सरेंडर हुए पाक सैनिकों को देखने के लिए लगता था मजमा
Gorakhpur News - सचित्र संस्मरण 1971 की जंग में सरेंडर हुए पाकिस्तानी जवानों को लेकर गोरखपुर रेलवे

गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 में ऐतिहासिक जंग हुई। इसके कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण (सरेंडर) किया था। इन सैनिकों को ट्रेनों के जरिए बांग्लादेश से पाकिस्तान भेजा गया था। ये ट्रेंनें गोरखपुर रेलवे स्टेशन से होकर गुजरी थीं। इन ट्रेनों में बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को देखने के लिए रेलवे स्टेशन पर हजारों लोगों का मजमा जुटा रहता था। सरेंडर करने वालों में लंबीचौड़ी कद-काठी के पठान सैनिक भी शामिल थे। शहर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. बीबी त्रिपाठी ने बताया कि वर्ष 1971 में वह रेलवे बालक इंटर कॉलेज में इंटरमीडिएट के छात्र थे।
उस समय रेडियो पर समाचार से ज्ञात हुआ कि बंग्लादेश में सरेंडर करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को लेकर कुछ ट्रेनें गोरखपुर से होकर गुजरेंगी। यह समाचार शहर में आग की तरफ फैल गया। धर्मशाला से लेकर रेलवे स्टेशन तक हजारों लोग ट्रेन की पटरियों के दोनों तरफ खड़े रहे। रेलवे स्टेशन के आसपास तो मेले जैसा नजारा था। इसमें स्कूलों के छात्र भी शामिल थे। मैं खुद दोस्तों के साथ साइकिल से रेलवे स्टेशन पहुंचा। उस दौर में छोटी लाइन से ट्रेन संचालित होती थी। तीन दिन में दर्जनभर ट्रेनों से पाकिस्तान के सैनिकों को ले जाया गया। बोगियों के दरवाजों पर सीकड़ लगे होते। लंबे चौड़े पाकिस्तानी सैनिक ट्रेनों के अंदर बैठे रहते थे। उन्हें देखकर शहरवासी जमकर नारेबाजी करते। रेलवे स्टेशन पर तीन दिनों तक मेल जैसा नजारा रहा। इस दौरान स्कूल कॉलेजों में पढ़ाई न के बराबर हुई। रोजाना ट्रेनों के आने से घंटे भर पहले से ही लोग स्टेशन और पटरियों के किनारे जुटने लगते। सुरक्षा में पुलिस मौजूद रहती। यह ट्रेनें रेलवे स्टेशन पर रूकती। यहां पर पाकिस्तानी सैनिकों को पानी पिलाया जाता। बोगियों में पानी भरा जाता। उन्हें भोजन व नाश्ता दिया जाता। बोगियों के अंदर से सैनिक शहरवासियों को निहारते। इसके बाद फिर ट्रेन अगले गंतव्य को रवाना हो जाती। यह नजारा आंखों से कभी भूलता नहीं है।
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