलझाना होगा। रेलवे को चाहिए कि वे ऐसे उपाय करें जिससे कुलियों को रोजगार मिले और उनकी स्थिति में सुधार हो।
मेरी आवाज सुनें:
रेलवे द्वारा मेडिकल और पास की सुविधा तो दी जाती है, लेकिन वे चाहते हैं कि कुलियों को अस्थायी कर्मचारियों के रूप में समूह घ श्रेणी में शामिल किया जाए, ताकि उनके परिवार का जीवन यापन सही से हो सके। अब काम बहुत कम मिलता है और कभी-कभी तो पूरा दिन मेहनत करने के बावजूद एक रुपया भी नहीं मिलता। - राजेंद्र कश्यप
कुलियों के लिए रेस्ट रूम को अब कैंटीन बना दिया गया है, जिससे कुलियों को वहीँ आराम करना पड़ता है। रेलवे कर्मचारी अपनी बाइकों को खड़ी कर जाते हैं और वहीँ खाना बनाते हैं, साथ ही सामान रखने के लिए बक्से रखे गए हैं। वे रेलवे से मांग करते हैं कि उन्हें रेलवे क्वार्टर दिए जाएं और वे किराया देने के लिए तैयार हैं। - आजाद
कई साल से कुलियों के मेडिकल कार्ड नहीं बनाए गए हैं। जिनका कार्ड खो गया, वह भी नवीनीकरण से वंचित हैं। जब रेलवे के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं, तो दवाई लेने से पहले मेडिकल कार्ड मांगा जाता है। उनका सुझाव है कि हर साल कुलियों के मेडिकल कार्ड जारी किए जाएं। - नियामत अली
रेलवे कुलियों की सुविधाओं को कम कर रहा है। पहले साल में पांच रेल पास मिलते थे, जिससे यात्रा मुफ्त हो जाती थी, लेकिन अब वह संख्या घटाकर चार कर दी गई है। उनका कहना है कि कम से कम पांच रेल पास मिलना चाहिए और एक पास की कटौती को पुनः बहाल किया जाना चाहिए। -फैजुल खान
जैसे रेल मंत्री लालू प्रसाद के कार्यकाल में कुलियों को स्थायी किया गया था, उसी तरह से रेलवे को कुलियों को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मानते हुए सभी सुविधाएं देनी चाहिए, ताकि कुलियों के सामने पैसे की समस्या न हो और वे अपने परिवार के साथ एक खुशहाल जीवन जी सकें। - निसार अहमद
रेलवे को कम से कम फिक्स मानदेय लागू करना चाहिए। अगर उन्हें 18,000 का न्यूनतम वेतन नहीं मिल सकता, तो कम से कम 10 से 12 हजार रुपए हर महीने मिलने से कुलियों को अपने परिवार का पालन-पोषण करने में मदद मिलेगी और बेरोजगारी की समस्या भी कुछ हद तक हल होगी। - अर्जुन
बरेली जंक्शन पर कुल 36 कुली काम करते हैं, जो दिन और रात की शिफ्ट में लगते हैं। उनके पास सिर्फ एक ठेला है, जबकि कभी-कभी चार कुली एक ही ठेले को उठाते हैं। वे मांग करते हैं कि कम से कम 10 ठेले और मिलें, जिससे उन्हें सामान ढोने में कोई परेशानी न हो। - प्रताप
जब कुली का निधन होता है, तो उसके परिवार को बिल्ला तो मिल जाता है, लेकिन कोई आर्थिक सहायता नहीं दी जाती। इससे परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। -इलियास
अगर कुली का कार्यकाल समाप्त होने से पहले निधन हो जाता है, तो उसके परिवार को रेलवे से 10 लाख की धनराशि मिलनी चाहिए। इसके साथ ही अंत्येष्टि के खर्च में भी रेलवे को सहायता देनी चाहिए। - मुकेश
जब तक रेलवे कुलियों को अपना स्थायी कर्मचारी नहीं मानेगा, तब तक उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता। रेलवे को सभी कुलियों को ग्रुप डी कर्मचारी मानते हुए उन्हें सभी कर्मचारी सुविधाएं देनी चाहिए, ताकि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधर सके। - बजरंगी
