Decline of Band Baja Artists Amid Rising DJ Culture in Basti बोले बस्ती : डीजे के शोर के बीच दबती जा रही बैंडबाजे की आवाज, Basti Hindi News - Hindustan
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बोले बस्ती : डीजे के शोर के बीच दबती जा रही बैंडबाजे की आवाज

Basti News - बस्ती के बैंडबाजा कलाकारों की स्थिति चिंताजनक है। डीजे और आर्केस्ट्रा के बढ़ते प्रचलन के कारण बैंडबाजा की बुकिंग में कमी आई है। पहले जहां 500 से ज्यादा बैंड पार्टियां थीं, अब यह संख्या घटकर केवल...

Newswrap हिन्दुस्तान, बस्तीTue, 8 April 2025 05:18 AM
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बोले बस्ती : डीजे के शोर के बीच दबती जा रही बैंडबाजे की आवाज

Basti News : बैंडबाजा संचालकों की पूछ और कलाकारों की चमक धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। जिले के बैंडबाजा कलाकारों को हर वर्ष अयोध्या में श्रीराम विवाह उत्सव में बुलाया जाता रहा है। यहां के कलाकार अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे हैं। उनके बेंडबाजे की मधुर धुन सबको मोहित करती रही है। इस पेशे से जुड़े लोग कमाई अच्छी न होने से चिंतित हैं। डीजे के शोर के बीच बैंडबाजे की आवाज दबती जा रही है। आमदनी नहीं होने से बैंडबाजा कलाकारों की संख्या लगातार घट रही है। कुछ वर्ष पूर्व जिले में छोटी-बड़ी करीब 500 बैंड पार्टियां थीं। आज इनकी संख्या घटकर दर्जनों में सिमट गई है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में बैंडबाजा संचालकों ने अपनी समस्याएं साझा कीं।

जिले में 19वीं सदी में बैंडबाजे की शुरुआत हुई थी। तब और अब में काफी बदलाव आया है। तब बारात दो रात रुकती थी। बाराती (मरजाद) रहते थे। तब बैंडबाजों की बुकिंग तीन दिन के लिए होती थी। इस दौरान इनकी कमाई अच्छी खासी हो जाती थी। उस समय इस कला को सीखने के लिए लोग ज्यादा रुचि दिखाते थे। अब इस काम में युवा रुचि ही नहीं ले रहे हैं। इससे इस काम के लिए दिनोंदिन समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। लवकुश, अब्दुल रहीस, वसीम अकरम बताते हैं कि बैंडबाजे में उनकी तीन-चार पीढ़ियां काम कर चुकी हैं। पहले इस काम में काफी कमाई होती थी। जब से डीजे बाजार में आ गया है तब से बैंडबाजे की आवाज दबती जा रही है। पहले जिले में 500 से ज्यादा बैंड पार्टियां हुआ करती थीं। इस बैंडबाजे में लगभग 10000 लोग रोजगार पाते थे। डीजे के बाजार में आने से बैंडबाजों की संख्या अब कम हो गई है। इस वजह से कलाकारों की संख्या में काफी गिरावट हुई है। अब जिले में गिने चुने कलाकार ही रह गए हैं। शादी-विवाह व अन्य शुभ मुहूर्तों में बुकिंग होने पर बिहार से बैंडबाजों के कलाकार बुलाने पड़ रहे हैं। लवकुश ने बताया कि बैंडबाजे में लगभग दस लाख की पूंजी लगती है। करीब एक दशक पूर्व तक हर शुभ काम में लोग बैंडबाजा बुक कराते थे, लेकिन बदलते परिवेश में आर्केस्ट्रा और डीजे इसकी जगह लेते जा रहे हैं। इसका सीधा असर बैंडबाजा कारोबार पर पड़ा है। बुकिंग कम होने से कुछ संचालक खर्च घटाने के लिए कलाकारों की संख्या में कटौती करने लगे हैं।

