बोले सहारनपुर : पीएफ न मेडिकल लीव, वेतन भी बहुत कम
Saharanpur News - उच्च प्राथमिक विद्यालयों के अनुदेशकों की स्थिति दयनीय है। उन्हें 9000 रुपये मानदेय मिलता है, लेकिन नौकरी स्थायी नहीं है। 11 महीने काम करने के बाद भी कोई सुविधा नहीं। महंगाई के बढ़ने के बावजूद मानदेय...
उच्च प्राथमिक विद्यालयों में फल संरक्षण, कला, खे ल समेत अनेक विधाओं की शिक्षा देने के लिए अनुदेशकों की नियुक्ति की गई है। सरकार इनसे 11 महीने काम लेती है। एक महीने ये बेरोजगार रहते हैं। 9000 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता है। पक्की नौकरी न होने के चलते किसी तरह की सुविधा नहीं मिलती है। कहीं भी अतिरिक्त कर्मचारी की आवश्यकता पड़ने पर अनुदेशकों की ड्यूटी लगा दी जाती है। एक दशक से अधिक समय तक सेवा देने के बावजूद इन्हें कर्मचारी भविष्य निधि की सुविधा नहीं मिल रही है। इससे अनुदेशक अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत संचालित जिले के उच्च प्राथमिक परिषदीय विद्यालयों में करीब 300 अनुदेशक कार्यरत हैं।
इनका आरोप है कि कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा की गारंटी देने वाली सरकार इनके भविष्य को लेकर गंभीर नहीं है। मानदेय भी इतना कम है कि दो जून की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई संकट में है। संगठन अध्यक्ष राकेश पंवार बताते हैं कि अनुदेशकों की तैनाती सात हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय पर वर्ष 2013 में हुई थी। 2015 में मानदेय बढ़ाकर 8470 रुपये कर दिया। 2017 में मानदेय पुन: घटाकर सात हजार रुपये कर दिया। इतना नहीं दो वर्ष में हर महीने मिली अतिरिक्त 1470 रुपये की कटौती भी की गई। इसके लिए 2018 में मार्च से लेकर दिसंबर तक हर महीने मानदेय से कटौती कर रिकवर कर लिया। अनुदेशक जितेंद्र पंवार ने बताया कि सरकार ने 2022 में मानदेय बढ़ाकर नौ हजार रुपये कर दिया। इससे कुछ खास लाभ नहीं हुआ। अनुदेशकों के समायोजन और पक्की नौकरी की मांग नहीं सुनी गई। अजीत यादव कहते हैं कि अन्य राज्यों में अनुदेशकों का समायोजन हो गया पर उत्तर प्रदेश में हमारी नहीं सुनी गई। मनोज कुमार का कहना है कि हम पूरे समय काम करते हैं, पर हमें अंशकालिक अनुदेशक नाम दिया गया। वहीं शिक्षामित्रों के साथ अंशकालिक शब्द नहीं जोड़ा गया। हम दोनों ही मानदेय पर कार्यरत हैं। यह भेदभाव हमें कष्ट पहुंचाता हैं। हिमानी उपाध्याय कहती हैं कि अनुदेशकों की मांग पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। यह काफी चिंताजनक है। कई एकल और शिक्षक विहीन विद्यालयों को अनुदेशक ही संचालित कर रहे हैं। इनमें पठन-पाठन से लेकर समस्त कार्य अनुदेशक करते हैं। इनका आरोप है कि प्रभारी प्रधानाध्यापक केवल हस्ताक्षर करने आते हैं। इतना कुछ करने के बावजूद हम लोगों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। नवीन कुमार ने अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा कि विगत एक दशक में महंगाई काफी बढ़ गई है लेकिन हमारे मानदेय