बायोगैस प्लांट से उत्पादन 30 केवी, खर्च हो पा रही महज 5 किलोवाट बिजली
Kushinagar News - कुशीनगर के खड्डा ब्लॉक के कोप जंगल पशु आश्रय केंद्र में 49 लाख की लागत से बने बायोगैस प्लांट से प्रतिदिन 30 किलोवाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। लेकिन केंद्र की बिजली की खपत केवल 5 से 6 किलोवाट है।...

कुशीनगर। खड्डा ब्लॉक के कोप जंगल पशु आश्रय केंद्र में स्थित पशु आश्रय केंद्र में 49 लाख की लागत से गोबर गैस प्लांट का निर्माण पूरा होने के बाद उससे 30 केवी बिजली का उत्पादन हो रहा है। इस पशु आश्रय केंद्र में बिजली की खपत मात्र 5 केवी ही हो पा रही है। पंचायती राज विभाग की मजबूरी यह है कि वह बिजली कहां खर्च करे, समझ नहीं आ रहा है। यह केन्द्र गांव की आबादी से काफी दूरी है। गांव में भी बिजली सप्लाई पहुंचाने में कठिनाई होगी। विभागीय अधिकारी अन्य उपायों की तलाश में जुटे हैं। जिले के पहले बायोगैस प्लांट का निर्माण खड्डा के कोप जंगल पशु आश्रय केंद्र में कराया गया है।
यहां रहने वाले पशुओं के गोबर का भी उपयोग करते हुये बिजली उत्पादन किया जा सके। यहां लगभग 654 पशु हैं, जिनके गोबर से प्रतिदिन 235.44 घन मीटर बायो गैस उत्पादित किया जाता है। प्रतिदिन 30 किलोवाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। पशु आश्रय केंद्र में इस बिजली से लाइट, पंखे, मोटर, कूलर आदि चलाने के लिये किया जा रहा है। लेकिन इसमें भी मात्र 5 से 6 किलोवाट बिजली ही खर्च हो पा रही है। करीब 25 केवी बिजली की अधिकता होने पर भी उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। पहले अधिकारियों ने सोचा था कि गांव में बिजली की सप्लाई दे देंगे मगर गांव इतना देर है कि वहां तक कोपजंगल में स्थित पशु आश्रय केंद्र आबादी से काफी दूर है कि वहां तक बिजली के पोल तार पहुंचाने में काफी अधिक खर्च होगा। बजट कहां से आएगा। विभाग अब अन्य उपाय तलाश रहा है। डीपीआरओ- कुशीनगर आलोक कुमार प्रियदर्शी ने कहा, इस दिशा में समाधान खोजने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे बायोगैस प्लांट की पूरी क्षमता का उपयोग होने के साथ ही हरे ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा मिल सके। आबादी दूर होने और आस पास कोई बाजार या उद्योग नहीं होने से दिक्कत है। शीघ्र ही कोई रास्ता निकाल लिया जायेगा, जिससें लोगों को भी इसका लाभ मिल सके। पशु आश्रय केंद्र आबादी से दूर होने के वजह से हो रही दिक्कत बायोगैस प्लांट से बिजली उत्पादन इन दिनों विभागीय परेशानी का कारण बना हुआ है। प्लांट से प्रतिदिन लगभग 30 किलोवॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है, लेकिन इसका उपयोग मात्र 5 से 6 किलोवॉट तक सीमित है। अतिरिक्त बिजली का उपयोग न हो पाने के कारण जिम्मेदार अधिकारी भी असमंजस में हैं कि इस बची हुई बिजली का क्या किया जाये। इस समस्या की मुख्य वजह पशु आश्रय केंद्र का आबादी से दूर स्थित होना है।
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