Bijnor s Handmade Leather Shoe Industry Faces Decline Due to Economic Challenges बोले बिजनौर : कच्चे माल की कमी ने जूझ रहा लैदर शूज कारोबार, Bijnor Hindi News - Hindustan
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बोले बिजनौर : कच्चे माल की कमी ने जूझ रहा लैदर शूज कारोबार

Bijnor News - बिजनौर के अमीना बाजार का हैंड मेड लैदर शूज कारोबार अब संकट में है। कच्चे माल की किल्लत और ट्रांसपोर्ट की महंगाई के कारण यह कारोबार बंदी के कगार पर पहुँच गया है। पहले यहाँ 20 कारखाने थे, लेकिन अब केवल...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिजनौरMon, 14 April 2025 01:26 AM
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बोले बिजनौर  : कच्चे माल की कमी ने जूझ रहा लैदर शूज कारोबार

कभी बिजनौर के अमीना बाजार का हैंड मेड लैदर शूज कारोबार जिले की शान व जान होता था। जो धीरे-धीरे सुविधाओं का अभाव कच्चा माल की किल्लत के चलते बंदी के कगार पर पहुंच गया है। माल व ट्रांसपोर्ट की महंगाई ने इस कारोबार को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी समय पूरा अमीना बाजार जूता कारखानों के लिए मशहूर होता था। करीब 20 कारखाने चलते थे। लैदर शूज कारखानों में करीब 300 कारीगर दिन रात काम करते थे। त्योहारों पर इन कारखानों में महीनों पहले माहौल बन जाता था। चाइनीज व आगरा मेड सस्ते जूतों की भरमार ने बिजनौर लैदर शूज को पूरी तरह से खत्म कर दिया। एक-दो परिवार ही अपनी विरासत संभाले हुए है। वो भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे है।

कभी बिजनौर का अमीना बाजार हैंड मेड लैदर शूज मार्किट के लिए मशहूर हुआ था। अमीना मार्किट को उस्ताद अमीनुददीन ने आजादी से पहले बनाया था और अपने नाम पर उसका नाम भी अमीना बाजार रखा था। बिजनौर के अमीना बाजार को दिल्ली की तर्ज पर बनाया गया था। जिसमें करीब 20 से अधिक कारखानों पर 300 से अधिक कारीगर लैदर शूज को बिना मशीन के हाथों से तैयार करने का काम करते थे। इतना ही नहीं कारीगर हाथों से ही लैदर शूज को अच्छे-अच्छे डियाइन भी देते थे। अमीना मार्किट में 12 महीने रौनक का माहौल बना रहता था। त्योहारों पर कई माह पहले से काम शुरू हो जाता था। उस्ताद अमीर अहमद, उस्ताद अमीनुददीन के पोते मौ. वसी बताते है कि बिजनौर का माल टिकाऊ कहलाता था। जिसके चलते आसपास के जिलों में भी खूब माल जाता था। जूता बनाने का काम सीखने के लिए बच्चों की भीड़ रहती थी।

शुऐब खान बताते है कि सरकार ने उनके काम की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। न उनको कच्चे माल की उपलब्धता कराई गई और न ही उनको सब्सिडी दी गई। हैंड मेड लैदर जूता महंगा पड़ने लगा, जबकि मशीनों से तैयार आगरा मेड व चाइनीज फोम का जूता सस्ते दामों में बाजार में आने लगा। आर्थिक तंगी के चलते जूता कारीगरों ने दूसरे काम शुरू कर दिए है। अब मार्किट में सिर्फ दो जूता कारीगर की काम करते है। जमील अंसारी, मौ. रजा व शाहनवाज अहमद का कहना है कि उनको कारोबार बढ़ाने के लिए आसानी से लोन नहीं मिलता है। कच्चे माल की कीमत लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही ट्रांसपोर्ट भी बहुत महंगा हो गया है। जिससे हैंड मेड जूते बनाने की लागत बढ़ी है। जबकि उनके जूते के दाम बढ़ाकर नहीं दिए जाते है। आर्थिक तंगी के चलते जूता कारीगरों ने बिसातखाना का काम कर लिया है।

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एक-एक से माहिर जूता उस्ताद हुए

अमीना लैदर शू मार्किट में एक-एक बढ़कर उस्ताद हुए है। जिनमें उस्ताद मुकीम, करम इलाही, हबीबुरर्हमान, हाफिज कमालुददीन, इर्तजा हुसैन उर्फ कल्लू, रफीउददीन, उस्ताद सुल्तान, हाजी अब्दुल रब, उस्ताद अमीर अहमद के हाथों में जादू होता था। जो एक बार इनके हाथ का बना जूता पहन लेता था, वो इनका मुरीद हो जाता था। नये कारीगरों को शौक से काम भी सिखाया जाता था।

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दिल्ली, मुंबई व लखनऊ तक जाते थे जूते