में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई। सिर्फ 11 महीने की नौकरी है। ऐसे में घर खर्च चलाना मुश्किल है। --- अकुशल श्रमिकों के बराबर न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता संगठन अध्यक्ष राकेश पंवार ने बताया कि सरकार को 2017 में उच्च न्यायालय ने 17000 रुपये मानदेय देने का आदेश दिया था। साथ में नौ प्रतिशत ब्याज भी देने को कहा। सरकार ने बढ़ा मानदेय नहीं दिया तो अनुदेशकों ने डबल बेंच में अपील की। वहां से सरकार हार गई। न्यायालय ने कहा कि कम से कम एक साल तक 17000 रुपये मानदेय सरकार अनुदेशकों को दे। सरकार इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में चली गई। मामला वहीं अटका हुआ है। हमें अकुशल श्रमिकों के बराबर न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल रहा है। उनका कहना है महिला अनुदेशकों की नियुक्ति काफी दूर की गई है। उनका पूरा मानदेय किराए में ही खर्च हो जाता है। अगर स्कूल के पास घर किराए पर लें तो मानदेय सिर्फ किराए भर का होता है। ----------------------------------------------------------------------- शिकायतें और सुझाव 1. अनुदेशक को महज 10 सीएल मिलता है। शिक्षकों को 14 सीएल मिलती है। 2. सर्दी और गर्मी में 15-15 दिन की छुट्टी का मानदेय काट लिया जाता है। हालांकि ऑफ द रिकार्ड इन दिनों में काम करना पड़ता है। 3. महिला अनुदेशकों को चाइल्ड केयर लीव नहीं मिलती है। न ही किसी अनुदेशक को मेडिकल लीव की सुविधा है। 4. 2018 में अखिलेश सरकार द्वारा बढ़ाए गए मानदेय की रिकवरी कर ली गई। 5. ईपीएफ की सुविधा नहीं मिलती है। विभाग इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। समाधान 1. अन्य राज्यों की तरह यहां भी सरकार अनुदेशकों का समायोजन कर नौकरी पक्की करे। 2. अनुदेशकों का समायोजन होने तक न्यूनतम मानदेय 28 हजार रुपये प्रतिमाह किया जाए। 3. अनुदेशकों को भी अंतरजनपदीय स्थानांतरण की सुविधा मिलनी चाहिए। 4. शासन की अन्य योजनाओं के साथ ही अनुदेशकों का भी आयुष्मान कार्ड बनाया जाए। 5. अनुदेशकों से वर्ष 2018 में रिकवर की गई रकम को वापस की जाए। -------------------------------------------------- हमारी भी सुनों 1.सरकार ने हमारी मेहनत और संघर्ष को कभी गंभीरता से नहीं लिया। मानदेय इतना कम है कि परिवार पालना मुश्किल है। हाईकोर्ट का आदेश भी नहीं मान रही सरकार और अब सुप्रीम कोर्ट में जाकर हमारे हितों के खिलाफ लड़ रही है। ये नाइंसाफी है। -राकेश पंवार 2.हमसे साल के 11 महीने पूरे समय काम लिया जाता है लेकिन नाम दिया गया अंशकालिक। कोई सुविधा नहीं, न ही स्थायी करने की बात सुनी जा रही है। अब हमारी सहनशीलता खत्म हो रही है, सरकार को हमारी पीड़ा समझनी होगी। -पीयूष वत्स 3.सरकार हमें अकुशल मजदूर से भी कम वेतन दे रही है। इतनी कम आय में जीवन यापन करना बेहद कठिन है। हम बच्चों को पूरी निष्ठा से पढ़ाते हैं, लेकिन सरकार हमें केवल औपचारिकता मान रही है। -मोनू पंवार 4.हमारी मेहनत का मूल्यांकन कभी नहीं हुआ। पढ़ाई से लेकर स्कूल के पूरे संचालन तक हम ही संभालते हैं, फिर भी स्थायीत्व नहीं। मानदेय भी महज 9000 रुपये। यह सरासर शोषण है। -विकास कुमार 5.