Uttar Pradesh Transport Department Contract Drivers Demand Regularization and Better Facilities बोले सहारनपुर : कम मानदेय से संविदा चालकों की जिंदगी का सफर हुआ महंगा, Saharanpur Hindi News - Hindustan
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बोले सहारनपुर : कम मानदेय से संविदा चालकों की जिंदगी का सफर हुआ महंगा

Saharanpur News - उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में संविदा चालक-परिचालकों की नियमितीकरण की मांग लंबे समय से की जा रही है। स्वास्थ्य बीमा और उचित मानदेय की कमी के कारण इन कर्मचारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरTue, 22 April 2025 07:09 PM
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बोले सहारनपुर : कम मानदेय से संविदा चालकों की जिंदगी का सफर हुआ महंगा

उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग की हालत में सुधार की मांग अर्से से चली आ रही है। वहीं संविदा चालक-परिचालकों के नियमितीकरण की मांग आज तक पूरी नहीं हो सकी है। स्वास्थ्य बीमा, उचित मानदेय न मिलने समेत कई सुविधाओं का लाभ न मिलने के कारण संविदा चालकों-परिचालकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निगम कर्मचारी भी सुविधाओं को लेकर नाखुश हैं। सभी अपनी मांगों को उच्च अधिकारियों के सामने कई बार उठा चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम में कई साल से दोहरे नियमों से कर्मचारी परेशान हैं। एक तरफ कर्मचारी रेगुलर हैं तो दूसरी तरफ संविदा पर काम करने वाले हैं। बड़ी तादाद रोडवेज में संविदा बस चालक व परिचालकों की है। ये लंबे समय से सरकार से सुविधाएं व नियमतीकरण की मांग अरसे से करते आ रहे हैं। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने यात्रियों को परिवहन सुविधाओं को तो रफ्तार दी पर उसे संचालित करने वाले कर्मियों की सुविधाओं को भूल गया। बस संचालन की रीढ़ बने कर्मचारी न तो रेगुलर बन पाए और न ही अपने मानदेय में वृद्धि कर सके। प्रति किमी के हिसाब से भुगतान पाने वाले बस चालक और परिचालक अब जैसे-तैसे अपनी जीविका चला रहे हैं। उनका बड़ा दर्द यह कि लोड फैक्टर(कम सवारी) पर भी उनके भुगतान में से कटौती कर ली जाती है।

कम वेतन की कहानी, हर दिन एक नई परेशानी

रोडवेज के संविदा चालक-परिचालकों को मात्र 2.02 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान किया जाता है। सोचिए, अगर किसी दिन सवारी कम हो, बस का रूट छोटा हो या गाड़ी तकनीकी खराबी के कारण न चल स, तो उनका मेहनताना भी घट जाता है। इसे ही लोड फैक्टर कहा जाता है। इसके चलते कई बार ऐसे हालात आते हैं कि दिन भर की मेहनत के बाद जेब में कुछ सौ रुपये ही आते हैं। इतना ही नहीं, यदि किसी कारणवश दुर्घटना हो जाए तो न सिर्फ मानसिक तनाव बल्कि आर्थिक भरपाई की तलवार भी इन संविदा कर्मचारियों पर ही लटकती है। बस क्षतिग्रस्त हो जाए तो मुआवज़ा तक इन्हीं से वसूला जाता है। संविदा कर्मचारी कई वर्षों से मांग कर रहे हैं कि उनकी नियुक्ति नियमित हो। उनका कहना है कि जब हम स्थायी कर्मचारी जैसा ही काम करते हैं तो मानदेय भी बराबर होना चाहिए। समान कार्य, समान वेतन की मांग आज भी कागजों में सिमटी हुई है।

बढ़तीं उम्मीदें और घटतीं सुविधाएं

उत्तर प्रदेश सरकार ने बेशक यात्रियों को सुगम यात्रा देने की दिशा में कई कदम उठाए हों पर इन यात्राओं को संभव बनाने वाले कर्मचारियों की तकलीफों की ओर शायद ही किसी ने ध्यान दिया। रोडवेज प्रबंधन द्वारा भेजे गए प्रस्ताव के अनुसार सहारनपुर रीजन को चार दर्जन से अधिक नई बसें मिलने की संभावना है। इसका सीधा अर्थ है-अधिक सेवाएं और अधिक संचालन। लेकिन सवाल यह उठता है-क्या इन सेवाओं को चलाने के लिए मौजूद कर्मचारियों को बेहतर सुविधा, वेतन और सम्मान मिलेगा? नए बसों के आने से जहां यात्रियों को राहत मिलने की उम्मीद है, वहीं चालकों और परिचालकों की संख्या में भी वृद्धि होगी। संविदा व्यवस्था के चलते ये नए कर्मचारी भी उसी दुश्चक्र का हिस्सा बनेंगे, जिसमें आज के कर्मी फंसे हुए हैं।

