Struggles of Small Farmers in Dairy Farming Pricing Issues and Exploitation बोले बेल्हा: गांवों के दूध कलेक्शन सेंटर, सबके मानक और दाम में अंतर, Pratapgarh-kunda Hindi News - Hindustan
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बोले बेल्हा: गांवों के दूध कलेक्शन सेंटर, सबके मानक और दाम में अंतर

Pratapgarh-kunda News - छोटे किसान जिनकी आय का कोई अतिरिक्त जरिया नहीं होता, उनके लिए पशुपालन एक सहारा है। लेकिन दूध के सही दाम न मिलने के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कलेक्शन सेंटर पर दूध की गुणवत्ता को...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रतापगढ़ - कुंडाWed, 23 April 2025 03:15 PM
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बोले बेल्हा: गांवों के दूध कलेक्शन सेंटर, सबके मानक और दाम में अंतर

जिन छोटे किसानों की आय का कोई अतिरिक्त जरिया नहीं होता उनके लिए पशुपालन ही सहारा बनता है। किंतु खेती के बीच समय निकालकर पशुपालन से जो दूध का उत्पादन किसान कर रहे हैं उसका सही दाम मिलना मुश्किल हो जा रहा है। निजी कंपनियों के दूध कलेक्शन सेंटर तो जगह-जगह खुल गए हैं। लेकिन इनकी मशीन और दूध का दाम घटाने/बढ़ाने की प्रक्रिया दोनों पशुपालकों की समझ में नहीं आती। कलेक्शन सेंटर से फैट या स्नफ कम अथवा अधिक बताकर उनके दूध का दाम कम कर दिया जाता है। ऐसे किसान/पशुपालकों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से समस्या साझा करते हुए इससे निजात दिलाने की मांग की है। पशुपालन करने वाले छोटे किसानों से दूध खरीदने के लिए निजी कंपनियों ने ग्रामीण इलाकों में अपने दूध कलेक्शन सेंटर खोल रखे हैं। भीषण गर्मी, मच्छर, गोबर आदि की चिंता न कर दिनरात कड़ी मेहनत के बाद किसान दूध लेकर कलेक्शन सेंटर पर पहुंचता है तो वहां दूध की गुणवत्ता मशीन में चेक की जाती है। दूध में फैट (गाढ़ापन) और स्नफ (चिकनाई) की नाप होने के बाद दाम तय किया जाता है। किन्तु दूध का दाम तय करने की इस प्रक्रिया में किसान गड़बड़ी करने का आरोप लगा रहे हैं।

कलेक्शन सेंटर पर दूध बेचने वाले किसानों/पशुपालकों का कहना है कि फैट और स्नफ नापने वाली मशीन कई बार इतना तेजी से दूध का दाम कम करने लगती है कि उस पर संदेह होने लगता है। किन्तु संबंधित कलेक्शन सेंटर पर दूध देना बंद कर देने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। उनकी मांग है कि दूध नापने वाली मशीन की पारदर्शिता भी चेक होनी चाहिए। यदि दूध का दाम तय करने की प्रक्रिया और पारदर्शी बनाकर उसकी निगरानी और चेकिंग कराई जाए तो पशुपालकों को ऐसी धोखाधड़ी भरे शोषण से बचाया जा सकता है। इससे दूध की गुणवत्ता और उत्पादन के साथ छोटे पशुपालकों की आय भी बढ़ेगी।

दूध एक किसान का फटे लेकिन दाम सबका कटे

लंबे समय से पशुपालन से खेती का खर्च निकालने वाले लक्ष्मीशंकर मिश्र का कहना है कि दूध बेचने के लिए वे कई कलेक्शन सेंटर बदल चुके हैं। पूर्व में वह जिन कलेक्शन सेंटर पर दूध दे चुके हैं उनमें कुछ ऐसे भी हैं जो किसी एक किसान का दूध फटने पर सभी किसानों के दूध को फटा घोषित कर देते थे। जबकि जिस केन में रखा दूध खराब होता था उसी को फेंका जाता था। अन्य केन के सुरक्षित दूध को कलेक्शन एजेंट मिठाई की बड़ी दुकानों पर बेचकर कंपनी को रिपोर्ट भेज देते हैं कि सभी केन का दूध खराब हो गया था, नष्ट करा दिया गया। कंपनी को किसानों को दूध का पैसा भी नहीं देना पड़ता इसलिए अपना नुकसान न होता देख दूध का कलेक्शन सेंटर चलाने वाली कंपनियां एजेंटों की इस कारस्तानी पर निगरानी रखने में भी रुचि नहीं ले रही हैं। जबकि इससे उन सभी पशुपालकों को नुकसान हो जाता है जिनका दूध सही था। फायदा सिर्फ एजेंट को होता है। सबकुछ समझने के बाद भी पशुपालक मजबूर हैं। लक्ष्मीशंकर का कहना है कि ऐसी ठगी से प्रताड़ित किसानों ने मिलकर प्रयास किया और अपने ही बीच के अजय शुक्ल को एक कंपनी का कलेक्शन सेंटर दिलाया गया। जहां भैंस के दूध का दाम 83 रुपये लीटर तक मिलने लगा है। जबकि पहले 50 रुपये लीटर के आसपास ही दाम मिल पाता था।

