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बोले प्रयागराज : संस्कृत हमारी संस्कृति, फिर भी नहीं कर पा रहे संरक्षित

Gangapar News - कोरांव में संस्कृत शिक्षा भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने के

Newswrap हिन्दुस्तान, गंगापारMon, 12 May 2025 03:14 PM
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बोले प्रयागराज : संस्कृत हमारी संस्कृति, फिर भी नहीं कर पा रहे संरक्षित

कोरांव में संस्कृत शिक्षा भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने के साथ ही संस्कृत प्राचीन ज्ञान की भाषा है। यह भाषा भारतीय संस्कृति की जड़ों को मजबूत करने के साथ हिन्दू धर्म और दर्शन को जागृत करती है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को भी सम्मिलित किया गया है। यह उत्तराखंड और हिमाचल की अधिकारिक राजभाषा है। कर्नाटक का एक गांव मन्तूर ऐसी जगह है जहां के सभी लोग संस्कृत भाषा में बोलते हैं। कोरांव में भी आजादी के पहले संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हुई। शुरुआत शानदार रही लेकिन समय के साथ अपनी ही भाषा उपेक्षा का शिकार हो गई।

अच्छे शिक्षकों की वजह से जिन संस्थानों की पहचान हुआ करती थी, वही संस्थान उन शिक्षकों के चले जाने के बाद अपनी आभा खो बैठे हैं। वर्तमान में संस्कृत विद्यालयों की दशा बेहद दयनीय है। देखा जाए तो संस्कृत विद्यालयों में अब केवल नामांकन और परीक्षा ही हो रही है। प्रदेश की सरकार ने इस दिशा में थोड़ी पहल जरूर की है लेकिन वो भी नाकाफी है। संस्कृत के विकास को ठोस पहल की जरूरत है वरना देखते ही देखते यह भाषा धीरे-धीरे खत्म ही हो जाएगी। कोरांव में सबसे पहले संस्कृत विद्यालय के रुप में 1936 में विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत हुई। जिससे निकलने वाले छात्र देश-विदेश के प्रतिष्ठित पदों पर आसीन रहे हैं। बाद में जैसे-जैसे यहां के अध्यापक सेवानिवृत्त होते गये लेकिन कोई भी दूसरे अध्यापक नियुक्त नहीं किये गये। यहां तक कि इन विद्यालयों के चपरासी और चौकीदार भी सेवानिवृत्त होने के बाद कोई भी नियुक्ति नहीं की गई। पिछले वर्ष कुछ अध्यापकों की संविदा पर नियुक्ति हुई लेकिन उनका भी कोई पता नहीं रहता ।यह विद्यालय वर्तमान में पशुओं का अड्डा बनकर रह गया। यही हाल महर्षि पाणिनि संस्कृत विद्यालय बड़ोखर, श्री आनंद बोधा श्रम संस्कृत विद्यालय तिवारीपुर,श्री श्याम लाल संस्कृत विद्यालय अयोध्या, शेषमणि संस्कृत विद्यालय करपिया तथा श्री नारायण दास संस्कृत महाविद्यालय कोलसरा लेड़ियारी आदि की भी स्थिति बताई जाती है । स्थानीय स्तर पर मार्च 2021 के बाद संस्कृत विद्यालयों की दुर्दशा शुरू हुई है। हालत यह रही कि तीन-चार वर्षों तक तो इन विद्यालयों में ताले लगे रहे। बाद में प्रत्येक विद्यालय में चार-चार संविदा शिक्षक नियुक्त हुए लेकिन उन पर भी जिम्मेदारी से दूर रहने के आरोप हैं। कोरांव के विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय में नौ अध्यापकों की नियुक्ति की गई है। जिन्हें वर्ष 2023 में दो माह अक्तूबर और नवम्बर में वेतन भी दिया गया। बाद में जिला विद्यालय निरीक्षक ने वेतन रोक दिया। विद्यालय के अध्यापक हाईकोर्ट