बोले सहारनपुर : आज भी मुख्यधारा से नहीं जुड़ पा रहा बागड़ी समाज
Saharanpur News - बागड़ी समाज आज भी अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। कच्चे मकानों में रहना, स्थायी रोजगार का अभाव और सरकारी योजनाओं की जानकारी का न होना उनकी मुख्य समस्याएं हैं। इसके अलावा, शिक्षा की...

बागड़ी समाज अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से घिरा हुआ है। यह समाज अब भी अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इनका मुख्य काम पारंपरिक धंधे जैसे लोहे के औजार या बर्तन बनाना हैं। कड़ी मेहनत के बावजूद आमदनी इतनी कम होती है कि जीवन यापन मुश्किल होता है। बागड़ी समाज के लोग अधिकतर कच्चे और अस्थायी घरों में रहने को मजबूर हैं, जिससे बारिश में परिवार को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। “बागड़ी समाज” जो विशेष रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के कुछ हिस्सों में रहता है। यह समाज परंपरागत रूप से मेहनती, स्वाभिमानी और ईमानदार माना जाता है। जानकारी के अनुसार सहारनपुर जिले में बागड़ी समाज की आबादी दस हजार से भी अधिक है, जो मुख्य रूप से शहरी और अर्धशहरी इलाकों में बसी हुई है।
आजादी के 75 साल बाद भी बागड़ी समाज अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से घिरा हुआ है। यह समाज अब भी अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। जिला मुख्यालय के नुमाईश कैंप, बेरी बाग, जनक नगर और मंडी समिति रोड जैसी जगहों पर इस समाज के लोग आज भी कच्चे घरों में रह रहे हैं। बागड़ी समाज के लोगों का कहना है कि समाज के अधिकतर लोग कच्चे और अस्थायी घरों में रहने को मजबूर हैं। सरकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ अभी तक बहुत से लोगों को नहीं मिला है। सुरक्षित आवास के अभाव में इनके जीवन में अस्थिरता बनी रहती है। इसके अलावा उनका कहना है कि बागड़ी समाज के युवाओं को न तो स्थायी रोजगार मिलता है, न ही स्वरोजगार के पर्याप्त साधन हैं। जो लोग पारंपरिक धंधे जैसे लोहे के औजार या बर्तन बनाने में लगे हैं, उन्हें भी आधुनिक बाजार से जोड़ने की कोई योजना नहीं है। बहुत मेहनत के बावजूद आमदनी इतनी कम होती है कि जीवन यापन मुश्किल होता है। औजार बनाने में लगी महिलाओं और पुरुषों की दिनभर की मेहनत के बदले बमुश्किल कुछ सौ रुपये मिलते हैं। बागड़ी समाज के लोग जब कोई छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक जाते हैं तो उन्हें लोन नहीं मिलता। वजह होती है-दस्तावेज की कमी, स्थायी पता न होना, या गारंटी न होना। जातीय भेदभाव भी एक अदृश्य बाधा बनता है। नतीजा ये होता है कि वह या तो महाजनों से ऊंचे ब्याज पर पैसा लेते हैं या कोई नया काम शुरू ही नहीं कर पाते।
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सरकारी योजनाओं की जानकारी का अभाव
बागड़ी समाज के लोग कहते है कि हमें तो पता ही नहीं होता कि कौन सी योजना आई, कब फार्म भरे गए और कैसे मिलता है लाभ। यह एक गंभीर समस्या है कि जानकारी के अभाव में ये समुदाय अधिकतर कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाता है। अफसरशाही, भेदभाव और सूचना के अभाव के कारण योजना का लाभ सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित रह जाता है। नतीजतन, यह समाज वहीं का वहीं खड़ा रह जाता है। यही नहीं सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता की कमी के चलते बागड़ी समाज के बच्चे आधुनिक शिक्षा से वंचित हैं। शिक्षा का स्तर एक पीढ़ी के भविष्य को तय करता है। बागड़ी समाज के बच्चे अगर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रहेंगे तो उनका आगे बढ़ना मुश्किल होगा। यही कारण है कि समाज प्राइवेट स्कूलों में आरक्षण या विशेष सुविधा की मांग कर रहा है।
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शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से वंचित
सहारनपुर में दस हजार से ज्यादा की जनसंख्या वाला यह समाज आज भी कच्चे घरों में, अस्थायी मजदूरी में और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से वंचित है। यदि इस समुदाय की समस्याओं को गंभीरता से लेकर उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें, तो यह समाज भी देश की तरक्की में कंधे से कंधा मिलाकर चल सकता है। बागड़ी समाज के लिए योजनाओं की सही जानकारी, पक्के मकान, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, आधुनिक प्रशिक्षण और स्थायी रोजगार के अवसर ही उनके लिए असली ‘विकास साबित होंगे। अब जरूरत है कि यह आवाज़ सिर्फ स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन तक पहुँचे। तभी यह मेहनतकश समाज अपना खोया हुआ सम्मान और अधिकार प्राप्त कर पाएगा।
शिकायतें
1.अधिकतर परिवार अस्थायी और कच्चे घरों में रहते हैं, जिससे बारिश, गर्मी और सर्दी में परेशानियाँ होती हैं।
2.समाज के युवाओं को स्थायी नौकरी नहीं मिलती, अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं।
3.दिनभर कड़ी मेहनत करने के बावजूद मजदूरी बहुत कम मिलती है, जिससे जीवन यापन कठिन होता है।
4.व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक से ऋण नहीं मिलता, दस्तावेजों की कमी और गारंटी की माँग बड़ी बाधा है।
5.लोगों को यह नहीं पता होता कि कौन सी योजना कब आती है और उसका लाभ कैसे लेना है।