वहीं कई ने तो इस कारोबार को ही छोड़ दिया है। बैंड मालिकों का कहना है कि पहले नर्तकी से लेकर अन्य कलाकार आसानी से मिल जाते थे, लेकिन अब कलाकार बिहार, कानपुर और अन्य प्रदेशों से बुलाने पड़ते हैं। वहां एक ही बार में पूरे सीजन की मजदूरी जमा करनी पड़ती है। किसी लगन पर बुकिंग भले ही न हो, लेकिन उन कलाकार को पूरे रुपये देने पड़ते हैं। इसके अलावा उनके खाने व रहने का भी इंतजाम बैंडबाजा संचालकों को ही करना पड़ता है। अगर कलाकार आते हैं तो उनके रहने के लिए कमरे का भाड़ा से लेकर खाना-पीना सहित अन्य जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।

काम कम और खर्च ज्यादा होने से बढ़ गई समस्या

जिले के नामी हीरा बैंड संचालक कहते हैं कि हाल के वर्षों में डीजे का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ा है। इस वजह से बैंडबाजे की आवाज गुम होती जा रही है। पहले के मुकाबले कमाई काफी कम हो गई है। बैंडबाजा संचालक लवकुश का कहना है कि डीजे के प्रचलन से पूर्व शादी-विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्यों की चमक बैंडबाजे व शहनाई से ही बढ़ती थी। एक बैंडपार्टी में 15 से लेकर 20 कलाकार काम करते थे, लेकिन अब डीजे के प्रचलन से यह कारोबार बंदी की कगार पर पहुंच चुका है। पहले सारी रात बैंडबाजा बजाते थे। कई बार तो एक दिन में दो से तीन जगहों पर बुकिंग मिल जाती थी। अब कई बार लगन के दिन बुकिंग ही नहीं मिलती है।

सरकारी अनुदान मिले तो बढ़े दिलचस्पी

बैंडबाजा से जुड़े मनोज, अन्नू और शकील के साथ दर्जनों लोग कहते हैं कि इस व्यवसाय में हमें कोई सरकारी अनुदान व अन्य लाभ नहीं मिलता है। इससे इस व्यवसाय से लोग दूर भाग रहे हैं, क्योंकि इस व्यवसाय में लगभग 10 लाख रुपये से ज्यादा की लागत लगती है। इसको हर वर्ष मरम्मत जैसे पेंट, अलग लुक के साथ अन्य बदलाव करने पड़ते हैं। इसमें भी अच्छी खासी रकम लगती है। स्थिति ऐसी हो गई है कि इस व्यवसाय से दाल-रोटी चलानी मुश्किल हो गई है। अगर हम सभी को सरकारी अनुदान मिलता तो इस पेशे से लोग जरूर जुड़ते।

बैंडबाजा छोड़ भांगड़ा-ढोल की तरफ बढ़ रहे युवा

भांगड़ा-ढोल संचालक आलम और मोनू का कहना है कि भांगड़ा-ढोल का बाजार है। अब लगभग हर कार्यक्रम में हम लोगों को बुलाया जाता है। ढोल बजाने वाले बताते हैं कि एक-एक कार्यक्रम में 2500 से लेकर 4500 रुपये तक की बुकिंग होती हैं। भांगड़ा-ढोल में बैंड की अपेक्षा खर्च भी कम है। जिले के तमाम लोगों के साथह ही बैंडबाजा के कुछ कलाकारों ने भांगड़ा-ढोल खरीद लिए हैं। कुछ बैंडबाजा संचालक भी कलाकार रखकर भांगड़ा-ढोल बजवाते हैं। भांगड़ा-ढोल बजाने वालों की बुकिंग वैवाहिक कार्यक्रम में शादी, रिटायर्ड होने पर, जनेऊ व मुण्डन जैसे अन्य तमाम कार्यक्रमों में होती है।

