बोले बस्ती : राजनीति की सीख देता था छात्रसंघ चुनाव, प्रतिबंध हटे
Basti News - बस्ती के कॉलेजों में छात्रसंघ चुनावों पर रोक के कारण छात्रों का मनोबल गिर रहा है। छात्र नेताओं ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया है। पिछले आठ वर्षों से चुनाव नहीं हुए हैं, जिससे छात्रों की समस्याएँ बढ़...

Basti News : नेताओं की नर्सरी क्षेत्रीय कॉलेजों से शुरू हुआ करती थी। स्थानीय कॉलेजों में छात्र अपना भविष्य चुनते हैं। पढ़ाई के दौरान छात्र, डॉक्टर, वकील, पुलिस बनने के साथ-साथ नेता बनने का भी दौर शुरू हो जाता था। वर्तमान सरकार ने प्रदेश के कॉलेजों में नेतागिरी करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। छात्र नेताओं में इस रोक पर तमाम प्रदर्शन व आमरण अनशन भी हुए, लेकिन छात्रों के पक्ष में फैसला नहीं आया। अलबत्ता पुलिस ने छात्रों पर तमाम मुकदमे लाद दिए। छात्रसंघ के जरिए गांव की गुमनाम जिंदगी से बाहर निकलकर जिले में कई राजनेता बन गए हैं।
जनपद के किसान डिग्री कॉलेज से भी राजनीति के लिए कई दिग्गज नेता बन गए है। इनमें से महेन्द्रनाथ यादव समेत कई अन्य शामिल हैं। किसान डिग्री कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव हुए करीब नौ साल होने को हैं। समस्याओं का दौर है, लेकिन समाधान नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसी ही कुछ बातें यहां के छात्रों व पूर्व छात्र नेताओं ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में साझा कीं। शहर के कंपनीबाग स्थित किसान डिग्री कॉलेज में अंतिम बार वर्ष 2016-17 में छात्रसंघ चुनाव हुआ था। वर्ष 2018 में छात्र संघ चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई थी। नामांकन के बाद माहौल कुछ ऐसा बना कि इस चुनाव को रद्द करना पड़ गया। विद्यालय प्रशासन को छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने का एक बड़ा मौका मिल गया। छात्र संघ चुनाव कराने की दिशा में किसान डिग्री कालेज के विद्यालय प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उसके बाद दो साल कोरोना महामारी के चलते बीत गए। बाद के दिनों में छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर कई आंदोलन व आमरण अंशन भी हुए। आंदोलन व आमरण अंशन कुछ आश्वासनों पर खत्म हो गए तो कुछ आंदोलनों की पुलिस के दबाव में दबा दिया गया। छात्र संघ चुनाव न होने से छात्र नेताओं का मनोबल तो टूटा ही साथ में छात्र नेताओं की गतिविधियां भी कम होने लगीं। पूर्व छात्र नेता व सपा सदर विधायक महेन्द्र नाथ यादव बताते है कि इस सरकार के छात्र का मनोबल तोड़ने का काम किया है। क्योंकि पढ़ाई के साथ नेता बनने के लिए कालेजों में सीखने का एक बढ़िया प्लेटफार्म मिलता था। वर्तमान व्यवस्था ने इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया है। अब देश को पढ़ा-लिखा नेता मिल पाना काफी मुश्किल होगा। इन्होंने ने बताया कि जब हम पढ़ते थे। वहीं से हमने नेता बनने का निर्णय लिया। पढ़ाई के दौरान छात्रों को विद्यालय में बहुत समस्याएं आती था। एडमिशन न मिलना, विद्यालयों में समय से पढ़ने के लिए किताब नहीं मिलने के साथ तमाम प्रकार के असुविधाएं होती थी। इन समस्याओं को छात्र नेता विद्यालय प्रशासन से मिलकर मौके पर ही खत्म करा देता था। अब यह हाल है कि छात्रों की समस्याओं को विद्यालय प्रशासन के द्वारा निपटाने के बजाय समस्याओं को सिर्फ टालने का काम किया जाता है। जिससे छात्र अपनी विद्यालय से संबंधित शिकायत किसी से कर नहीं पा रहे हैं। छात्र नेता अक्षय प्रताप सिंह, देवांश शुक्ला के साथ तमाम लोगों ने बताया कि विद्यालय छात्र संघ राजनीति की पहली सीढ़ी है। छात्र संघ नहीं होने के कारण छात्रों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। शुल्क वृद्धि व स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में लिए जा रहे मनमाने शुल्क पर आज बोलने वाला कोई नहीं है। जनपद में किसान, जवान, गरीब अधिक फीस की वजह से बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं या प्रवेश ही नहीं ले पा रहे। सरकार जिस तरह निजीकरण को प्राथमिकता दे रही है, विश्वविद्यालयों को भी निजी हाथों में सौंप दें। छात्र आदित्य प्रताप सिंह व आयुष मिश्रा ने बताया कि छात्रसंघ चुनाव को प्राथमिकता के आधार पर कराना चाहिए, जो छात्रों के अधिकारों, हितों व शिक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए एक मंच प्रदान करता है। छात्रसंघ से विद्यार्थियों में लीडरशिप क्वालिटी विकसित होती है। छात्र नेता छात्र के हित के मुद्दों पर आंदोलन व प्रदर्शन भी करता है। इससे छात्रसंघ से राजनीतिक रूप से निखरकर युवा समाज में जाते हैं। छात्रों के पास अपनी बात रखने का नहीं है कोई मंच बस्ती। जब छात्रसंघ का चुनाव होता है, तब छात्र अपनी समस्याएं पदाधिकारियों को बताते हैं। जिसमें छात्र संघ के पदाधिकारी अपने स्तर से जांच करने के बाद विद्यालय प्रशासन के सामने मुद्दे उठाते थे, बल्कि उनका समाधान भी कराते थे। अब विद्यालय में छात्रों के पास ऐसा माहौल नहीं है। छात्रों को अपनी समस्याएं विद्यालय प्रशासन से सीधे रखनी पड़ती है। जिससे छात्रों के तमाम मामलों में छात्रों को महीनों विभाग या प्रशासनिक भवन के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। परीक्षा परिणामों में त्रुटियां इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है। प्रशासनिक लापरवाही के कारण पूरे साल बड़ी संख्या में कॉलेज से डीडीयू तक विद्यार्थी इसे लेकर परेशान रहते हैं। छात्रों की संख्या में आई काफी गिरावट बस्ती । विद्यालय में छात्रों की संख्या में काफी गिरावट आई है। इसका यह भी कारण है कि छात्रसंघ चुनाव नहीं होने की वजह से छात्रों की संख्या में कमी आई है। छात्र अजीत चौधरी, अशीर्वाद सिंह बताते है कि छात्र नेता चुनाव जितने के लिए तमाम छात्रों का एडमिशन पर भी जोर दिया करते थे, क्योंकि जो नेता छात्रों का एडमिशन कराता था, उस छात्र का बहुमुल्य मत उसी नेता को बड़ी आसानी से मिल जाता था, इसलिए छात्रों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी प्रत्येक वर्ष हुआ करता था। चुनाव नहीं होने के कारण यहां की स्थिति ही बदल गया है। जिससे छात्रों की संख्या कम होने पर विद्यालय प्रशासन को काफी हद तक सकुन में है। इससे युवाओं का काफी नुकसान है। इस पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। छात्रों के पठन-पाठन में समस्या ही समस्या बस्ती। छात्र अक्षय प्रताप सिंह, अभय सिंह, अभिषेक सिंह, देवेश सिंह के साथ दर्जनों छात्र बताते है कि छात्र संघ का चुनाव नहीं होने से इसमें छात्रों पठन-पाठन के दौरान समस्या ही समस्या है। शिवहर्ष किसान डिग्री कालेज काफी पुराना कालेज है। इस कालेज ने इंजीनियर, डॉक्टर, वकील व नेता सहित हर क्षेत्र में इस विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को एक मुकाम दिया है। लेकिन अब यहां की स्थिति दिनों दिन खराब होता जा रहा है। विद्यालय परिसर में छात्रों के चलने के लिए सही ढ़ंग की सड़के तक की सुविधा नहीं है। इन्होनें बताया कि इस परिसर में लगा इंडिया मार्का हैंडपंप काफी दिनों से खराब पड़ा है। जिससे बच्चों की स्वच्छ पानी पीने के लिए मुहैया तक नहीं हो पा रहा है। विद्यालय में बना पुस्तकालय की भी स्थिति ठीक नहीं है, क्योकि इस पुस्तकालय में नई किताबों की संख्या काफी कम है। जिससे