कुलियों के लिए कोई रेस्ट रूम नहीं है। गर्मी के मौसम में जब तेज धूप होती है, तो उन्हें प्लेटफार्म या सर्कुलेटिंग एरिया में सुरक्षित जगह तलाशनी पड़ती है। उनका सुझाव है कि रेलवे को कुलियों के लिए एक रेस्ट रूम बनाना चाहिए, जहां वे आराम से विश्राम कर सकें। - श्याम लाल
अगर रेलवे कुली कैंटीन का विस्तार कर दे और प्रत्येक कुली के लिए एक बेड प्रदान कर दे, जैसा कि पुलिस बैरक में होता है, तो कुलियों को बेहतर आराम मिल सकेगा। इस तरह, कैंटीन को एक सुरक्षित और आरामदायक स्थान में बदला जा सकता है। - भगवान दास
शिकायतें:
1. कुलियों के पास आवास की सुविधा नहीं है। वे किराए के कमरों में रहने को मजबूर हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
2. बरेली जंक्शन पर मौजूद सभी कुलियों के पास ठेले नहीं हैं। 36 कुलियों के बीच में महज एक ठेला ही है। इसके कारण लगेज ढोने में काफी दिक्कत होती है।
3. सालों से कुलियों के मेडिकल कार्ड जारी नहीं किए गए हैं, जिससे उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
4. रेलवे द्वारा साल में केवल चार रेल पास दिए जाते हैं। कुलियों की यात्रा के लिए यह संख्या बहुत कम है। पास की संख्या बढ़ाई जाए, जिससे उनकी यात्रा में सहूलियत हो।
5. जंक्शन पर कुलियों के लिए कोई रेस्ट रूम नहीं है। गर्मी और धूप में उन्हें आराम करने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश करनी पड़ती है।
6. कुली की मृत्यु के बाद उसके परिवार को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती। न ही अंतिम संस्कार के लिए रेलवे से कोई मदद प्राप्त होती है।
7. सालों से नए बिल्ले जारी नहीं किए गए हैं, जिससे कुलियों और उनके आश्रितों को बहुत मुश्किल होती है।
सुझाव:
1. रेलवे के जो पुराने क्वार्टर खाली पड़े हैं, उन्हें कुलियों को आवंटित किया जाए। कुली हर महीने किराया देने के लिए तैयार हैं, जिससे रेलवे को राजस्व मिलेगा और कुलियों को आवास की समस्या हल होगी।
2. कुलियों को लगेज ढोने के लिए कम से कम 10 ठेलों की व्यवस्था की जाए, ताकि उन्हें बेहतर तरीके से काम करने की सुविधा मिले।
3. कुलियों के मेडिकल कार्ड हर साल जारी किए जाएं, ताकि वे रेलवे के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से चिकित्सा सुविधा ले सकें।
4. जंक्शन के सर्कुलेटिंग एरिया में कुलियों के लिए एक रेस्ट रूम बनवाया जाए, जहां वे आराम कर सकें और अपनी शिफ्ट के बीच विश्राम ले सकें।
5. कुली की मृत्यु के बाद उसके परिवार को कम से कम 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाए, जिससे परिवार के सामने आय का संकट न हो और वे अच्छे से जीवन यापन कर सकें।
6. रेलवे यदि कुलियों को 18,000 रुपये का न्यूनतम वेतन नहीं दे सकता, तो कम से कम 10,000 से 12,000 रुपये का फिक्स मानदेय दिया जाए, ताकि कुलियों को जीवन यापन में कोई कठिनाई न हो।
7. अगर रेलवे कुलियों को समूह घ श्रेणी का कर्मचारी मानकर उनकी सुविधाओं में सुधार करे, तो इससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
8. कुलियों के बच्चों की पढ़ाई और बेटियों की शादी के लिए रेलवे को आर्थिक सहायता देनी चाहिए, ताकि उनके जीवन को संजीवनी मिले।
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