जर्जर भवनों में संचालित हो रहे राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय
Kushinagar News - कुशीनगर के विशुनपुरा क्षेत्र में आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की स्थिति बेहद खराब है। जर्जर भवनों में बैठना खतरनाक है, और दीवारों से विषैले सांप निकलने की घटनाएं आम हैं। डॉक्टर और फार्मासिस्टों ने इसकी...

कुशीनगर। विशुनपुरा क्षेत्र में संचालित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालयों की स्थिति दिन प्रतिदिन बद्तर होती जा रही है। कई जगह भवन और उनके छत इतने जर्जर हो चुके हैं कि उनमें बैठने पर भी डर लगता है। चिकित्सालय में तैनात डॉक्टर और फार्मासिस्ट बताते हैं कि 50-60 साल पुराने भवन हैं, जो जर्जर हालत में हैं। दीवारों से प्रायः विषैले सांप निकलते हैं। डर के मारे भवन से बाहर बैठकर मरीजों का इलाज करना पड़ता है। विशुनपुरा क्षेत्र में संचालित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय सिसवा गोइती तथा पड़री पिपरपाती के भवन इतने जर्जर हो गए हैं कि विभाग में तैनात कर्मचारी या डॉक्टर उसमें बैठने से भी डरते हैं।
भवन की दीवारों में दरारें पड़ गई हैं तथा कभी कभी छत से प्लास्टर और ईंटें भी नीचे गिरती हैं। इतना ही नहीं दीवारों से विषैले सांप प्राय: निकलते रहते हैं। पड़री पिपरपाती स्थित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में तैनात डॉ. समीर गुप्ता ने बताया कि चिकित्सालय की भवन बहुत जर्जर हो चुकी है। कई बार उसकी मरम्मत अपने वेतन के पैसे से कराई गई है। चिकित्सालय परिसर के सामने बरसात में जलभराव हो जाता है। उन्होंने बताया कि अपने पैसे से मिट्टी भी डलवाए हैं। सिसवा गोइती स्थित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में तैनात फार्मासिस्ट देवेंद्र सिंह ने बताया कि यहां विभाग का अपना भवन नहीं बना है। यह अस्पताल प्राथमिक विद्यालय में संचालित हो रहा है, जो 50 वर्ष पूर्व का बना हुआ है। उसकी छत और दीवारें बहुत जर्जर हो चुकी हैं और उसमें बैठने पर हमेशा भवन गिरने का भय बना रहता है। इसकी जानकारी विभाग के उच्चाधिकारियों को दी गई है, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्राम पंचायत पड़री पिपरपाती के निवासी राजेश गिरी ने बताया कि जहां एक तरफ वर्तमान सरकार भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण का दावा कर रही है, वहीं भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति वाले आयुर्वेदिक अस्पतालों की स्थिति बहुत दयनीय अवस्था में है। इसकी सूचना कई बार विभागीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भी दी गई है, परंतु शासन द्वारा इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
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