डग्गेमारी से रोडवेज परेशान

एक और बड़ी समस्या जिससे रोडवेज को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है -डग्गेमारी। डग्गेमार वाहन, यानी अवैध रूप से चलने वाली निजी बसें जो न तो टैक्स देती हैं, न ही नियमों का पालन करती हैं, मगर यात्रियों को लुभावनी योजनाओं के ज़रिए अपनी ओर खींच लेती हैं। इन वाहनों की मौजूदगी से संविदा चालकों को मिलने वाला किलोमीटर घट जाता है और नतीजतन उनकी आमदनी पर चोट पड़ती है। संविदा कर्मियों का कहना है कि-हमारे हिस्से की सवारी छीन ली जाती है और फिर हमसे ही सवाल पूछे जाते हैं कि किलोमीटर कम क्यों हुआ?

नई बसें और मिलें तो सफर हो आसान

नई रोडवेज बसों की संख्या कम होने से यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पुरानी बसें अधिकतर खटारा होने की कगार पर है। नई बसें मिलेगी तो रोडवेज बसों का बेहतर संचालन होगा। उत्तर प्रदेश परिवहन मुख्यालय से मांगे गए प्रस्ताव को रोडवेज प्रबंधन ने भेजा है। रोडवेज अधिकारियों की मानें तो सहारनपुर रीजन को चार दर्जन से अधिक बसें मिलने का प्रस्ताव है। ये बसें आने वाले कुछ समय में सहारनपुर परिक्षेत्र में दौड़ती नजर आएंगी। खटारा और आयु पूरी कर चुकी बसों को नीलामी प्रक्रिया के तहत हटाने की प्रक्रिया जारी है। फिलहाल रोडवेज में बसों का बेड़ा बढ़ने से नई बसों के लिए कंडक्टर और चालकों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है।

सुविधाओं में सुधार की दरकार

पहले रोडवेज की छवि टूटे शीशे व खस्ताहाल बसों को लेकर थी। पिछले सालों में इस स्थिति में फर्क आया है। कंडम बस और उम्र पूरी कर चुकी बसों को कंडम घोषित कर बदला गया है। दिल्ली जाने वाली बसों के प्रदूषण पर एनजीटी ने जुर्माने की भी कार्यवाही की पर अब हालात बदले हैं। सहारनपुर रीजन को भी नई बसें रोडवेज परिवहन मुख्यालय ने आवंटित की गई हैं। निगम का कहना है कि नई बसों के संचालन से यात्री सुविधाएं भी बढ़ी हैं। बस की हालत से आरामदायक सफर हुआ है।

-दर्द भी है, इरादा भी है

इन तमाम परेशानियों के बावजूद, संविदा चालक-परिचालकों का इरादा मजबूत है। रोजाना सुबह जल्दी उठकर यूनिफॉर्म पहनते हैं, गाड़ी की सफाई करते हैं, स्टीयरिंग संभालते हैं और परिचालक टिकट मशीन के साथ मुस्कान लेकर यात्रियों का स्वागत करता है। इनकी नियमित नियुक्ति, समान कार्य के लिए समान वेतन, लोड फैक्टर का समुचित समाधान और वेतन में सुधार की मांग कर रहे है।

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शिकायतें

1.कम वेतन के कारण आर्थिक स्थिति का संकट

2.नियमितीकरण न होने से भविष्य असुरक्षित

3.बस हादसे की स्थिति में संविदा कर्मचारियों से क्षतिपूर्ति वसूली

4.लोड फैक्टर (कम सवारी) पर वेतन में कटौती

5.डग्गेमार वाहनों से यात्री को रोजवेज में सफर कराने में समस्या

6.पुरानी बसों से जान का खतरा और संचालन में बाधा

7.आयुष्मान योजना जैसी सुविधाओं का अभाव

8.लंबी ड्यूटी के बाद आराम और रोटेशन का अभाव

9.यूनियन प्रतनिधित्व की अधिकारी नहीं सुनते

समाधान

1.न्यूनतम मासिक वेतन तय किया जाए, जो सम्मानजनक जीवन यापन हेतु पर्याप्त हो।

2.वर्षों से सेवाएं दे रहे संविदा कर्मचारियों को बिना परीक्षा सीधे नियमित किया जाए।