बैंडबाजा संचालकों को मिले सस्ते दरों से बैंक ऋण

समय के साथ बैंडबाजा में काफी बदलाव हुए हैं। पहले जहां सिर्फ कलाकारों से पार्टी पूरी हो जाती थी, अब गाड़ी और साउंड का भी इंतजाम करना पड़ता है। डीजे से मुकाबला करने के लिए यह तैयारी जरूरी है। बैंडबाजा संचालकों का कहना है कि हर व्यवसाय के लिए बैंक की तरफ से ऋण की सुविधा दी गई है, लेकिन बैंडबाजा संचालकों को कोई ऋण बैंक की तरफ से नहीं मिलता है। इस वजह से इनको काफी समस्याएं होती हैं। ऐसे में बैंडबाजा संचालन करने के लिए उन्हें लोगों से ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है। उन्हें रुपये देने वालों को ज्यादा ब्याज देना पड़ता है। सरकार को बैंडबाजा संचालकों की समस्याओं को सुनकर निदान करना चाहिए। बैंकों में बैंडबाजा संचालकों को भी ऋण देने की व्यवस्था होनी चाहिए।

मेहनताना देने में ग्राहक करते हैं आनाकानी

बैंडबाजा संचालकों के सामने कई तरह की दिक्कतें आती हैं। उनका कहना है कि बुकिंग के समय कुछ एडवांस संबंधित पार्टी की ओर से दी जाती है। काम समाप्त होने के बाद जब उनसे मेहनताने की मांग की जाती है, तो वह टरकाने लगते हैं। इसके बाद अक्सर दौड़ाने लगते हैं। कई लोगों के यहां हर वर्ष बैंडबाजा संचालकों के रुपये फंस जाते हैं।

शिकायतें

-आर्केस्ट्रा और डीजे का प्रचलन बढ़ने से बैंड-बाजा की बुकिंग एक तिहाई ही रह गई है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो यह विरासत खत्म हो जाएगी।

-वाद्य यंत्रों की महंगाई कलाकरों को भारी पड़ रही है। जिस हिसाब से वाद्य यंत्रों के दाम बढ़े हैं उस हिसाब से मेहनताना नहीं बढ़ा है।

-बैंडबाजा का काम सहालग और त्योहारों तक ही सीमित है। बाकी समय कलाकारों के पास काम नहीं होने से कोई आमदनी का जरिया भी नहीं रहता।

-बैंडबाजा में कलाकार एक उम्र तक ही काम कर सकता है। उसके बाद आमदनी का कोई जरिया नहीं होने पर वह परिवार भी निर्भर हो जाता है।

सुझाव

- बैंडबाजा परम्परा और विरासत से जुड़ा कारोबार है। ऐसे में इस कला को बचाने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए।

- वाद्य यंत्रों पर सब्सिडी देकर सरकार बैंडबाजा कारोबार को प्रोत्साहित करे। बैंक भी कर्ज उपलब्ध कराएं।

- स्कूलों और सरकारी आयोजनों में बैंडबाजा कलाकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए। बैंडबाजा कलाकारों को इससे प्रोत्साहन मिलेगा।

- कलाकारों की सेहत जांचने को समय-समय पर शिविर लगे। उन्हें आयुष्मान योजना का लाभ मिले।

- मानक के विपरीत चले रहे डीजे और आर्केस्ट्रा पर रोक लगे। कलाकारों का भुगतान रोकने वालों पर प्रशासन कठोर कार्रवाई करे।

बैंडबाजा कलाकारों का दर्द

बैंड-बाजा के कारोबार में 10 लाख रुपये से ज्यादा की पूंजी लगानी होती है। अब आमदनी न के बराबर हो गई है। आमदनी को बढ़ाने के लिए राह बनानी होगी।

लवकुश

बैंड-बाजा के कारोबगार में हमारी तीसरी पीढ़ी है। अब इस व्यवसाय में काम नहीं आने के कारण कमाई ठप पड़ गई है।

अब्दुल रहीस

यह करोबार करने के लिए जिले में कलाकार नहीं रह गए हैं। अब बुकिंग के बाद बिहार से कलाकारों को बुलाना पड़ता है, जिससे नुकसान हो रहा है।