सरकार ने 2018 में जो राशि रिकवर की, वो पूरी तरह गलत था। हमारी पहले से ही कम आय में से पैसा काट लिया गया। इतनी महंगाई में ये असंवेदनशीलता दर्द देती है। -विकास कुमार 6.हमसे पूरा काम लिया जाता है लेकिन छुट्टियों का पैसा काट लिया जाता है। न कोई मेडिकल लीव, न चाइल्ड केयर लीव। ये कैसा अन्याय है? हमें भी शिक्षक जैसा दर्जा मिलना चाहिए। -सत्यपाल सिंह 7.महिला अनुदेशकों की स्थिति और भी दयनीय है। दूर-दराज के स्कूलों में तैनाती, सारा मानदेय किराए में चला जाता है। ऊपर से कोई स्वास्थ्य या मातृत्व सुविधा नहीं। ये अन्याय है। -रीतू शर्मा 8.हम विद्यालयों को संभाल रहे हैं, बच्चों को पढ़ा रहे हैं, फिर भी हमारी कोई सुनवाई नहीं। सरकार की नजर में हम जैसे अदृश्य हैं। हमारी मांगें जायज़ हैं, इन्हें तुरंत माना जाए। -हिमानी उपाध्याय 9.इतने सालों की सेवा के बाद भी हमें कोई सुरक्षा नहीं मिली। न ईपीएफ, न स्थायीत्व। सरकार का रवैया हमें हतोत्साहित कर रहा है। हम बस न्याय की मांग कर रहे हैं। -नीतू पंवार 10.हमें अंशकालिक कहा गया जबकि हम पूरे समय काम करते हैं। शिक्षामित्रों को अंशकालिक नहीं माना गया, फिर हमारे साथ भेदभाव क्यों? हम बराबरी की मांग कर रहे हैं। -मनोज कुमार 11.महंगाई पिछले 10 साल में दोगुनी हो गई, लेकिन हमारे मानदेय में मामूली वृद्धि हुई। ऐसे में गुजारा करना बेहद कठिन है। सरकार को हमारी स्थिति का संज्ञान लेना चाहिए। -नवीन कुमार 12.हम शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन खुद असुरक्षित हैं। स्थायी नौकरी और सम्मानजनक वेतन हमारी जरूरत है, ये कोई भीख नहीं, हमारा अधिकार है। -मनोज कुमार 13.जब हाईकोर्ट ने भी कहा कि 17000 मानदेय मिलना चाहिए, फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों गई? इससे साफ है कि सरकार हमारे प्रति संवेदनशील नहीं है। हमें भी जीने का हक चाहिए। -अजय पंवार 14.महिला अनुदेशकों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं है। न तो सुरक्षा, न लीव। घर और स्कूल दोनों संभालना पड़ता है। सरकार को हमारे मुद्दों को गंभीरता से लेना चाहिए। -नेहा शर्मा 15.सिर्फ 10 सीएल मिलती है जबकि हम लगातार स्कूल में सेवाएं दे रहे हैं। हमारी मेहनत और समर्पण का ऐसा अपमान नहीं होना चाहिए। हम शिक्षक से कम नहीं हैं। -अरूणा 16.मानदेय इतना कम है कि बच्चों की पढ़ाई, घर खर्च चलाना, इलाज करवाना-सब असंभव हो गया है। यदि सरकार समायोजन नहीं कर सकती तो कम से कम मानदेय तो बढ़ाए। -सोनिका सैनी 17.हमारा कोई ट्रांसफर नहीं होता, जहां तैनात हैं वहां फंसे हैं। कोई विकल्प नहीं है। अगर सरकार शिक्षकों की तरह हमें स्थानांतरण की सुविधा दे तो थोड़ी राहत मिले। -सुनीता रुहेला 18.हमने उम्मीद की थी कि शिक्षा विभाग में सेवा देकर कुछ स्थायीत्व मिलेगा, लेकिन 10 साल बाद भी हम वहीं के वहीं हैं। सरकार को चाहिए कि समायोजन करे और वेतनमान बढ़ाए। -पंकज सिंह
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