3.आर्थिक मुआवज़े की स्थिति पारदर्शी हो, जिसमें भरपाई का भार कर्मचारियों पर न हो।

4.लोड फैक्टर आधारित कटौती को समाप्त कर बेस पेमेंट की गारंटी दी जाए।

5.डग्गेमार वाहनों पर सख्ती हो और अवैध संचालन पर जुर्माना लगाया जाए।

6.पुरानी बसों को चरणबद्ध हटाकर नई बसों का संचालन हो और नियमित निरीक्षण अनिवार्य किया जाए।

7.संविदा कर्मचारियों को चिकित्सा सुविधा और भविष्य निधि जैसी सामाजिक सुरक्षा मिले।

8.नियमित प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन हो, जिससे कर्मचारियों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाया जा सके।

9.लंबी दूरी की ड्यूटी के बाद विश्राम की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, विशेषकर नाइट शिफ्ट्स के बाद।

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हमारी भी सुनों

संविदा कर्मचारियों को दुर्घटना बीमा का आसानी से लाभ मिलना चाहिए। कई कर्मचारी बिना किसी लाभ के आज भी वंचित है। हर दिन सड़क पर खतरा होता है, लेकिन अगर हादसा हो जाए तो कोई सहारा नहीं मिलता। -नरेश कुमार, परिचालक

सरकार को चाहिए कि प्रति किलोमीटर की दर की जगह निश्चित मासिक वेतन दे, ताकि हम अपने परिवार की रोजमर्रा की ज़रूरतें बिना तनाव पूरी कर सकें। मेहनत का मूल्य तय होना चाहिए। -बिलाल, चालक

हमारे साथ दुर्घटनाओं में बस की भरपाई करवाना पूरी तरह अन्याय है। इससे मानसिक दबाव रहता है और गाड़ी चलाते समय डर बना रहता है। यह नियम तत्काल खत्म होना चाहिए। -कंवरपाल, चालक

नई बसों की संख्या बढ़ाने के साथ ही कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ानी चाहिए और उन्हें स्थायी करना चाहिए। ज्यादा सेवाएं देने के लिए मजबूत मानव संसाधन जरूरी है। -अंकित राणा, चालक

हर रूट पर तय मानक किलोमीटर का भुगतान सुनिश्चित हो। लोड फैक्टर के नाम पर पैसे काटना शोषण है। यात्रियों की संख्या हमारे नियंत्रण में नहीं होती। -नेपाल सिंह, चालक

नियमित कर्मचारियों की तरह हम भी समान कार्य करते हैं, तो वेतन में भेदभाव क्यों? ‘समान कार्य, समान वेतन की नीति लागू होनी चाहिए। अब बदलाव का समय आ गया है। -किरणपाल, चालक

परिचालकों को टिकट मशीन की खराबी के समय यात्रियों से सवालों का सामना करना पड़ता है। तकनीकी संसाधनों की नियमित जांच और सुधार की व्यवस्था होनी चाहिए। -दीपक, परिचालक

बस डिपो में अवैध बसों की पार्किंग से रोडवेज बसों को जगह नहीं मिलती। प्रशासन को इन डग्गेमार वाहनों पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए ताकि संचालन बाधित न हो। -नितिन रावत, परिचालक

संविदा कर्मियों की यूनियन को नहीं सुना जाता है। वह सरकार और प्रशासन से सीधा संवाद कर समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करते है। लेकिन कोई नहीं सुनता। -संदीप, परिचालक

रूट ड्यूटी के हिसाब से आराम का भी प्रावधान होना चाहिए। लम्बी दूरी के बाद बिना विश्राम अगली ड्यूटी देना स्वास्थ्य पर असर डालता है। इस पर ध्यान देना जरूरी है। -सुधीर, चालक

संविदा कर्मचारियों के आयुष्मान कार्ड बनने चाहिए। यह सिर्फ भलाई नहीं बल्कि आवश्यक है, जिससे कर्मचारी आत्मविश्वास से कार्य कर सके। वह काफी लाभदायक होगा।-राजेश कुमार, परिचालक

डिजिटल पेमेंट और ई-टिकट की दिशा में ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ताकि परिचालक नई तकनीकों को आसानी से अपना सकें। इससे यात्रियों को भी सुविधा मिलेगी। -पंकज, परिचालक

जो कर्मचारी काफी समय से संविदा पर सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें बिना परीक्षा के रेगुलर किया जाए। अनुभव को नजरअंदाज करना इंसाफ नहीं है। इससे परिवहन को भी लाभ होगा। -विरेंद्र, चालक

अक्सर बसें पुरानी और खराब हालत में होती हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा रहता है। समय पर मरम्मत और सेवा से ही दुर्घटनाएं रोकी जा सकती हैं। -सुनील, चालक

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