छात्रों को तैयारी करने में काफी असुविधा हो रहा है। विद्यालय के कैम्पस में साफ-सफाई का भी अभाव है। यहीं अगर छात्र संघ के नेता चुने गए होते तो ये सभी समस्याए छात्र नेता विद्यालय के प्रशासन से लड़-झगड़ कर ये सभी समस्याए दूर करा देते थे। अब स्थिति यह हो गया कि विद्यालय प्रशासन छात्रों की सुविधाओं का जरा सा ख्याल नहीं रखा जाता है। उत्सव के रूप में बदल जाता था शिवहर्ष महाविद्यालय का चुनाव बस्ती। शिव हर्ष महाविद्यालय का छात्रसंघ चुनाव उत्सव के रूप में मानाया जाता था। सड़कों पर बैनर पोस्टर लगे होते थे। उम्मीदवारों के नाम की पर्चियां सड़क से लेकर पूरे शहर में चिपकाई जाती थी। छात्रनेताओं के पीछे उनके समर्थकों का हुजूम चलता था। जिन्दाबाद के नारे लगते थे। पुराने छात्रसंघ पदाधिकारी गोल बनाकर चुनाव लड़ाते थे और मतदान के दिन किसी न किसी प्रत्याशी के खेमें में बैठे दिखाई देते थे। चुनाव के दिन पूरे क्षेत्र में मेले जैसा दृश्य होता था। पुलिस और प्रशासन को रास्ता तक बंद करना पड़ता था। लेकिन अब यह बातें इतिहास हो गई हैं। छात्रसंघ का चुनाव पिछले आठ वर्ष बंद है। छात्रसंघ का चुनाव प्रतिबंधित होने पर महाविद्यालय के सभी छात्रों ने चुनाव बहाल कराने के लिए अनगिनत धरना प्रर्दशन किया। छात्रों का धरना प्रदर्शन आम धरना प्रदर्शन नहीं था। छात्रों ने अमरण अनशन से लेकर भुख हड़ताल भी किया, लेकिन परिणाम जस का तस रहा। धीरे-धीरे छात्रों का मनोबल धीरे-धीरे टूटता चला जा रहा है, लेकिन अभी भी छात्रों को उम्मीद है कि किसी न किसी दिन छात्रसंघ का चुनाव होगा। फिर वही उत्सव का महौल महाविद्यालयों में देखने को मिलेगा। छात्र नेता अक्षय प्रताप सिंह के साथ दर्जनों छात्रों ने बताया कि छात्रसंघ का चुनाव एक उत्सव के रूप में सभी छात्र मनाते थे। छात्रसंघ का चुनाव हर वर्ष हुआ करता था। जिसमें हर वर्ष अलग-अलग प्रत्याशी छात्रसंघ का चुनाव लड़ते थे। चुनाव के दौरान सभी प्रत्याशी अपने-अपने स्तर से छात्रों का पैर छूना, छात्रों की समस्याओं को निपटाना, सभी छात्रों से समस्याओं को बताने का अपील व मीठी बोली से मत हासिल करते थे। जूनियर व सीनियर का आदर व संस्कार करने जैसे तमाम नीतियों का पालन करते थे। जिससे छात्रों में एक जुट व मेल-जोल हमेशा बना रहता था। छात्रसंघ का चुनाव जीतने के बाद छात्रनेता स्कूल के कैंपस में साफ-सफाई, स्कूल में मरम्मत व निर्माण, पुस्तकालय में किताबों की मांग के साथ महाविद्यालय में छात्रों के तमाम जरूरतों के पूरा करने के लिए जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से बिना डरे मांग किया करते थे। जिससे महाविद्यालयों में हमेशा चमक बनी रहती थी। बोले छात्र/छात्र नेता डिग्री कॉलेज छात्रसंघ राजनीति की नर्सरी है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए छात्रसंघ जरूरी है। इसके लिए छात्र नेताओं ने कई बार प्रदर्शन कि, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं हुआ है। अक्षय प्रताप सिंह चुनाव नहीं होने से छात्रों के मौलिक अधिकारों का दमन महाविद्यालय प्रशासन कर रहा है। पठन-पाठन, पेयजल सहित तमाम समस्या छात्रसंघ उठाते थे। अब स्थित खराब है। देवांश शुक्ला छात्रसंघ से विद्यार्थी राजनीति का पहला सीढ़ी चढ़ना सीखता था। इसी महाविद्यालय से कई छात्र नेता निकले, जिनसे नाम रोशन हुआ। आदित्य प्रताप सिंह राजनीति में परिवारवाद को भी छात्रसंघ खत्म करता था। छात्रसंघ से नया नेतृत्व निकलता है। छात्रसंघ चुनाव नहीं होने से हर तरह की राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा मिलता है। आयुष मिश्रा छात्रसंघ से महाविद्यालय प्रशासन मनमाने तरीके से कोई काम नहीं करा पाता था। प्रशासन भवन निर्माण