बोले बिजनौर : अस्तित्व की जंग लड रहे हनुरमंद दर्जी
Bijnor News - समाज में दर्जियों की संख्या कम होती जा रही है। रेडीमेड कपड़ों के बढ़ते चलन और महंगे मटेरियल के कारण दर्जियों का कारोबार प्रभावित हो रहा है। युवा पीढ़ी अब इस पेशे में रुचि नहीं ले रही है, जिससे...

समाज में मास्टर जी कहे जाने वाले दर्जी आज हाशिये पर हैं। दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। कपड़े की खरीदारी से लेकर सिलाई तक का खर्चा, रेडीमेड के मुकाबले लगभग दोगुना हो जाता है। दूसरी तरफ दर्जी का अपना खर्च भी बढ़ गया है-धागा, बटन, जिप और सिलाई मशीनों की मरम्मत जैसी जरूरतें महंगी हो गई हैं। कई दर्जी तो ग्राहकों की कमी के कारण अपना पुश्तैनी धंधा बंद करने पर विचार कर रहे हैं। बिजनौर शहर में मौजूदा समय में करीब 250 टेलर की दुकानें हैं। जिन पर एक हजार से अधिक कारीगर अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं। कुछ दशकों पहले तक सिलाई करने वाले कारीगरियों की यह संख्या इससे कही ज्यादा थी। जैसे शिक्षक को इज्जत के लिए मास्टर साहब कहा जाता है, उसी तरह टेलर को भी इज्जत देने के लिए टेलर मास्टर कहा जाता है। टेलर के काम को इज्जत की नजर से देखा जाता है। एक बार ग्राहक की पसंद जानकर टेलर मास्टर उसके मिजाज का लिबास तैयार कर देता है। आदमी भी वर्षों तक अपना टेलर मास्टर नहीं बदलता था। बल्कि पूरे खानदार के कपड़े अपने पहचान के टेलर के पास सिलवाने लाता था। उस्ताद टेलर जाहिद हुसैन, मौ. शाहिद व मौ. वाजिद ने बताया कि पहले उनके पास साल में 11 महीने काम होता था। त्योहारों के बाद शादी-विवाहों व अन्य कार्यक्रमों के लिए नये कपड़े सिलवाए जाते थे। त्योहारों पर तो उनके पास इतना लोड होता था कि वह 15 दिन पहले बुकिंग बंद कर देते थे। वर्तमान समय रेडीमेड गारमेंट्स का चल रहा है। जिसके चलते युवा तो टेलर के सिले कपड़े पहना पसंद ही नहीं करते है। कपड़े सिलवाने का सिलसिला अब केवल शादी-विवाह व त्योहारों तक सिमटकर रह गया है।
टेलर मौ. नाजिम, वासिद खान व मौ. तारिक ने बताया कि कपड़े सिलने में काम आने वाले मटेरियल के दामों पर इजाफा होता जा रहा है। जिससे लागत बढ़ रही है। जबकि आम दुकानों पर आज भी 500 से 650 रूपये तक पैंट शर्ट तैयार कर दे दी जाती हैं। जबकि कुर्ता पजामा आज भी 300 से 450 रूपये में तैयार कर दिया जाता है। कपड़ों की यह कीमत पिछले कई सालों से चली आ रही है। सिलाई के पैसे में बढ़ोत्तरी न होने से कारीगर की मजदूरी भी नहीं बढ़ रही है। जिसके चलते युवा इस कारोबार में आने को तैयार नहीं है। टेलर मास्टरों का कहना है कि कपड़े सिलने के लिए पायदान वाली सिलाई मशीन को पैरों से चलाना पड़ता है। इसके लिए कारीगर को काफी समय तक मशीन पर बैठना पड़ता है। जिससे बाद में कारीगरों को स्वास्थ्य की परेशानी उठानी पड़ती है। इसके चलते भी युवा इस कारोबार को पसंद नहीं कर रहे है।
कारीगर मौहम्मद नौशाद, मौहम्मद नईम व मौहम्मद नाजिम ने बताया कि मटेरियल के साथ-साथ सिलाई मशीन, इंटरलोकिंग मशीन की कीमतों में काफी बढ़ोत्तरी हो गई है। जिससे टेलर नई मशीनों को लेने के लिए महीनों बचत करता है। सरकार टेलर के कारोबार को बढ़ाने के लिए सस्ते ब्याज पर आसान लोन दे और उसके उपकरणों पर सब्सिडी दिलाए। जिससे टेलर मास्टर का पुश्तैनी कारोबार बचा रहे।
युवाओं को नहीं टेलर के काम में रूचि
उस्ताद मौ. शाहिद, मौ. तारिक व मौ. जाहिद ने बताया कि अब युवा टेलर के काम में नहीं आना चाहता हैं। जिससे इस काम के कारीगर समाप्त होते जा रहे हैं। पहले बच्चे को टेलर की दुकान पर छोड़ दिया जाता था। काम सिखाने की प्रक्रिया तीली उठवाने से होती थी। जो कई महीने तक चलती रहती थी। इसके बाद बच्चे को काज व बटन लगाना सिखाया जाता था। धीरे-धीरे सिलाई की सभी विद्या दी जाती थी। जिसमें काफी साल लग जाते थे। कटिंग सीखने के लिए कारीगर एक शहर से दूसरे शहर बड़े उस्ताद टेलरों के पास जाते थे। पूर्व में टेलर अपने उस्ताद का नाम बड़े फख्र से लेते थे और उस्ताद को पूरी इज्जत व सम्मान देते थे।
सरकार दिलाए उनको सस्ता लोन
