बोले फिरोजाबाद: दादा-दादी की संस्कारशाला से दूर हो रहे बच्चे
Firozabad News - आज के एकल परिवारों में संस्कारों का अभाव बढ़ रहा है। बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट के जरिए संस्कृति से दूर किया जा रहा है। बुजुर्गों की कहानियाँ और पारिवारिक उत्सवों का महत्व कम होता जा रहा है। परिवारों...

बदलते परिवेश में आज अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी संस्कार की बात करने लगे हैं, लेकिन संस्कार को लेकर चर्चाएं जितनी तेज हो रही हैं, हकीकत में आने वाली पीढ़ी उनसे उतना ही दूर हो रही है। इसके पीछे वजह भी एकल परिवार हो सकते हैं। सामूहिक परिवारों में बच्चों के बीच खेल खेल में मनमुटाव के बाद भी अपनापन होता है। परिवार के छोटे बड़ों के प्रति आदर और समर्पण का भाव भी रखते हैं। दादा-दादी के कस्सिे राम के आदर्श सिखाते थे तो नाना-नानी की कहानियों में सच्चाई, ईमानदारी और आदर्शों का पाठ होता था। बचपन में कहानी से समझ जाते थे कि इस दुनिया में क्या सही है और क्या गलत। छोटी-छोटी बातों से पनपने वाले यह संस्कार पहले ही बच्चों से दूर हो रहे हैं। रही-बची कसर पूरी कर रहा है मोबाइल एवं इंटरनेट...।
संस्कार एवं संस्कृति....। भारत पहले से ही इसमें सिरमौर रहा है तो दूसरों के लिए प्रेरणाप्रद भी, लेकिन आज युवा अपनी संस्कृति से दूर हो रहे हैं। बचपन से ही बच्चों के हाथ में मोबाइल दिखाई देता है। देर रात तक मोबाइल पर रील का शोर। कार्टून शो में बच्चे मग्न हैं तो पहले जहां घर में बस्तिर में लेटते ही बच्चे कहानी सुनाने की जिद पकड़ लेते थे, वो जिद भी अब गायब हो गई है। संस्कारों से दूर हो रही नई पीढ़ी को फिर से संस्कार तथा देश की संस्कृति से जोड़ने के लिए परिवारों को ही पहल करनी होगी। छोटे-छोटे उत्सव एवं पर्व को परिवार के साथ मनाने का प्रयास करना होगा, ताकि इन बच्चों में संस्कारों का विकास हो।
संस्कारों से दूर जा रही नई पीढ़ी में संस्कार विकसित करने के लिए लंबे वक्त से कार्य कर रही है संस्कार भारती। कई बुजुर्गों के साथ शक्षिक इससे जुड़े हुए हैं तो शहर के कई कारोबारी भी, जो नई पीढ़ी में कम होते संस्कारों को देख चिंतित हैं। हन्दिुस्तान के बोले फिरोजाबाद के तहत लोगों में संस्कार जगाने का कार्य कर रहे इन लोगों से संवाद किया तो हर किसी ने कहा कि आने वाली पीढ़ी संस्कारों से दूर हो रही है। इसके पीछे अधिकांश ने पहला कारण मोबाइल एवं इंटरनेट को बताया।
माता-पिता भी कम लापरवाह नहीं हैं, अपने काम के लिए वक्त निकालने के लिए बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं, इससे जहां पहले बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन कस्सिे-कहानियां होते थे। रात में सोने से पहले बच्चे कहानी की जिद करते थे वो अब मोबाइल में बदल गई है। परिवार एकल हो रहे हैं, पिता के साथ मां भी काम-काजी। इस सबके बीच में दोनों शाम के वक्त भी बच्चों को वक्त नहीं दे पाते हैं।
मोबाइल से रखना होगा बच्चों को दूर:
कई दंपति बच्चों की शैतानी को देख कर उन्हें शांत करने के लिए मोबाइल दे देते हैं, जबकि यही मोबाइल फिर उनकी लत बन जाता है। बच्चों को संस्कारों की शक्षिा देनी है तो उन्हें मोबाइल से दूर रखना होगा।
वहीं शाम को घर आने के बाद माता-पिता को भी मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए। इससे बच्चे भी मोबाइल की आदत से दूर रहेंगे। बच्चों के साथ बैठ कर उनसे परिवार एवं दोस्तों के संबंध में बातें करते हुए अच्छी सीख देनी चाहिए।
लोगों का दर्द
नई पीढ़ी को संस्कारित करना जरूरी है। समाज में होने वाली कई घटनाओं के लिए कहीं न कहीं संस्कारों की कमी है। संस्कार असल में वो होते हैं, जो गलत कार्य करने से रोकते हैं। संस्कारित होने का अर्थ है अनुशासित होना, लेकिन इसके लिए बच्चों को बचपन से ही संस्कारों से जोड़ना होगा।
-प्रवीन अग्रवाल, आयुर्वेद सेवा सदन
बदलते दौर में संस्कृति का स्वरूप बिगड़ रहा है। आधुनिकीकरण में युवा भूलते जा रहे हैं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। युवाओं में एक समझ विकसित करनी होगी, ताकि वह हमारी संस्कृति को समझ सकें। गहराई से जाकर देखें कि संस्कृति का उद्गम कैसे हुआ। इसके लिए सोशल मीडिया जम्मिेदार है।
-प्रवीन अग्रवाल स्मार्ट टॉक
बच्चों को भारतीय संस्कृति और संस्कारों से परिचित कराने के लिए उनके परिवारों को पहले पहल करनी होगी। बच्चों के साथ वक्त बिताते हुए उन्हें कहानियों के जरिए संस्कृति एवं संस्कारों से परिचित कराएं। विभन्नि पर्व को भारतीय संस्कृति से मनाएं। यदि इन बातों पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ियां संस्कारविहीन होंगी।
-अशोक अग्रवाल
आज के दौर में पारिवारिक विघटन हो रहे हैं। इससे परिवार एकल हो रहे हैं तो फिर संस्कार में भी कमी आ रही है। माता-पिता भी अब दोनों नौकरीपेशा होते जा रहे हैं तो इस स्थिति में वह भी बच्चों को वक्त नहीं दे पाते हैं। इसका सीधा असर बच्चों की परवरिश पर पड़ता है। बच्चों को नहीं पता कि किसका सम्मान करना है और किसना नहीं।
-डॉ.अशोक शर्मा
आज बच्चों में जिस तरह से संस्कार की कमी दिखाई दे रही है, उसके लिए जरूरी है कि संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जाए। बच्चे भारत एवं इस देश की उस संस्कृति को समझ सकें, जो सदियों से समाज को दिशा दिखाती आई है। इसके लिए परिवारों को भी आगे आना होगा।
-सौरभ अग्रवाल
बच्चों में संस्कारों के अभाव के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि बच्चे बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं। बुजुर्गों के कस्सिे-कहानियों में छिपे संस्कार इन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। एकल परिवारों में भी माता-पिता के पास वक्त नहीं। बच्चों के लिए हमें वक्त निकालना होगा। नहीं तो आने वाली पीढ़ियों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है।
-बृजेश यादव
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