मैनुअल मशीन से अधिक हो रही परेशानी

दूध नापने के लिए कई कलेक्शन सेंटर मैनुअल मशीन चलाते हैं। जबकि कुछ पर कम्प्यूटराइज्ड मशीन लगी हैं। पशुपालकों का कहना है कि मैनुअल मशीन में सेंटर संचालक बहुत मनमानी करते हैं। दूध का दाम कंपनी के मुताबिक न लगाकर अपने मुताबिक कम कर देते हैं। इससे बहुत अच्छा दूध लेकर जाने पर भी पशुपालकों को कम दाम मिल पाता है। जबकि कम्प्यूटराइज्ड मशीन से सेंटर संचालक को मनमानी करने की छूट नहीं मिल पाती। वह कंपनी के तय किए हुए रेट पर ही भुगतान करने को मजबूर हो जाता है। जबकि मैनुअल मशीन रखने वाले कई सेंटर पर दूध बेचने वाले किसान परेशान होकर चाय पान की दुकानों पर दूध पहुंचाने लगे हैं।

एक दिन में पांच से सात रुपये तक घटा देते हैं दाम

पशुपालकों का कहना है कि कई कलेक्शन सेंटर संचालक कुछ दिन तक दूध का दाम ठीक देते हैं। किंतु कुछ दिन बीतने के बाद फैट या स्नफ कम बताकर दूध का दाम कम करने लगते हैं। कम करने की गति इतनी तेज होती है कि पशुपालकों का संदेह गहरा हो जाता है। पशुपालक शम्भूनाथ शुक्ल का कहना है कि गाय या भैंस के दूध की क्वॉलिटी (फैट स्नफ आदि) धीरे-धीरे कम होता है, अचानक नहीं। स्वाभाविक रूप से यदि दूध की क्वालिटी घटती है तो एक दिन में 1 से 3 रुपये तक ही दूध का दाम कम होना चाहिए। किन्तु कई सेंटर संचालक एक दिन में पांच रुपये से भी अधिक दाम कम कर देते हैं। विरोध करने पर मशीन को पशुपालक के सामने कर देते हैं जो पशुपालक के समझ में नहीं आती। ऐसे में पशुपालक इसे अपनी किस्मत मानकर मायूस मन से घर चले जाते हैं।

आसान नहीं है मशीन की जांच कराना

दूध का फैट और स्नफ नापने वाली जिस मशीन को कई पशुपालक संदेह की नजर से देख रहे हैं उसकी जांच कराना आसान नहीं है। जानकारों की मानें पूर्व जिला अविहित अधिकारी डीपी सिंह ने बताया था कि ऐसी मशीनों की जांच कराने के लिए ऑनलाइन शिकायत करते हुए एक हजार रुपये जमा कराने पड़ते हैं। इसके बाद जांच टीम कलेक्शन सेंटर पर जाकर जांच करती है। पशुपालकों का कहना है कि यह प्रक्रिया इतनी जटिल लगती है कि इसका भी फायदा धोखाधड़ी करने वाले कलेक्शन सेंटरों को मिल रहा है।

दरअसल, इन दूध कलेक्शन सेंटरों पर ठगे जाने वाले किसान छोटे पशुपालक हैं। उनके लिए एक हजार रुपये जमा कर किसी कलेक्शन सेंटर की जांच कराने के बारे में सोचना ही आसान नहीं है। इससे पशुपालक कभी शिकायत करने की झंझट में नहीं पड़ना चाहते। वे अपना दूध देकर सीधे अपने खेती या गृहस्थी के काम में जुट जाते हैं। शिकायत, गवाही आदि के चक्कर में पड़ने के लिए उनके पास समय ही नहीं होता। इसी वजह से वे गाय के दूध के दाम से कम दाम पर भैंस का दूध बेचने के बाद भी शिकायत नहीं करते। बहुत परेशान होने पर सिर्फ इतना करते हैं कि दूसरे कलेक्शन सेंटर पर दूध बेचने लगते हैं।