बाजार के मशहूर उस्तादों के हाथों का जादू कभी राजनेताओं के दिलों पर चलता था। दिल्ली, मुबंई व लखनऊ के बड़े नेता फरमाइश पर बिजनौर के हैंड मेड लैदर शू कहकर मंगवाते थे। उस्ताद अमीर अहमद बताते है कि मुंबई के लोग जब बिजनौर आते थे, तो वह ऊंची ऐडी वाले सफेद लैदर के जूते जरूर लेकर जाते थे। कई फिल्मी कलाकार भी बिजनौर के सफेद लैदर शू को पसंद करते थे।

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एडवांस देकर 10 दिन बाद मिलता था जूता

उस्ताद अमीर अहमद पुराने दिनों को याद करते हुए बताते है कि हैंड मेड लैदर जूते के लिए ग्राहक जूते का नाप देकर एडवांस पैसे देता था। इसके बाद उनको टाइम दिया जाता था। एक ट्राई भी कराया जाता था। फिर फाइनल कर दिया जाता था।

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चाइनीज फोम व आगरा मेड ने खत्म किया काम

बिजनौर का हैंड मेड लैदर जूता चाइनीज फोम व मशीन के आगरा मेड जूते के सामने महंगा पड़ने लगा। जबकि चाइनीज फोम व आगर मेड जूता सस्ता बाजार में आ गया। जिससे ग्राहक खासकर युवाओं उनसे आकर्षित हो गए। उनका जूता चाइनीज व मशीनों से बनकर आने वालों जूतों के मुकाबले थोड़ा महंगा पड़ने लगा। अब तो बिजनौर का हैंड मेड लैदर जूता कारोबार यादें बन गया है।

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पहले था टैक्स फ्री अब 18 प्रतिशत जीसीटी

जूता कारीगर रह चुके मौ. आमिर, असगीर खान, अ. गफ्फार ने बताया कि पहले जूता कारोबार टैक्स फ्री था। इसके बाद जूते पर 5 प्रतिशत, फिर 12 प्रतिशत व अब 18 प्रतिशत की जीएसटी देनी पड़ती है। जूते कारोबार पर टैक्स की मार भी भारी पड़ रही है।

सुझाव--

-सरकार को जूता कारीगरों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।

-कच्चे माल पर सब्सिडी देनी चाहिए।

-कारीगरों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।

-आन लाइन प्लेटफार्म पर किया जाए उनके बनाए जूतों का प्रचार

-कारीगरों को आसानी से दिया जाए कारोबार के लिए लोन

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शिकायतें--

- लगातार बढ़ रही है सामान की कीमतें

- युवाओं को हाथ से बने जूते में नहीं है रूचि

- स्पोर्टस शूज बन रहे है युवाओं की पसंद

-कारीगरों के आसानी से नहीं दिया जाता है लोन

-महंगाई और कम ग्राहकों के कारण व्यवसाय चलाना मुश्किल

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जूता कारीगरों का दर्द--

कच्चे माल मिलना मुश्किल हो गया है। सब्सिडी शासन से मिलती नहीं है। जिसके चलते काम करना मुश्किल हो गया है। - अमीर अहमद

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ट्रांसपोर्ट का खर्च बहुत महंगा हो गया है। जिससे उनके बनाए जूते पर लागत अधिक आने लगी है। उनके जूतों की बिक्री कम हो गई है। -जमील अंसारी

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चाइनीज फोम के जूते उनके लैदर के जूतों के मुकाबिले काफी सस्ते बिक रहे है। जिससे उनका कारोबार बंद हो गया है। -मौ. रजा।

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चमड़े और अन्य सामग्री की कीमत बढ़ने से लागत भी बढ़ गई है। जबकि ग्राहक लागत के भी पैसे देने को तैयार नहीं है। जिससे उनके सामने आर्थिक सकंट खड़ा हो गया है। -मौ. आमिर

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सरकार कारीगरों को वित्तीय सहायता दे। कच्चे माल को सस्ते दरों पर व आसानी उपलब्ध कराए। जिससे जूता कारोबार दोबारा जीवत हो सके।

-असगीर खान

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कच्चे माल की कीमतों के बढ़ने से काम करना मुश्किल हो गया है। परिवार का पालन पोषण भी ठीक से नहीं हो पा रहा है। -मौ. वसी

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चाइनीज फोम व आगरा मेड जूतों ने उनके कारोबार को पूरी तरह प्रभावित किया है। सरकार को कच्चे माल पर सब्सिडी देनी चाहिए और उनके माल को प्रमोट करना चाहिए। -शुऐब खान

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सरकार को जूता कारीगरों के लिए प्रशिक्षण दिलाना चाहिए। उनको लोन देकर कारोबार को आगे बढ़ाना चाहिए। -अब्दुल गफ्फार

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अब लोग हाथों के बने जूते पहना पसंद नहीं करते है। जिसके चलते उनका काम प्रभावित हो रहा है। उनके सामने आर्थिक सकंट खड़ा है।

मौ. सरदार उर्फ दारा

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स्पोर्ट्स शूज व आनलाइन बाजार ने उनका कारोबार समाप्ति पर पहुंचा दिया है। सस्ते स्पोर्टस शूज से युवा आर्कषित होते है। लैदर जूते कम पसंद किए जा रहे है। -शाहनवाज अहमद

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