बोले फर्रुखाबाद:मंच मिले तो और निखर जाए प्रतिभा
Farrukhabad-kannauj News - भारतेंदु नाट्य अकादमी की रंग पाठशाला ने बच्चों में अभिनय के प्रति उत्साह जगाया। रामलीला के पात्रों के माध्यम से बच्चों ने न केवल अभिनय सीखा, बल्कि भारतीय संस्कृति से भी जुड़े। कार्यशाला में कई स्कूलों...
भारतेंदु नाट्य अकादमी की ओर से दस दिवसीय रंग पाठशाला ने नए आयाम गढ़ने का काम किया है। छोटे-छोटे बच्चों को रामलीला के पात्र का अभिनय सिखाने का जो कार्य किया गया है उससे बच्चों में एक नए उत्साह का भाव भी पैदा हुआ। रंग पाठशाला किसी साधारण नाट्य कार्यशाला की तरह नहीं थी। इसे एक अध्यात्मिक यज्ञ की तरह महसूस किया गया। यहां पर बच्चों ने अभिनय के माध्यम से स्वयं को गढ़ने का काम किया। मंच के माध्यम से भारतीय संस्कृति से जुड़ने का भी काम किया गया। इस कार्यशाला में कई स्कूलों के छात्र छात्राओं की भागीदारी रही।
उन्हें अभिनय के साथ भारतीय नाट्य शास्त्र की विभिन्न विधाओं से परिचय कराया गया। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान प्रशिक्षणार्थी नैतिक दीक्षित ने बताया कि नाट्य अभ्यास के लिए अपने शहर में कोई स्थान उपलब्ध नहीं है। एक ऐसे सांस्कृतिक स्थल की आवश्यकता है जहां पर नियमित रूप से अभ्यास हो सके। छोटी-बड़ी प्रस्तुतियां दी जा सकें और कलाकारों को सृजनात्मक वातावरण मिल सके। विद्यालयों में सप्ताह में कम से कम एक दिन नाट्य कला को समर्पित होना चाहिए इसके लिए शासन कोई न कोई व्यवस्था करे। भारतेंदु नाट्य अकादमी के सदस्य सुरेंद्र पांडेय कहते हैं कि इस वर्ष रंग पाठशाला का विषय रामलीला रखा गया। इसका मकसद था कि बच्चों के अंदर मर्यादा, सेवा, त्याग और कर्तव्य बोध जैसे गुणों का विकास हो। उन्होंने कहा कि जिले में एक ऐसे स्थान की घोर आवश्यकता महसूस की जा रही हैं जहां ने केवल प्रशिक्षण दिया जा सके बल्कि समय-समय पर नाट्य प्रस्तुतियां व ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सके। अभी कोई उचित मंच न होने से यहां के छात्र राष्ट्रीय फलक पर कुछ भी करने में असमर्थ हैं। उचित मंच के अभाव में कई मेधाएं यहीं सिमट कर रह जाती हैं। बहरहाल, रंग कर्मियों ने बताया कि योगाभ्यास से रंग पाठशाला की शुरुआत हुई। शारीरिक गतिविधियां भी कराई गईं। हालांकि अब बच्चों को अपने आप से ही जो सीखा है उसे बनाए रखना होगा क्योंकि यहां कोई ऐसा स्थल नहीं है जहां इस रंग कर्मी कहते हैं कि बच्चों के पाठयक्रम में थिएटर और नाट्य मंचन को वैकल्पिक विषय की तरह शामिल किया जाए। जिस तरह से कंप्यूटर, संगीत और फिजिकल एजूकेशन को पाठयक्रम में शामिल किया गया है वैसे ही रंगमंच को बेहतर स्थान मिले। क्योंकि यह कला न केवल अभिव्यक्ति देती है बल्कि बच्चे के आत्मबल, अनुशासन और नेतृृत्व क्षमता को भी गढ़ती है। यही बच्चा आगे चलकर हर क्षेत्र में तरक्की करने के योग्य बनता है। सुझाव- 1. स्कूलों में नाट्य कला की कार्यशालाएं नियमित रूप से आयोजित की जाएं 2. शिक्षा में थिएटर को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया जाए। 3. रंगमंच को उचित स्थान मिलना चाहिए। 4. अभिनय के क्षेत्र में कॅरिअर की बेहतर संभावनाएं विकसित हों। 5. सरकारी-निजी स्कूलों में कम से कम एक दिन नाट्य कला पर आधारित कार्यक्रम हों। शिकायतें- 1. नाट्य कला के प्रति बच्चों का झुकाव कम होना चिंताजनक है। 2. रंगमंच को उचित स्थान नहीं मिल रहा है। 3. शिक्षा में तमाम बदलाव हो रहे हैं मगर थिएटर को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल नहीं किया जा रहा है। 4. कलाकारों को अपने जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए संभावनाएं नहीं मिल पा रही हैं। 5. नाट्य कला को जीवित रखने के लिए सांस्कृतिक स्थल न होने से दिक्कतें। बोले कलाकार- दस दिन में बच्चों में जो परिवर्तन देखने को मिला वह अविश्वसनीय रहा। पहले जो बच्चे बोलने से घबराते थे वह अब आत्म विश्वास से संवाद बोलने लगे। -नवीन मिश्रा बच्चों के साथ रामलीला पर काम करना केवल अभिनय सिखाने का माध्यम नहीं है। इसमें हम बच्चों के भीतर संस्कार, अनुशासन जागता है। -अरविंद दीक्षित पहली बार जाना कि एक नाटक के पीछे कितनी मेहनत होती है। यह अभिनय नहीं बल्कि हमारी संस्कृति से भी जुड़ा सवाल है। -नैतिक दीक्षित रंग पाठशाला ने हमारे अंदर एक अलग आत्मविश्वास को जागृत किया है। रामलीला में जब पात्र बनकर किरदार निभाने का अवसर आया तो अच्छा लगा। -रितिक पांडेय
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