वसीम अकरम

बैंड बाजा के लिए कोई प्रशिक्षण का स्थान नहीं है। इसके लिए जनपद में सरकार द्वारा कोई प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाय और युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाय।

मास्टर सहीद

इस काम से जुड़े हैं लेकिन कोई सरकारी योजनाओं से लाभ नहीं दिया जाता है। नए कारोबारियों को सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाय।

मनोज

बैंड-बाजा का कारोबार बहुत पुराना है, लेकिन इनसे जुड़े लोगों का राशन कार्ड नहीं है, जिससे तमाम लोगों को राशन खरीद कर खाना पड़ता है।

मेहरुन्निशा

लोग बुकिंग तो करा लेते है लेकिन जब काम पुरा होने पर रुपये मांगते हैं तो लोग मेहनताना देने में झिक-झिक करते हैं, जिससे काफी परेशानी होती है।

आयुष शेख

बुकिंग कम होने के कारण बैंडबाजों का मरम्मत समय से नहीं हो पा रहा है। मरम्मत में हर वर्ष लगभग लाख रुपये लग जाते है।

मुरसीद अहमद

इस पेशे में बहुत कम लोग रह गए हैं। फिर भी इनके पास आयुष्मान कार्ड, बीमा नहीं है,जिसमें कोई बीमार पड़ जाता है तो कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ता है।

फैसल

महंगाई काफी बढ़ गई है। इसके चलते यह कारोबार करना आसान नहीं है। इस काम को करने में लगभग दस लाख से ज्यादा पूंजी लगता है।

नवसाद अहमद

सभी व्यवसाइयों को बैंक द्वारा लोन आसानी से मिल जाता है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को बैंक से लोन नहीं दिया जाता है।

रसीद अहमद

डीजे बाजार में आ जाने से कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया है। इनके ध्वनि से लोगों की जान भी जा रही है। इसलिए डीजे प्रतिबंधित किया जाय।

मो. नसीम

बैंडबाजों के सामानों को रिपेयर कराने के लिए कानपुर जाना पड़ता है, जिससे आने-जाने के लिए काफी रुपये किराए में खर्च हो जाते हैं।

मेहसूस अजहर

जिले में बैंड बाजा बिना टाइम के रातों को बजाया जाता है। इस पर जिला प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। रात में अक्सर इसको लेकर विवाद होता है।

मो. हुसैन

बैंड बाजा में कलाकार एक उम्र तक ही काम कर सकता है। उसके बाद आमदनी का कोई जरिया नहीं होने के कारण वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है।

गोलू

बोले जिम्मेदार

बैंडबाजा एक अंसगठित क्षेत्र के कर्मकार के रूप में चिह्रित हैं। इन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत लाभ दिया जाता है। अंसगठित क्षेत्र के कर्मकारों के लिए केंद्र ने नि:शुल्क ई-श्रम पंजीकरण शुरू किया है। पंजीकरण होने के बाद बैंडबाजा से जुड़े लोगों को पांच लाख तक कैशलेस चिकित्सा सुविधा मिलेगी। इनको दो लाख रुपये तक का दुर्घटना बीमा का लाभ मिलता है। ई-श्रम कार्ड बनवाने के लिए 16 वर्ष से 60 वर्ष की आयु सरकार ने निर्धारित किया है।

नागेंद्र त्रिपाठी, श्रम प्रर्वतन अधिकारी, बस्ती

मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत शिक्षित और बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए योजना चलाई जा रही है। जिसके तहत उद्योग क्षेत्र के लिए 25 लाख तक का बैंक द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र के लिए 25 प्रतिशत तक अधिकतम 2.50 लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जाती है। आवेदक की आयु 18 से 40 वर्ष के बीच होनी चाहिए एवं न्यूनतम शैक्षिक योग्यता हाईस्कूल उत्तीर्ण होनी चाहिए।

हरेन्द्र प्रताप यादव, उपायुक्त उद्योग विभाग

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