से लेकर तमाम कामों को कराता तो इसमें होने वाले भ्रष्टाचार से छात्रसंघ लड़ता था। नितेश सिंह महाविद्यालय में अब यह हाल है कि मनमाने तरीके से बिना मानक के निर्माण कार्य हो रहे हैं। इस पर रोक लगाने लगाने के लिए लड़ने वाला कोई नहीं है। आदित्य मिश्रा महाविद्यालय में छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर छात्रों को परेशान होना पड़ रहा है। छात्रसंघ प्रतिनिधि बिना डर के प्रशासन के सामने अपनी बात रखता है। प्रद्युम्न सिंह किसान डिग्री कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव जरूरी है। चुनाव नहीं होने के कारण विद्यार्थी अपनी समस्याओं पर अपनी बात नहीं रख पा रहे है। अभय सिंह छात्रसंघ चुनाव हो तो नए नेता निखरकर सामने आएंगे। छात्रसंघ राजनीति की पहली व सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी है। चुनाव नहीं होने से छात्रों के अधिकारों को दबाया जा रहा है। अभिषेक सिंह छात्र नेताओं के आग महाविद्यालय प्रशासन का मनमानी नहीं चलती थी। महाविद्यालय प्रशासन गलत तरीके से किसी छात्र को प्रताड़ित नहीं कर पाता था। देवेश सिंह महाविद्यालय में अभी जल्द ही छत पर निर्माण कार्य कराया गया है, जिसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो रहा है। छत पर पैर मारते ही गिट्टियां उखड़ रही हैं। रमन पाण्डेय छात्र नेताओं की वजह से सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं होता था। चुनाव की प्रथा खत्म कर दिया गया है। तबसे आज तक सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है। राज सोनी छात्रसंघ जब से समाप्त किया गया है तब से अध्यापक छात्रों को धमकाते हैं। अगर कहीं शिकायत करोगे तो भविष्य खराब कर देंगे मुकदमा दर्ज करके। सुयांश पाण्डेय पहले अति गरीबों परिवार के बच्चों का फीस छात्र नेताओं की मांग पर माफ कर दिया जाता था। अब स्थिति यह है कि गरीब परिवार के छात्र पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। अजीत चौधरी केडीसी का मेनगेट छात्रों के लिए नहीं खोला जाता है। इस समय महाविद्यालय का कैम्पस सिर्फ शादी व चुनाव का अड्डा बन गया है। इस पर रोक लगाई जाए। आशीर्वाद सिंह छात्रसंघ का चुनाव को प्रदर्शन से लेकर भूख हड़ताल किया गया था, लेकिन सरकार छात्रों की बात सुनने को तैयार नहीं है। यह सरकार लोकतंत्र की हत्या कराने में लगी है। अविनाश प्रताप सिंह बोले जिम्मेदार छात्र राजनीति का पाठशाला ही छात्रसंघ है। इसी पाठशाला से छात्र नेता सबका सम्मान करना सीखते हैं। यही से छात्र नेता सभी मुद्दों पर अपनी आवाज उठाना सीखता है। छात्रसंघ चुनाव पर सरकार ने रोक लगाकर छात्रों के विकास पर भी रोक लगाने का काम किया है। छात्रसंघ चुनाव से आगे चलकर राजनेता के रूप में देश के विकास में भागीदारी निभाता है। इसलिए सरकार को चाहिए छात्रसंघ का चुनाव पुन: कराने की अनुमित मिले, जिससे हमारे देश का भविष्य सुधर सके। महेन्द्रनाथ यादव, सदर विधायक/पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, केडीसी युवा पीढ़ियों के लिए छात्रसंघ का चुनाव कुछ नियम व शर्तो के आधार पर कराया जाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र से देश चलता है। राजनीति से छात्रों का बहुमुखी विकास होता है। इसलिए छात्रसंघ का चुनाव को बहाल करते हुए नए नियमों व शर्तो को तय करते हुए चुनाव कराया कराने की जरूरत है। यहां से छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। वह खुलकर अपनी बात को सबके सामने रखने का पाठ सीखता है, जो उसे जीवन में बहुत काम आती है। प्रो. रीना पाठक, प्राचार्य, शिवहर्ष किसान पीजी कॉलेज, बस्ती
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