चले गये। तभी से फंड पर रोक लगा दी गई। हालांकि फंड के लिए प्रोजेक्ट अलंकरण योजना के अंतर्गत फार्म भरे गये हैं। इन विद्यालयों में नियमित क्लास नहीं चलती केवल उत्तर मध्यमा से लेकर शास्त्री तक के फार्म भराकर परीक्षाए दिलाते हुए डिग्री दिलाने के आरोप हैं। संस्कृत भाषा में ही हमारे वेद, ग्रन्थ और उपनिषद लिखे गए हैं, जिससे हमें समूचे संस्कारों की जानकारी मिलती है। मानव को जन्म लेने के बाद अन्न प्राशन से लेकर विवाह संस्कार और मृत्यु के बाद तेरहवी संस्कार भी संस्कृत भाषा में ही कराये जाने का महत्व हैं। संस्कृत भाषा की आज वैसी ही दशा है जैसा कि आपके पास आंख तो है लेकिन चलाने के लिए सहारे की जरूरत है। फिर भी संस्कृत भाषा को तिरस्कृत निगाह से देखा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2011 में कराई गई जनगणना के अनुसार 24821 लोग ही संस्कृत भाषा को ठीक से समझने वाले रहे हैं। जिनमें लोकप्रिय पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी, सुषमा स्वराज और मिसाइल जनक पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम आजाद जैसे लोग संस्कृत भाषा को विशेष महत्व देने वालों में प्रमुख थे। लेकिन आज चौदह वर्ष बीत जाने के बाद कोई भी नयी जनगणना न होने से संस्कृत जानने वालों के सही आंकड़ों का पता नहीं है। संस्कृत पाठ्यक्रमों को और अधिक रोजगार परक बनाए जाने की जरूरत गोपाल विद्यालय इंटर कॉलेज कोरांव के संस्कृत प्रवक्ता डॉक्टर कमलेश कुमार त्रिपाठी का कहना है कि संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव है। कई वर्षों से विषयवार नियुक्तियां नहीं हो रहीं हैं। शिक्षकों को अध्यापन में अरूचि होने के कारण अभिभावक भी अपने पाल्य को संस्कृत पढ़ाने में अरुचि रखते हैं। गणित विज्ञान जैसे विषयों के संस्कृत माध्यम में पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। भवन संसाधनों की अनुपलब्धता सहित संस्कृत पाठशालाओं के प्रबंध समिति की उदासीनता भी इन कमजोरी को दर्शाती है। संस्कृत पाठ्यक्रमों को और अधिक रोजगार परक बनाए जाने, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में संस्कृत माध्यम को चलाये जाने के साथ संभाषण में समर्थ एवं शिक्षकों में पर्याप्त मात्रा में नियुक्ति किए जाने की जरूरत है जिससे समाज में संस्कृत अध्ययन की जागरूकता उत्पन्न होने के साथ समाज संस्कारी बन सके। गुलाब शंकर मिश्र प्रवक्ता सरदार पटेल इंटर कॉलेज सिकरों का कहना है कि संस्कृत विषय पढ़ने के लिए योग्य अध्यापकों की आवश्यकता होती है, जो आज के संस्कृत विद्यालयों में देखने को नहीं मिलता। प्रबंधकों की दया पर डिग्री प्राप्त कर विद्यालय में नियुक्त किए गए अध्यापकों की भी पढ़ाने में रुचि नहीं रहती। जिससे अभिभावकों को अपने बच्चों को संस्कृत पाठशाला में न भेजना मजबूरी है। सरकार संस्कृत विद्यालयों को बढ़ावा देने के लिए 100 बच्चों पर 25 लाख अनुदान के रुप में दे रही है फिर भी किसी भी विद्यालय में पठन-पाठन के लिए बच्चों की संख्या पूर्ण नहीं है। आद्या प्रसाद इंटर कालेज देवघाट धूस के संस्कृत अध्यापक डा चंद्र शेखर मौर्य का मानना है कि भाजपा सरकार का ध्यान संस्कृत शिक्षा और उसकी व्यवस्था पर तो गया है लेकिन