Handloom and Powerloom Industry in Santkabirnagar Faces Decline Due to Lack of Resources उपेक्षा के कारण जिले में दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग, पलायन को मजबूर बुनकर, Santkabir-nagar Hindi News - Hindustan
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उपेक्षा के कारण जिले में दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग, पलायन को मजबूर बुनकर

Santkabir-nagar News - संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले को कपड़ा बुनाई केन्द्र के रूप में पहचान दिलाने

Newswrap हिन्दुस्तान, संतकबीरनगरThu, 24 April 2025 01:11 PM
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उपेक्षा के कारण जिले में दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग, पलायन को मजबूर बुनकर

संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले को कपड़ा बुनाई केन्द्र के रूप में पहचान दिलाने वाला हथकरघा व पावरलूम उद्योग दम तोड़ रहा है। कच्चे माल की कमी व सुविधाओं के अभाव से अब एक दायरे में सिमट गया है। इस उद्योग को जिंदा रखने के लिए सुविधाओं की मांग होती रही पर आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। उद्योग को जिंदा रखने के लिए बुनकरों को सुविधाएं धरातल पर उतारने वाले भागीरथ का इंतजार है। अभी हाल यही है कि आश्वासनों और वायदों की सुविधा पर बुनकर अपना ताना-बाना बुनने पर मजबूर हैं। वर्तमान समय में कई हुनरमंद हाथ उद्यमी से मजदूर बन चुके हैं। पावरलूम की मशीनें धूल फांक रही हैं। जो परिवार इस कार्य को कर भी रहे हैं वे कर्ज के बोझ के तले दबे हुए हैं।

जिले में वैसे तो कपड़ा बुनाई का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मशीनीकरण के पहले हथकरघे (हैण्डलूम) से बुनाई होती थी। हाथ से बुने गए कपड़ों की काफी मांग थी। इस उद्योग में तेजी आई पावरलूम आने के बाद। 1970 के दशक में सबसे पहले अमरडोभा निवासी स्वर्गीय सेठ अब्दुल मजीद ने मुम्बई से लाकर अपने घर पहला पावरलूम स्थापित कराया था। उसके बाद यह निरंतर प्रगति करता गया। अस्सी व नब्बे का दशक स्वर्णिम काल था।

बुनकर नेता इशहाक अंसारी बताते हैं कि यह कारोबार जिले के लगभग दो सौ गांवों में फैला था। लगभग दो लाख लोग इससे जुड़े हुए थे। अमरडोभा-लेड़ुआ महुआ मुख्य केन्द्र था। यहां आस पास के दर्जनों गांवों में घर-घर कपड़ा बुनने का काम होता था। यहां का गमछा काफी मशहूर है। इसके अलावा चादर, कुर्ता-धोती लुंगी आदि कपड़े बनते हैं। यहां बनने वाले कपड़ों को उप्र हैण्डलूम कारपोरेशन का स्थानीय डिपो खरीदता था। वहीं से सस्ते दर पर बुनकरों को सूत मिल जाता था। 1993 में डिपो बन्द हो गया। तब से बिक्री समस्या और सूत की मंहगाई बढ़ गई। उसी दौर से बिजली की समस्या भी बढ़ गई। कच्चे माल के न मिलने से बुनकरों की कमर ही टूट गई। बाद में बुनकरों ने बैंकों से ऋण लेकर काम शुरू किया। तैयार माल की बिक्री के लिए बिचौलियों ने भी शोषण किया। हालात ऐसे हो गए हैं कि हथकरघा और पावरलूम चलाने वाले अन्य व्यवसाय के साथ कुदाल व फावड़ा चला रहे हैं। इसके बावजूद जिले भर में लगभग पांच हजार से अधिक पावरलूम चल रहे हैं। इससे लगभग पचास हजार लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