कमीशन के चक्कर में जबरन बेच रहे पशुआहार

कुछ कलेक्शन सेंटर पशुपालकों के सरल और सीधे स्वभाव का फायदा उठाकर उनका दूध खरीदने के बदले उन्हें अपना पशुआहार बेच रहे हैं। दरअसल पशुआहार पर सेंटर संचालक को 20 फीसदी कमीशन मिलता है। इस कमीशन के लालच में वे पशुपालक पर पशु आहार खरीदने के लिए दबाव बनाते हैं। जो लोग पशुआहार लेने से मना करते हैं उनके दूध की गुणवत्ता कम बताने लगते हैं। दूध का दाम कम करने की धमकी देने लगते हैं। इसके बाद भी पशुपालक अपने अन्य खर्चों की दुहाई देते हुए पशुआहार खरीदने में असमर्थता जताता है तो उनके खाते से बिना बताए ही पशुआहार के रुपये काट लेते हैं। इसके बाद ही दूध के दाम का भुगतान करते हैं। इससे न चाहकर भी पशुपालकों को एक खास कंपनी का पशुआहार खरीदना पड़ जाता है। जबकि कुछ पशुपालकों का कहना है कि बाजार में उससे सस्ता और अच्छी गुणवत्ता वाला पशुआहार उपलब्ध है। ऐसे में पशुपालक का दो तरफा नुकसान होता है।

शिकायतें

1-पशुपालक को दूध का सही दाम नहीं मिल पाता।

2-मैनुअल मशीन में दूध का फैट व स्नफ मनमाना तय करने की आशंका रहती है।

3-एक पशुपालक का दूध फटने पर उस दिन सभी पशुपालकों के दूध का दाम नहीं दिया जाता।

4-पशुपालकों को स्नफ और फैट का झांसा देकर ठगी की जाती है।

5-कुछ दूध कलेक्शन सेंटर चेकिंग और निगरानी की कमी से मनमानी कर रहे हैं।

6-कुछ कलेक्शन सेंटर दूध बेचने आने वाले पशुपालकों को जबरन पशुआहार बेच रहे।

सुझाव

1-कलेक्शन सेंटर पर दूध का दाम तय करने की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए।

2-कलेक्शन सेंटर पर मैनुअल की बजाय कम्प्यूटराइज्ड मशीन लगानी चाहिए।

3-जिस केन का दूध फटे उसके अलावा सभी केन के दूध का भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

4-फैट, स्नफ आदि के प्रति पशुपालकों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम चलाने चाहिए।

5-पशुपालकों के हित में कलेक्शन सेंटर की चेकिंग और निगरानी की सटीक व्यवस्था होनी चाहिए।

6-पशुपालकों को कलेक्शन सेंटर से पशुआहार आदि खरीदने को मजबूर न किया जाए।

जरा हमारी भी सुनिए....

हम लोग बिना आधुनिक उपकरणों के परंपरागत संसाधनों से पशुपालन कर रहे हैं। लेकिन दूध बेचने के लिए उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिल पाता। दूध का सही दाम पाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। जबकि यदि दूध के सही दाम मिलने में आने वाली कठिनाइयां दूर कर दी जाएं तो यह ग्रामीण इलाके में रोजगार का अच्छा जरिया बन सकता है।

-मानसी पाल

दूध का दाम तय करने वाली मशीन की निगरानी की व्यवस्था कर दी जाए तो इससे छोटे पशुपालकों को बहुत राहत मिलेगी। उनकी पसीने की कमाई में ठगी होने की गुंजाइश कम होने से लोगों की आर्थिक दशा भी सुधरेगी। जिसका असर उन किसानों पर सीधा दिखेगा जिनको खेती के लिए उर्वरक सिंचाई आदि का इंतजाम दूध बेचकर करना होता है।

-राघव दुबे

पशुपालन छोटे किसानों का परिवार चलाने का मुख्य माध्यम है। किन्तु इसमें पशुपालकों को सही दाम मिलना मुश्किल हो जा रहा है। वे पूरी मेहनत से अच्छा दूध पैदा करने में पसीना बहा रहे हैं। किन्तु कलेक्शन सेंटर जाने पर दूध में कोई न कोई कमी बता दी जाती है। संबंधित गाय या भैंस को कीड़े की दवा खिलाने की सलाह दी जाती है। किंतु दाम फिर भी ठीक नहीं लगाते।