छात्र और अभिभावक अभी भी मुख मोड़े हुए हैं। जिसका मुख्य कारण यूपी बोर्ड की सरल मुल्यांकन पद्धति है। जब यूपी बोर्ड के हाईस्कूल के आंतरिक मूल्यांकन में 30 अंक विद्यालय नहीं दिए जाते थे तो काफी छात्र असफल होते थे। अब हतोत्साहित होकर संस्कृत विद्यालयों की ओर भागते थे। इन विद्यालयों से अच्छे अंक हासिल कर अच्छी मेरिट के साथ नौकरियों में जाते थे जबकि आज की शिक्षा छात्र और अभिभावक दोनों रोजगार परक दिला रहे हैं। हमारी भी सुनें संस्कृत शिक्षा हमारे धर्म और संस्कारों की जननी है। इसी ने हमें चलना, बड़ा होना और बैठना सिखाया। बड़ों का सम्मान और आदर भी इसी शिक्षा की देन है। इसके लिए सभी को आगे आना चाहिए। -राघवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, प्रबंधक, नारायण दास उत्तर माध्यमिक विद्यालय कोलसरा लेड़ियारी सांस्कृतिक विरासत ने हमें आत्मसम्मान और जीने की कला दी। हमें और आने वाली पीढ़ी को भी इसी ने सिखाया । बच्चे के पैदा होने से लेकर शादी विवाह भी इसी के संस्कार की देन हैं। -धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, शिक्षक, चौधरी शिव जोखन सिंह इंटर कॉलेज बड़े- बड़े विद्वानों के द्वारा इस भाषा में दिये गये संभाषण काफी रोचक होते हैं। इनके शास्त्रार्थ और ज्ञान वर्धक और आत्मसात करने वाले होते हैं। पाणिन का व्याकरण और अष्टाध्यायी वेद पुराण इसी भाषा से पैदा हुए। -बाल कृष्ण सिंह, प्रधानाचार्य, चौधरी जगदेव सिंह इंटर कालेज टीकर आज संस्कृत भाषा को राजभाषा मानने की बात तो दूर हिन्दुस्तान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा थोपने को लेकर झूठे आरोप गढ़ते हुए कुछ राज्यों में संग्राम छिड़ा हुआ है। जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए ठीक नहीं है। -रोहिणी प्रसाद मिश्र, शिक्षक, प्रकाश इंटर कॉलेज, अयोध्या भारत के उत्तराखंड और हिमाचल में यदि संस्कृत को राजभाषा का दर्जा दिया जा सकता है तो कम से कम अन्य हिन्दी भाषी राज्यों में भी तो इसे राज्य भाषा का दर्जा तो दिया ही जा सकता है। -लवकुश कुमार शुक्ल, शिक्षक, महर्षि पाणिनि उत्तर माध्यमिक विद्यालय बड़ोखर सांस्कृतिक विरासत की भाषा संस्कृत ने ही हमारी जड़ों को मजबूत किया है। भारतीय संविधान में भी इसे आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा चुका है फिर भी इसको उपेक्षित रखना हिन्दू धर्म के विपरीत है। -उदय कृष्ण मिश्र, शिक्षक पाणिनि उत्तर माध्यमिक विद्यालय बड़ोखर संस्कृत शिक्षा को अनिवार्य करने के लिए उच्च पदों की परीक्षा में संस्कृत को मान्य विषय मानते हुए इसमें कम से कम दस प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य कर देना चाहिए। जिससे कंपटीशन में बैठने वाला हर छात्र संस्कृत पढ़ने को विवश हो सके। -गंगा प्रसाद मिश्र, अध्यापक, राजकीय विद्यालय बेरी, मांडा संस्कृत विद्यालयों को अन्य विषयों के विद्यालयों की तरह फंड और अच्छे तनख्वाह पर योग्य अध्यापक रखने चाहिए। जिससे माध्यमिक बोर्ड परीक्षा की तरह संस्कृत विद्यालयों में भारी संख्या में छात्रों के दाखिले के साथ शिक्षा भी बेहतर मिल सके। -रामनारायण, शिक्षक, सदा सहाय माता कपुरी

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