6.युवाओं को आधुनिक कौशल और तकनीकी प्रशिक्षण नहीं मिल पाता, जिससे वे प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाते हैं।
7.सरकारी स्कूलों की शिक्षा गुणवत्ता में कमजोर है और प्राइवेट स्कूलों की फीस वहन नहीं कर सकते।
8.कई बार सामाजिक या प्रशासनिक स्तर पर जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
9.महिलाएं घरेलू कामों तक सीमित हैं, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए।
10.समाज के लोगों की स्थानीय प्रशासन, पंचायत या प्रतिनिधित्व में भागीदारी नगण्य है।
समाधान
1.प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बागड़ी समाज को प्राथमिकता दी जाए और ज़मीन के पट्टे दिए जाएं।
2.ग्राम, तहसील और जिला स्तर पर रोजगार मेले आयोजित कर स्थायी नौकरी या स्वरोजगार योजनाएं चलाई जाएं।
3.पारंपरिक कामों को बाजार से जोड़ा जाए और सरकारी स्तर पर न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाए।
4.गारंटी मुक्त, दस्तावेज़ रहित और सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने की नीति बनाई जाए।
5.सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए जागरूकता शिविर, मोबाइल वैन और सहायता केंद्र शुरू किए जाएँ।
6.आईटी, सिलाई, मोबाइल रिपेयरिंग, ब्यूटी पार्लर जैसे क्षेत्रों में फ्री ट्रेनिंग सेंटर खोले जाएं।
7.सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू की जाएं और प्राइवेट स्कूलों में आरक्षण या छात्रवृत्ति दी जाए।
8.जातिगत भेदभाव की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई हो और प्रशासनिक निगरानी बढ़ाई जाए।
9.महिलाओं के लिए सिलाई, बुनाई, घरेलू उद्योगों में ट्रेनिंग और लोन की सुविधा दी जाए।
10.बागड़ी समाज को ग्राम पंचायत, नगर निकाय और जिला विकास समितियों में प्रतिनिधित्व मिले।
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हमारी भी सुनों.....
हम सालों से कच्चे मकान में रह रहे हैं। हर मौसम में बहुत तकलीफ होती है। सरकार को चाहिए कि हमें पक्के मकान दे ताकि हमारे बच्चों को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन मिल सके। -तारा
हमें न तो योजनाओं की जानकारी होती है और न ही कोई अधिकारी हमारे पास आता है। जानकारी के अभाव में हम हर बार पीछे रह जाते हैं। सरकार को जमीनी स्तर पर जानकारी पहुंचानी चाहिए। -नीटू
हमारे समाज के युवा पढ़े-लिखे होने के बावजूद बेरोजगार हैं। उन्हें कहीं स्थायी रोजगार नहीं मिल पाता। सरकार को चाहिए कि रोजगार के अवसर बढ़ाए और हमारे युवाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाए। -सत्यवान
दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन मेहनत के बदले जो आमदनी मिलती है, उससे घर चलाना मुश्किल हो जाता है। अगर मेहनत का सही मूल्य मिले तो जीवन स्तर सुधर सकता है। -बतिया
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बहुत खराब है। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को भी प्राइवेट स्कूलों जैसी आधुनिक शिक्षा मिले, ताकि वे भी जीवन में कुछ बन सकें। -राधा
हम कई वर्षों से कच्चे घरों में रह रहे हैं। हर बार बारिश और सर्दी से घर की हालत खराब हो जाती है। हमें प्रधानमंत्री आवास योजना में शामिल किया जाना चाहिए। -कांशीराम
कई बार कोशिश की लेकिन बैंक से लोन नहीं मिला। या तो कागज़ पूरे नहीं होते या गारंटी माँगते हैं। अगर आसानी से ऋण मिले तो हम अपना छोटा कारोबार शुरू कर सकते हैं। -रानी
हमारे पास न तो रोजगार है, न ही कोई आय का निश्चित साधन। सरकार को चाहिए कि स्थानीय स्तर पर हमें काम के अवसर दे ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें। -पवन
बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है क्योंकि हमारे पास स्कूल की फीस भरने तक के पैसे नहीं होते। हमें मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुविधा चाहिए। -प्रवीण
हम महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं लेकिन हमारी मेहनत को कोई पहचान नहीं मिलती। हमें भी प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर मिलने चाहिए। -साहिबा
हम तकनीकी काम सीखना चाहते हैं लेकिन हमारे पास संसाधन नहीं हैं। सरकार अगर कंप्यूटर, मोबाइल रिपेयरिंग या अन्य ट्रेनिंग दे तो हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। -मुकेश
हर बार सुनते हैं कि योजनाएं चल रही हैं, लेकिन हमें कभी लाभ नहीं मिला। अधिकारी कभी हमारी बस्ती तक नहीं आते। यह भेदभाव नहीं रुकता तो हालात कैसे सुधरेंगे। -गौरव
हमारे समाज को नजरअंदाज किया जाता है। हम मेहनती हैं लेकिन हमारी आवाज कोई नहीं सुनता। हमें बराबरी का हक़ और सम्मान मिलना चाहिए। -मदन
बार-बार किराया देना मुश्किल हो गया है। अगर अपना पक्का मकान हो जाए तो बच्चों की पढ़ाई और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। -धर्मवीर
सरकार से अपील है कि हमारे युवाओं के लिए स्वरोजगार योजनाएं लाई जाएं। कोई दुकान खोल सकें, छोटा काम शुरू कर सकें - यही हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। -केवली राना
बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, बिजली, शौचालय भी पूरी नहीं हैं। हमारी कॉलोनी में कोई व्यवस्था नहीं है। हम भी नागरिक हैं, हमें भी यह सब मिलना चाहिए। -रिसाल
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