-तुलसी दुबे

पशुपालकों को उनकी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पा रहा है। बिचौलिए उन्हें पूरा दाम नहीं मिलने दे रहे। यदि इनकी चेकिंग कर कार्रवाई की जाए तो पशुपालकों को उनके दूध का सही दाम मिलने की राह आसान हो जाएगी। लेकिन कलेक्शन सेंटर पर चेकिंग व कार्रवाई का भय न होने से उन्हें पशुपालकों की खून पसीने की कमाई के साथ धोखाधड़ी का मौका मिल रहा है।

-लक्ष्मीशंकर मिश्र

दूध सही दाम पर बेचना कठिन कार्य हो गया है। दूध तो सभी किसान पैदा कर ले रहे हैं। परिवार का खर्च चलाने के लिए बहुत लोगों को बेचना भी पड़ रहा है। किंतु दूध का सही दाम कितने लोगों को मिल पा रहा है यह कहना बहुत मुश्किल है। यदि दूध का सही दाम दिलाने में पशुपालकों की मदद की जाए तो उनकी दशा में तेजी से सुधार आ सकता है।

-शैलेश यादव

दूध बहुत कच्चा माल होता है और छोटे पशुपालकों के पास इसे भंडार करने की सुविधा नहीं होती। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर छोटे किसान व पशुपालकों का शोषण करने का मौका बिचौलियों को मिल रहा है। यदि प्रशासन पशुपालकों के साथ हो रही मनमानी पर अंकुश लगा दे तो उन्हें बहुत बड़ी राहत मिल जाएगी। सही दाम मिलने से उनकी आय भी बढ़ जाएगी।

-विजय कुमार

पशुपालन हम लोगों के लिए गृह उद्योग जैसा है। इस समय मैने कलेक्शन सेंटर बदल लिया है। नए खुले कलेक्शन सेंटर पर मेरी भैंस का दूध 83 रुपये लीटर तक बिक रहा है। जबकि पहले कई बार इतना कम दाम मिलता था कि गाय के दूध से भी सस्ता बिकता था। दूध का सही दाम न मिलने पर पशुपालक को बहुत घाटा और तकलीफ होती है।

-सिकंदर

छोटे पशुपालकों की सिर्फ इतनी मदद कर दी जाए कि उनके दूध का दाम तय करने में धोखाधड़ी न हो सके तो दूध की इतनी अधिक मांग है कि अच्छा खासा रोजगार पैदा होने लगेगा। परिवार का खर्च लोग पशुपालन से आसानी से निकाल लेंगे। किंतु दूध का दाम तय करने में पारदर्शिता के अभाव से पशुपालकों को बहुत नुकसान हो रहा है।

-अमित मिश्र

दूध देने वाली गाय या भैंस के पेट में कीड़े होने से उसके दूध में फैट व स्नफ का बैलेंस बिगड़ सकता है। यह बात पशुपालक जानते हैं इसलिए वे समय पर कीड़े की दवा खिलाते रहते हैं। इसके बाद भी फैट व स्नफ में उतार चढ़ाव बताकर दूध का दाम कम किया जाता है तो बात समझ में नहीं आती। किन्तु पशुपालकों की पीड़ा समझने को कोई तैयार नहीं दिखता।

-मोहित

पशु डॉक्टर बताते हैं कि फैट और स्नफ में उतार-चढ़ाव की समस्या उन जानवरों में आती है जो 10 लीटर से अधिक दूध देते हैं। लेकिन कई कलेक्शन सेंटर ऐसे हैं जिनके यहां तीन चार लीटर दूध देने वाले जानवर के दूध में भी फैट व स्नफ में कमी बताकर दूध का दाम घटा दिया जाता है। किन्तु कभी ऐसे सेंटरों की न तो जांच होती है न कार्रवाई।

-बलिकरन दुबे

कलेक्शन सेंटर पर पशुपालकों के दूध का दाम निर्धारित करने वाली प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। उसकी ऑनलाइन निगरानी की इतनी सटीक व्यवस्था होनी चाहिए कि एक भी लीटर दूध के दाम में गड़बड़ी की जाए तो उसकी सूचना निगरानी तंत्र तक पहुंच जाए। या दाम तय करने की प्रक्रिया इतनी सरल की जाए कि पशुपालक उसे आसानी से समझ सके। तभी पशुपालकों के शोषण पर रोक लग पाएगी।

-शम्भूनाथ शुक्ल

इनका कहना है....

जिले के पशुपालकों और दूध विक्रेताओं की समस्या का प्राथमिकता से समाधान कराया जाएगा। इसके लिए जिला दुग्ध अधिकारी को पशुपालकों और दूध विक्रेताओं से बातचीत कर समस्या जानने और समाधान करने का निर्देश दिया जाएगा।

-शिव सहाय अवस्थी, डीएम

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