टेलर मास्टरों का कहना है कि उनके घटते कारोबार को बढ़ाने के लिए सरकार उनको सस्ता लोन दिलाए। उनके उपकरणें पर सब्सिडी दिलाई जाए। जिससे वह अपने उपकरण आदि खरीदे और अपने कारोबार को बढ़ा सके।
अपनी जेब से देने पड़ते हैं कारीगरों को पैसे
टेलर मास्टर मौहम्मद तारिक व मौहम्मद शाहिद ने बताया कि कपड़े सिलने के बाद काफी दिनों तक ग्राहक कपड़े उठाकर नहीं ले जाते हैं। जिससे उनको कारीगरों को पैसे अपनी जेब से देने पड़ते हैं। कुछ ग्राहक तो कपड़े उठाने तक नहीं आते और सालों तक कपड़े उनकी दुकानों में धूल फांकते रहते है। जबकि कारीगर उनसे एडवांस पैसे ले लेते हैं।
अल्टर पर चल रहा घर का खर्च
टेलर जाहिद हुसैन, वासित खान व मौ. नाजिम ने बताया कि त्योहरों व शादी-ब्याह को छोड़ दो तो अब उनके पास गिनती के लोग कपड़े सिलवाने आते हैं। अब उनके पास अल्टर काम ही बचा है। रेडीमेट गारमेंटस खरीदने वाले उनके पास फिटिंग के लिए आते हैं। जिससे उनके थोड़े पैसे मिल जाते हैं। इस अल्टर के काम के चलते ही उनके घर का खर्च चल रहा है।
सुझाव
1- टेलरों को बैंकों से सस्ती ब्याज दर पर लोन दिलाया जाए।
2-टेलरों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाया जाए।
3-टेलरों को उनके उपकरणों पर सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जाए।
4-टेलर के काम के लिए युवाओं को प्रेरित किया जाए।
5-टेलरों की उपलब्ध कराई जाए सस्ती दर से बिजली।
शिकायतें
1- रूझान न होने के चलते युवा पीढ़ी नहीं आ रही कारोबार में
2- मटेरियल के दामों पर हर साल बढ़ने पर रोक लगे
3- रेडीमेड गारमेंट के चलते युवाओं ने कम दिया सिलाने काम
4-कपड़े तय डेट पर नहीं ले जाते है काफी ग्राहक
5-नई तकनीक से नहीं जोड़ा जा रहा टेलरों को
दर्द किया बयां
तय डेट पर काफी लोग तैयार कपड़े नहीं लेकर जाते हैं। जबकि उनको कारीगर को टाइम से पैसे देने पड़ते हैं। इससे उनको नुकसान होता है। - मौहम्मद शादाब
अब युवा टेलर का काम नहीं सीखना चाहते हैं। जिससे कारीगर की कमी होती जा रही है। समय के साथ काफी चीजों में बदलाव आने से समस्या आ रही है। - नवाब अहमद
मशीनें और सिलाई में काम आने वाले मैटीरियल महंगे होने के कारण कारोबार में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। - जाहिद हुसैन
काम कम होने के चलते काफी पुराने टेलर भी अपने बच्चों को इस काम नहीं ला रहे हैं। जिससे लोग कम हो रहे है। - मौहम्मद जफर
शादी-त्योहारों में ही काम मिल पाता है। इसके बाद उनको अल्टर पर निर्भर रहना पड़ता है। आमदनी घट रही है। - अमित कुमार
नई पीढ़ी सिलाई के ई के काम कारण टेलरों के लिए परंपरागत काम के अस्तित्व को बचाना चुनौती बन गया है। अब टेलरिंग में युवा नहीं आ रहे है। मौहम्मद तारिक
शादी-विवाह और त्योहारों के सीजन पर ही काम मिलता है। नई पीढ़ी ने काम से दूरी बना ली है। - मौहम्मद नौशाद
बाजार में मशीनें और वाले मैटीरियल महंगे होने के कारण कारोबार में आर्थिक रूप से काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। -वासित खान
शादी-विवाह व त्योहारों पर ही काम मिल पाता है। जिस कारण टेलरों के सामने पूरे साल अपने परिवार का भरण-पोषण करना काफी मुश्किल भरा हो जाता है। - मौहम्मद नाजिम
मार्केट में रेडीमेड कपड़ों का चलन बढ़ता जा रहा है। जिस कारण कारोबार प्रभावित हो रहा है। काम में काफी मंदी चल रही है। - मौहम्मद नईम
ग्राहक सिलाई के लिए दिए कपड़े काफी दिनों तक लेने नही आते हैं। जिस कारण लेबर का भुगतान खुद से ही करना पड़ता है। इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। - मौहम्मद नाजिम
सिलाई के काम को बढ़ावा देने के लिए सरकार को उपकरणों पर सब्सिडी दे और उन्हें लोन उपलब्ध कराए। - मौहम्मद शाहिद
पहले काम सीखने के लिए बच्चे आ जाते थे, अब युवा इससे दूरी बना रहे हैं। जिससे नए कारीगर नहीं मिल रहे है। -मौहम्मद वाजिद
ग्राहकों की अपेक्षाएं और फैशन के रुझान लगातार बदलते रहते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ जाती है। - शानू खान
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