खतौनी में नाम न होने के बाद भी यूपीडा को दे दी गई जमीन
Lucknow News - लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान कई अनियमितताएँ सामने आई हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एससी व्यक्ति की अनुमति के बिना बैनामा किया गया और कई लोगों की जमीनें बेची गईं जिनके नाम...

- जांच में गंभीर अनियमितता मानते हुए रिपोर्ट में किया है उल्लेख - एक एससी व्यक्ति के अनुमति के बिना ही बैनामा करा दिया गया
लखनऊ, विशेष संवाददाता
लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान हुई गड़बड़ियां प्याज के छिलके की तरह परत-दर-परत खुलती जा रही हैं। राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष डा. रजनीश दुबे की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि यूपीडा को ऐसे लोगों की जमीनें भी बेच दी गईं, जिनके खतौनी में नाम तक नहीं थे। जांच रिपोर्ट में इसके लिए तत्कालीन एडीएम (भू/आ) को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए उनके मिलीभगत की बात कही गई है।
डिफेंस कॉरिडोर के लिए जब जमीन ली गई उस समय लखनऊ में डीएम के पद पर अभिषेक प्रकाश तैनात रहे। जमीन लेने और मुआवजा दिलाने के नाम पर गड़बड़ियों का खूब खुलासा हुआ। इसकी शिकायत मंडलायुक्त होने के साथ मामला कोर्ट तक गया। कोर्ट के निर्देश पर राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित जांच कमेटी ने पूरे मामले का अध्ययन और तथ्यों का परीक्षण किया। इसके आधार पर 83 पन्ने की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करते हुए सौंपी गई है।
राजस्व परिषद इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए संस्तुति की है। इससे माना जा रहा है कि जल्द ही कई और अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपीडा को जमीन विक्रय किये जाते समय नौ व्यक्तियों के नाम खतौनियों में उपलब्ध नहीं थे, जो एक गंभीर अनियमितता है। इसके अतिरिक्त एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने बिना अनुमति यूपीडा के पक्ष में बैनामा किया। आठ अनुसूचित जाति के व्यक्तियों द्वारा बिना अनुमति के एक अन्य के पक्ष में बैनाम कर दिया और उन बैनामाकर्ताओं ने यूपीडा के पक्ष में बैनाम कर दिया।
कतिपय पट्टेदारों द्वारा असंक्रमणीय भूमिधर होने के बावजूद यूपीडा के पक्ष में बैनाम कर दिया गया। इससे स्पष्ट है कि न केवल तहसील में तैनात राजस्व अधिकारियों, जिन्होंने प्रस्ताव तैयार किया, बल्कि भूमि अध्याप्ति कार्यालय में तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा अपने दायित्वों का निवर्हन नहीं किया गया और बैनामे के समय राजस्व अभिलेखों का परीक्षण नहीं किया गया। जिन व्यक्तियों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं थे, उन्हें मुआवजे का भुगतान कर दिया गया, चूंकि कथित आवंटन पत्रावली के आधार पर मुआवजे के माध्यम से धन का दुरुपयोग योजनाबद्ध तरीके से किया गया। इसीलिए एडीएम (भू/आ) की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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