कभी शासन से मिलती थी मदद

कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अमरडोभा में सर्वप्रथम शासन स्तर से पावरलूम लगाने की शुरुआत हुई थी। इसमें सरकार की तरफ से मकान, लूम व पूंजी दी जाती थी। साथ ही तैयार माल की खरीद भी की जाती थी। परन्तु यह योजना कुछ यह वर्षों में ही बन्द हो गई। इसके बाद यहां के लोगों ने धीरे-धीरे स्वयं का पावरलूम लगाना शुरू किया।

मेंहदावल क्षेत्र के कई गांवों में चलता था काम

जनपद का मेंहदावल क्षेत्र बुनकर बाहुल्य क्षेत्र कहा जाता है। बघौली विकास खंड के नौरो, अमरडोभा, लेडुआ महुआ, बखिरा समेत कई स्थानों पर बुनकर पहले हथकरघा से कपड़ों की बुनाई करते थे। आधुनिक युग में पावरलूम चलाकर कपड़ों की बुनाई करते हैं। वही मेंहदावल विकास खंड के नंदौर, ब्रह्मचारी, बारागद्दी, केवटलिया सानी, नई बाजार, ठाकुरद्वारा, पश्चिम टोला, सांथा विकास खंड के लोहरसन, भिटिया आदि कई ऐसे स्थान हैं, जो बुनकर बहुल्य क्षेत्र माना जाता है। पहले यहां हथकरघा बुनकरों के जीवन यापन का मुख्य व्यवसाय था।

महाराष्ट्र, आसाम तक जाता था यहां तैयार कपड़ा

बुनकरी से बने कपड़ों की मांग उत्तर प्रदेश के अलावा बंगाल, आसाम, महराष्ट्र, गुजरात आदि प्रांतों में भी खूब थी। खलीलाबाद का बरदहिया बाजार ने बुनकरों के तैयार कपड़ों से अपनी पहचान कायम की थी, लेकिन वर्तमान में हथकरघा उद्योग बंदी के कगार पर है। बुनकर पावरलूम से गमछा, चद्दर, लुंगी, दुपट्टा व सूती कपड़ों की बिनाई करते थे। जिनकी मांग क्षेत्र के अलावा अन्य जनपदों व प्रांतों में खूब रही। इससे बुनकरों को अच्छी आय हो जाती थी।

हथकरघा व पावरलूम उद्योग पड़ा मंद, कम हुए कारोबारी

मेंहदावल के ब्रह्मचारी व बखिरा क्षेत्र में एक हजार से अधिक परिवार 1970 के दशक में हथकरघा उद्योग से जुड़े हुए थे। 1990 के दशक में हथकरघा छोड़कर ज्यादातर लोग पावरलूम उद्योग से जुड़ गए। पावरलूम उद्योग ने तेजी से गति पकड़ी। बिजली से चलने वाली मशीन ज्यादा कपड़े का उत्पादन करने लगी। यहां के बने सूती वस्त्र कई राज्यों व जनपदों में बिक्री के लिए जाते थे। लेकिन वर्ष 2010 तक आधे से ज्यादा पावरलूम उद्योग भी ठप पड़ गए। बुनकरों की सभी मांगें पूरी नहीं हो सकीं। सब्सिडी योजना की स्थिति भी अच्छी नहीं रही। जिसके कारण यह उद्योग भी मंद पड़ने लगा। अब इक्का-दुक्का स्थान पर ही पावरलूम चलता है। काफी कम संख्या में परिवार इस उद्योग से जुड़े रह गए हैं। हालांकि सरकार की ओर से पिछले कुछ समय से इस सेक्टर के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। भविष्य में इसका असर परिलक्षित हो सकता है।मेंहदावल विधायक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि पावरलूम चलें और बुनकर पलायन न करें इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। पूर्व की सरकारों ने ध्यान नहीं दिया था, उनके उपेक्षा की देन है कि पावरलूम बंद हुए। हमारी सरकार लगातार बुनकरों के हित में कार्य कर रही है। बुनकरों आर्थिक सहायता दिलाने के साथ ही उनकी समस्याओं को दूर कराया जाएगा।

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